spiritual talk | चार सवाल

बुद्ध कहते हैं कि शांति हमारे भीतर ही है | जब हमारा मन भटकना बंद कर देता है | तब हमें शांति का अनुभव होता है | यूवी ऑल मिस्ट्री के सभी लिस्नर्स  को मेरा प्रणाम  | हमने यूवीऑल मिस्ट्री पर एक कमेंट देखी | जिसमें  हमारे एक लिस्नर्स ने हम से 4 सवाल पूछे हैं | तो आज हम उन्हीं 4 सवाल पर बात करेंगे |

इससे पहले कि हम सवाल ले, यह जान लेना जरूरी है | कि जब हम किसी से सवाल पूछते हैं | तब हम इस आशा में रहते हैं कि सवाल का उत्तर वैसा ही मिले | जैसा कि हम मानते हैं | लेकिन अगर वैसा उत्तर नहीं मिलता | तब हम उस उत्तर को स्वीकार नहीं कर पाते | तब हम ऐसे व्यक्ति को ढूंढते हैं | जो हमारा समर्थन कर सकें | और ऐसे व्यक्ति आसानी से मिल भी जाते हैं | तब आपकी यात्रा रुक जाती है | तो किसी के उत्तर से अपनी यात्रा को रोक मत  लेना | हमें अपनी जिज्ञासाओं को कभी मरने नहीं देना है | जब तक जिज्ञासाएं हैं, तब तक आशा है, कि हम एक न एक दिन अपने सभी  प्रश्नों का उत्तर ढूंढ लेंगे | और तब हमें किसी से उत्तर पूछने की जरूरत नहीं पड़ेगी |

हमारा पहला प्रश्न है

1)योग से सारे रोग दूर होते हैं तो रमण महर्षि, रामकृष्ण परमहंस, संत तुकडोजी महाराज आदि योगीयो को कैंसर जैसी भयानक बीमारी कैसे हो गयी..? स्वामी विवेकानंद की मृत्यु जवानी में ही क्यों हो गयी..?? ओशो योग करते थे लेकिन उनका Allergic अस्थमा योग से नष्ट क्यू नहीं हुआ..? तो कैसे मानले योगसे बीमारी नष्ट हो जाती है…?

 योग से बीमारियां नष्ट नहीं होती | योग से शरीर में प्राण शक्ति का संचार होता है | वैसे तो सभी में प्राण शक्ति होती है | लेकिन योग करने से शरीर की प्राण शक्ति मजबूत होती है |  जिससे वह रोगों से लड़ने में शरीर को सक्षम बनाती है | प्राचीन समय में योग के कई खंड थे | जिसमें शारीरिक योग, जो शरीर को स्वस्थ रखता था | तथा मानसिक योग, जिससे मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त किया  जाता था | लेकिन वर्तमान में केवल, शारीरिक योग ही रह गया है | मानसिक योग खत्म हो गया है | योग से बीमारियां नष्ट नहीं होती | योग बीमारियों से लड़ने की शक्ति शरीर को प्रदान करता है | अगर कोई व्यक्ति योग करता है | और उसे कैंसर जैसी बीमारी है | तब वह जहां 1 साल जीवित रहने वाला था | अपने योग के बल पर वह अधिक समय तक जीवित रह सकता है | लेकिन मृत्यु सभी को आनी है | जो योग करते हैं, उन्हें भी, जो योग नहीं करते हैं, उन्हें भी |

 और अगर आप ध्यान की बात करें | ध्यान मानसिक शक्ति प्रदान करता है | वह आपके मन को स्वस्थ रखता है | और अगर मन स्वस्थ रहता है | तब हम अपने शरीर को स्वस्थ रख पाते हैं | अगर हम यह सोचे, कि ध्यान हमें कोई ऐसी चमत्कारी शक्ति देगा | जिससे हम अपने शरीर की सभी बीमारियों को बिना इलाज कराएं ठीक कर पाएंगे | तो यह गलत है | लेकिन कुछ बीमारियां जो हमारे मन से जुडी  हैं | अर्थात जो मानसिक बीमारियां हैं | उसका हम  स्वयं इलाज कर सकते हैं |

 दूसरा प्रश्न है

 2) योगसे ईश्वर का साक्षात्कार हो सकता है तो फिर महावीर, बुद्ध जैसे योग के महाराथीयो को ईश्वर का साक्षात्कार क्यू नहीं हुआ..? बुद्ध, महावीर इन महान योगियों ने तो ईश्वर के अस्तित्व को साफ नकारा है.. फिर योग से ईश्वर साक्षात्कार या आत्मसाक्षात्कार होता है ये कैसे मान ले..??

