बुद्ध के जीवन की एक छोटी सी कहानी है |
एक बच्चा जन्म से अंधा था | उसके माता-पिता ने और उसके गुरु ने उसे हर चीज को पहचानना बताया था | उन्होंने उसे बताया था कि किसी भी चीज को पहचानने के लिए तुम्हें उसे छूना होगा, छू कर तुम उसका आकार प्रकार जान सकते हो | तुम्हें उसे सूंघना होगा, सूंघ कर तुम पहचान कर सकते हो कि यह क्या है | तुम सुनकर किसी भी चीज के बारे में जान सकते हो कि वह क्या है | तुम चलकर दूरी को समझ सकते हो | जैसा बच्चे को समझाया गया था और पढ़ाया गया था | बच्चा वैसा ही सीखा | अब वह बच्चा बड़ा हो गया था | हर चीज उसकी उंगलियों पर थी | वह कुछ भी सुन कर छूकर सूंघ कर बता देता था कि यह क्या है |लेकिन एक दिन बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई |
जब गांव के ही एक व्यक्ति ने उस अंधे व्यक्ति से कहा – तुम अंधे हो और सब कुछ बता देते हो, बहुत ही कमाल की बात है | क्या तुम बता सकते हो यह क्या है |
अंधे व्यक्ति ने कहा – जरा दिखाओ मुझे, मेरे हाथों से मुझे इसे छूने दो, जरा सूंघने दो, जरा सुन ने दो, तब मैं तुम्हें बताऊं कि यह क्या है जो तुम कह रहे हो |
उस दूसरे व्यक्ति ने कहा – भाई इसे कोई सुन नहीं सकता इसे कोई छू भी नहीं सकता और इसे कोई सूंघ भी नहीं सकता |
अंधे व्यक्ति ने कहा – तुम झूठ बोलते हो ऐसी कोई चीज नहीं होती जिसे छुआ ना जा सके जिसे सुंघा ना जा सके और जिसे सुना ना जा सके | तुम मुझे पागल बना रहे हो अगर कोई ऐसी चीज है तो उसका नाम बताओ |
दूसरे व्यक्ति ने कहा – प्रकाश रोशनी इसे ना तो छुआ जा सकता है ना सुंघा जा सकता है और ना सुना जा सकता है |
अंधे व्यक्ति ने कहा – तुम झूठ बोल रहे हो ऐसी कोई चीज नहीं होती, मैं यह मानने के लिए तैयार नहीं हूं |
वह अंधा व्यक्ति अपनी बात पर अड़ गया, कई लोगों ने उसे समझाया, लेकिन वह मानने के लिए तैयार नहीं था कि प्रकाश जैसी कोई चीज होती है | वह माने भी कैसे आज तक तो उसे यही बताया गया था कि वह सभी चीजों को छू सकता है सूंघ सकता है और सुन सकता है तो वह यह कैसे मान लें कि जो आज तक उसे बताया गया है वह झूठ है | धीरे-धीरे बात पूरे गांव में फैल गई | कई लोग आए उसे समझाने के लिए लेकिन वह अंधा व्यक्ति मानने के लिए तैयार नहीं था कि कोई प्रकाश जैसी चीज होती है |
तब उस अंधे व्यक्ति के गुरु भी आए ,गुरु ने कहा – जब सूर्य निकलता है तब उसकी रोशनी से उसके प्रकाश से तुम्हारे हाथ गर्म हो सकते हैं तुम्हारे पैर जमीन पर पड़ते हैं तो तुम गर्मी महसूस करते हो यही प्रकाश है |
अंधे व्यक्ति ने कहा – नहीं मैं जानता हूं आकाश में एक सूर्य है जैसा आप ने बताया है जो गर्मी पैदा करता है और उस गर्मी को मैं छू सकता हूं क्योंकि मेरे हाथ और पैर गर्म हो जाते हैं मेरा शरीर भी गर्म हो जाता है | लेकिन यह सब जिस की बात कर रहे हैं जिस प्रकाश की बात कर रहे हैं उसे तो मै छू भी नहीं सकता | क्या गुरुदेव में प्रकाश को छू कर देख सकता हूं |
गुरु ने कहा – नहीं प्रकाश को छुआ नहीं जा सकता |
अंधे व्यक्ति ने कहा – तो फिर मैं नहीं मानता कि कोई प्रकाश जैसी चीज इस दुनिया में है |
गुरुदेव क्या प्रकाश काला होता है इसका रंग क्या होता है |
गुरु ने कहा – प्रकाश काला नहीं होता इसका कोई एक रंग भी नहीं होता |
अंधे व्यक्ति ने कहा – मुझे दिखाओ तभी मैं मान सकता हूं | अन्यथा प्रकाश जैसी कोई चीज नहीं होती मैं नहीं मानता |
धीरे-धीरे बात और बढ़ती चली गई एक से एक व्यक्ति आया जो उस अंधे व्यक्ति को समझाने में लगा था |
लेकिन अंधा व्यक्ति भी मानने को तैयार नहीं था |