 बुद्ध कहते हैं ध्यान करो | अपने हर कृत्य को ध्यानपूर्वक देखो | साक्षात्कार करो, उसका, जो है, जो सत्य है, खोजो और जानो, बुद्ध   मानने में विश्वास नहीं रखते |  वह कहते हैं कि आओ और देखो | अगर तुम्हें कुछ दिखता है | तो उसे जानो, उसका विश्लेषण करो |

भगवान बुद्ध और महावीर दोनों ने ही ईश्वर के अस्तित्व को नकारा है | लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें ईश्वर का साक्षात्कार नहीं हुआ | लेकिन उन्हें जिस ईश्वर का साक्षात्कार हुआ | उसकी कल्पना हम नहीं कर सकते | और अगर भगवान बुद्ध यह कहते कि ईश्वर ,तो लोग क्या सोचते, कौन सा ईश्वर, वही ईश्वर, जिसकी पहचान उसने बचपन से की है | अगर हम आपसे कहें, कि ईश्वर, तो अल्लाह को मानने  वाले के मस्तिष्क में, अल्लाह का चित्र  उभर कर आएगा | शिव को मानने वाले के मस्तिष्क में शिव का चित्र, उभर कर आएगा | ईसा मसीह को मानने वाले के मस्तिष्क में ईशा मसीह का चित्र  उभर कर आएगा | जो बुद्ध को भगवान मानते हैं | उनके मस्तिष्क में बुध का चित्रण उभर कर आएगा | जो महावीर को मानते हैं उनके मस्तिष्क में महावीर का चित्र  उभर कर आएगा | अर्थात जो जिस ईश्वर को मानता है | उसके चित्र उसकी मान्यताएं जो उसने बचपन से सीखी है | सब उसके मस्तिष्क में इकट्ठे होकर सूचनाएं प्रदान करेंगे | और एक ईश्वर का निर्माण करेंगी |

और अगर बुद्ध कहते ईश्वर, तो केवल ईश्वर कह देने से, उन लोगों की मान्यताओं को समर्थन मिल जाता |  जबकि बुद्ध जानते थे कि यह सब गलत है | इसलिए कभी उन्होंने  ईश्वर की बात ही नहीं की, उन्होंने कहा आओ, और जानो, देखो कि, कुछ है, या नहीं | 

 बुद्ध आत्मसाक्षात्कार पर बल देते थे | ईश्वर साक्षात्कार पर नहीं | क्योंकि जिसे आत्मसाक्षात्कार हो गया | उसे ईश्वर के होने या ना होने के संबंध में संदेह नहीं रहता |

और बुद्ध को जिस ईश्वर का साक्षात्कार हुआ | उसके बारे में उन्होंने कभी कहा नहीं,  क्योंकि वह कितना भी कहते कि वह ईश्वर ऐसा है,  जिसकी आंखें नहीं है, फिर भी वह देखता है | उसकी टांगे नहीं है, फिर भी वह चलता है | उसके पास मस्तिष्क नहीं है, फिर भी वह सोचता है | वह शरीर हीन है, उसके पास शरीर का कोई अंग नहीं | फिर भी वह आप तक पहुंचता है | आपको छूता है | आपके पास से गुजर जाता है | पूरे जीवन आपके आसपास बना रहता है | पर आप उसे देख नहीं पाते | वह आपको शक्ति प्रदान करता है कि आप सोच सके, समझ सके, अपना कार्य कर सकें, वह ईश्वर आपकी सांसो में बहता है | वह जानवरों की आंखों में दिखाई देगा | वह पेड़ों के पत्तों में दिखाई देगा | वह फूल में भी दिखाई देगा | वह खुशबू में दिखाई देगा |

केवल इतना सुन लेने के बाद आप में से कई लोग, अपने ईश्वर की कल्पना में खो गए होंगे | और इस समाज से जो आपको बुद्धि, ज्ञान मिला है | उसी के बल पर आप पूरा चित्रण तैयार करेंगे | भले ही कहने वाले ने कुछ और कहा हो |  लेकिन आप अपनी  सामाजिक मस्तिष्क क्षमता के अनुसार इसका आकलन कर पाएंगे | उससे आगे आप जा भी नहीं सकते | जाएंगे भी कैसे, क्योंकि अभी आपकी समझ का विकास तो नहीं हुआ है |  यह ऐसे ही है, जैसे एक छोटा बच्चा, जिसे खिलौनों से बहुत लगाव होता है | उसका पूरा जीवन उसके खिलौने होते हैं | वह उन्हीं के लिए जीता है | भविष्य की प्लानिंग करता है | कि जब वह बड़ा हो जाएगा | तो बड़े बड़े खिलौने लाएगा | ढेर सारे खिलौने रखेगा | लेकिन यही बालक जब बड़ा हो जाता है | उसके मस्तिष्क का विकास होता है | तब वह इन खिलौनों में नहीं पड़ता | उनकी तरफ देखता भी नहीं, उसे कुछ नई चीजें समझ में आती हैं | जो उसे बचपन में कभी समझ में नहीं आ सकती थी|  इसीलिए बुद्ध ने ध्यान का आग्रह किया |  क्योंकि ध्यान एक ऐसा मार्ग है जो आपको आपकी सामाजिक बुद्धि के अलावा, एक अलग बुद्धि क्षमता प्रदान करता है | जिसमें आप समाज द्वारा सिखाए गए ज्ञान से अलग सोच पाते हैं | आप यह समझ सकते हैं कि आप एक छोटे बच्चे की तरह हैं | और बुद्ध एक व्यस्क है | जिनका मस्तिष्क परिपक्क है | और वह आपको, एक बच्चे को जैसे समझाते हैं | वैसे ही चीजों को समझा रहे हैं | लेकिन ना तो बच्चे की समझ में कभी आता है | और ना ही आपकी समझ में कभी आएगा | जब तक कि आप बड़े नहीं हो जाते |  बच्चे को तो बड़ा होना ही है, और वह बड़ा होगा ही, लेकिन आप कब बड़े होंगे |

 तीसरा प्रश्न है

 3)योग से मनोविकार नष्ट हो जाते हैं तो आसाराम बापू(काम विकार) और रामदेवबाबा(अहंकार, लोभ, क्रोध) जैसे योगियों के मनोविकार योग से नष्ट क्यू नहीं हुए..??

 मैं जब पांचवी क्लास में पढ़ता था | तब मेरी टीचर हमारी क्लास में सवाल सभी बच्चों से पूछती थी | तब मैं हमेशा सोचता था कि सबसे पहले वह मुझसे ना पूछे, क्योंकि उस सवाल का जवाब मुझे नहीं आता | अगर उसने मुझसे पूछा, तो मार खानी पड़ेगी | तब दो स्थिति बनती थी | पहली स्थिति में वह टीचर किसी और बच्चे से वह सवाल पूछती थी | और अगर टीचर ने उसे नहीं मारा | तब मेरा जवाब भी वही होता था | हालांकि बाद में दोनों को मार खानी पड़ती थी | क्योंकि दोनों के जवाब गलत थे | दूसरी स्थिति में वह टीचर उस पहले बच्चे की पिटाई कर देती थी | तो मुझे यह पता चल जाता था कि वह उत्तर गलत है | तब मैं दूसरा उत्तर देने की कोशिश करता था, कि बच जाऊं, लेकिन तब भी पीटना पड़ता था | क्योंकि प्रश्न का उत्तर तो मुझे आता ही नहीं था |

कहने का मतलब इतना ही है कि अगर कोई अपना रास्ता पूरा ही ना करें | और पाखंड करके बैठ जाए कि उसने तो पूरा रास्ता तय कर लिया, वह तो ज्ञानी हो गया, उसे तो साक्षात्कार हो गया | अब उस जैसा, कोई नहीं और आपने उसके उत्तर को सही मान लिया | तो, मार तो, आपको खानी पड़ेगी | क्योंकि आपने उस उत्तर को जानने की कभी कोशिश ही नहीं की | और अगर की, तो पूरी नहीं की | आपके मन में  हजारों आशंकाएं हैं | उनका समाधान आप पहले से ही कर लेना चाहते हैं | बिना राह पर चलें |

अगर आप इस इंतजार में रहेंगे, कि इस राह पर कोई चले | और चल कर वापस आप तक आए | और आपको बताएं कि उसे क्या मिला | तब आप उस राह पर चलें, तब तक, बहुत देर हो जाएगी | मनुष्य अमर नहीं है | उसके पास समय सीमित है | और किसका कितना समय बाकी है, कोई नहीं जानता, तो जितना हो सके, अपनी यात्रा अपनी बुद्धि से तय करें | ना कि दूसरों के आचरण से |

 चौथा प्रश्न है

 4)अष्टावक्र मुनि ने अपने अष्टावक्र गीता के 18th अध्याय में योग की आलोचना करके उसे निरर्थक माना है..!!

 अष्टावक्र मुनि में इतना ज्ञान था | कि वह योग की आलोचना कर,  उसे निरर्थक मान सकें | लेकिन यह ज्ञान क्या आप में  है |  कि आप योग को, ध्यान को, निरर्थक मान सकें | क्या आप अपनी पूर्ण बुद्धि से यह मान सकते हैं |  कि ध्यान से कुछ नहीं होता | और अगर मान सकते हैं | तो आपको अष्टावक्र मुनि का सहारा लेने की कोई जरूरत नहीं | क्योंकि यह तो आप जानते ही हैं, कि ध्यान से कुछ नहीं होता |

 वास्तव में एक स्थान पर पहुंचने के कई रास्ते होते हैं | जैसे चार व्यक्तियों को नदी के दूसरी तरफ जाना हो | उन चारों व्यक्तियों में से पहला व्यक्ति अच्छा तैराक है | तो वह, नदी में कूदकर तैरते हुए, नदी की दूसरी तरफ पहुंच जाता है | जबकि दूसरा व्यक्ति अच्छा कारीगर है | वह अपने लिए लकड़ी की नाव तैयार करता है | और उस में बैठकर नदी पार करता है | दूसरे किनारे पर पहुंच जाता है | तीसरा व्यक्ति  ना तो नाव तैयार करना जानता है | और ना ही वह तैराक है | लेकिन  उसे भी नदी के दूसरी तरफ जाना है | इसलिए वह एक लंबा रास्ता तय करता है और उस जगह पहुंचता है, जहां पर उसे नदी के ऊपर से  जाने के लिए एक पुल मिलता है | जिससे होकर वह नदी के दूसरी तरफ जाता है | जबकि चौथा व्यक्ति, वही, नदी के किनारे पर बैठा रहता है | और वह  इंतजार करता है कि कब इस नदी का पानी कम होगा | और वह इस नदी से होकर दूसरे किनारे पर पहुंच सकेगा |

यही बात जब किसी पांचवे व्यक्ति को बताई गई, तब वह कह सकता है  कि दूसरे नंबर के व्यक्ति का रास्ता  सही था | क्योंकि उसने आराम से, बिना अपने कपड़े खराब किए, नदी को पार किया | बाकि सब रास्ते बेकार थे |

 कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना ही है, की जरूरी नहीं है, हम ध्यान मार्ग से ही जागृत हो और हमारी समझ बढ | आपको, आपके आसपास ऐसे कई व्यक्ति दिखाई देंगे | जो बड़े जागरूक हैं | वह अपना कार्य बड़े ध्यान से करते हैं | लोगों की मदद करते हैं | उनकी सोच अच्छी है | वह दुख में भी घबराते नहीं है | बल्कि दुख को भी अपना हथियार बनाते हैं और अपना लक्ष्य प्राप्त करते हैं | ध्यान से भी आपको यही मिलता है | आपको जागरूकता मिलती है | आप चीजों को अच्छी तरह समझना शुरू करते हैं | तब आप में विनम्रता आती है | आप दुख में घबराते नहीं हैं | लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आप ध्यान ही करें, कुछ लोगों को ध्यान से कुछ नहीं मिलता | क्योंकि उन्हें तैरना नहीं आता, उन्हें अपना रास्ता स्वयं तलाशना पड़ेगा | बस अपनी खोज मत रोकना और निराश मत होना | एक दिन सभी सवालों के जवाब मिल ही जाएंगे | और वह उत्तर आप खुद अपने आप को दे पाएंगे | ना कि किसी से पूछने पड़ेंगे |

5 thoughts on “spiritual talk | चार सवाल”

  1. Bikash pathak

    Me abhi to hindi nehi par pata, magar umid rakhta hu ki ekdin jarur par paunga, dark background ke opor iye sob likha huya hota to akhome stress kom porta..

  2. Bikash pathak

    Me abhi to bas web page reader ke through iye storya sun sekta hun.. or text ko Google translator me paste korke sun sekta hun 😊..

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