अंधे व्यक्ति ने कहा – तुम सब मिलकर मुझे मूर्ख बना रहे हो | तुम सब मुझे अंधा साबित करना चाहते हो | तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारी झूठी कल्पनाओं को मान लूं | ऐसा ना हो सकेगा | तुम मुझे पागल ना बना सकोगे | मैं अंधा नहीं हूं अंधे तो तुम सब हो |
अंत में सभी लोग उस अंधे व्यक्ति को तथागत गौतम बुद्ध के पास ले गए और बुद्ध से कहा – हे बुध हम सभी लोग इस अंधे व्यक्ति को समझा समझा कर थक गए हैं की प्रकाश होता है लेकिन यह मानने को तैयार नहीं है | अब आप ही इसे समझाएं |
बुध मुस्कुराए और बुद्ध ने कहा – कहां है प्रकाश, प्रकाश कहीं नहीं है | तुम नाहक ही इसके पीछे पड़े हो | यह सही कहता है प्रकाश जैसी कोई चीज नहीं है | जब यह प्रकाश तक पहुंच ही नहीं सकता तो यह कैसे मान लें कि प्रकाश होता है | तुम व्यर्थ ही इसके पीछे अपना समय खराब कर रहे हो | अंधे को प्रकाश के बारे में कौन समझाता है और अंधा प्रकाश के बारे में क्या समझ सकता है | इसे किसी वैद्य को दिखाओ इसे आंखें मिले तो यह कुछ प्रकाश के बारे में जाने, उसे देखें और उसे समझे | तब तुम्हें इसे प्रकाश के बारे में इतना समझाना नहीं पड़ेगा | क्योंकि वह इसे दिखाई दे जाएगा |
बुद्ध ने उस अंधे व्यक्ति की आंखों में देखा और कहा – इसे मेरे वैद्य जीवक के पास ले जाओ | अगर कुछ इसकी आंखों में हो सकता है, इसकी रोशनी वापस आ सकती है तो वह अवश्य ही इसकी आंखों को ठीक कर देगा |
उस अंधे व्यक्ति को जीवक के पास ले जाया गया | जीवक ने उस अंधे व्यक्ति की आंखों का इलाज किया | उस व्यक्ति की आंखों के ऊपर एक जाला सा था जो जीवक की जड़ी बूटियों से 6 महीने में पूरी तरह से हट गया और उस अंधे व्यक्ति ने पहली बार प्रकाश को अपनी आंखों से देखा |
उसने अभी तक केवल अंधेरा ही देखा था | प्रकाश की कल्पना भी उसके मस्तिष्क में नहीं थी | प्रकाश को देख कर उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी | अब किसी को उसे समझाने की आवश्यकता नहीं थी कि प्रकाश होता है |
इन छह महीनों में बुद्ध यात्रा कर किसी दूसरे स्थान पर चले गए थे | वह अंधा व्यक्ति बुद्ध को ढूंढता हुआ वहां पहुंचा | तब बुद्ध लोगों को अपना उपदेश दे रहे थे | वह व्यक्ति बुध के चरणों में गिर गया और उसने कहा –
हे बुद्ध लोग तो केवल बताते थे कि प्रकाश होता है वह हर प्रकार से बताते थे, अगर आप मेरे गांव में ना आते तो मैं लोगों से केवल विवाद ही करता रह जाता और वह मुझे समझाते ही रह जाते और मुझे मेरा अहंकार यह भी मानने नहीं देता कि मैं अंधा हूं | धन्यवाद आपका कि आपने मेरा अहंकार तोड़ दिया और मैंने जाना कि मैं अंधा था | आप नहीं होते तो मैं प्रकाश को कभी जान नहीं पाता और बेचारे मेरे गांव के लोग मुझे समझाते ही रह जाते | केवल आपने मुझे प्रकाश दिखाया | मैं आपका बहुत आभारी हूं |
बुद्ध ने कहा – आप सब मुझसे पूछते हैं कि मैंने क्या पाया | और मैं आप से कहता हूं कि मैंने परम सत्य को पाया है | और यह परम सत्य प्रकाश की तरह ही है और जब तक आप अपने मन की आंखों का इलाज नहीं कराओगे | तब तक आप इस प्रकाश को देख नहीं पाओगे | मन के आंखों के ऊपर बैठी मोह, माया, लालच, कामना, वासना, इच्छा और भय जैसी बुराइयां आपके मन की आंखों को अंधा कर देती है | तब आपको सत्य का प्रकाश नहीं दिखता | तब आप इन्ही बुराइयों के सहारे से चीजों को छू कर , सूंघ कर और सुन कर सत्य का पता करते हैं , जो कभी भी पूरा नहीं हो सकता | वह हमेशा अधूरा ही रह जाता है |
इसीलिए पहले अपनी मन की आंखों से इन बुराइयों के जालों को हटा दो | तब तुम्हें भी सत्य का प्रकाश साफ-साफ दिखाई देगा और तब मुझे या किसी को तुम्हें समझाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी |