मन काबू कैसे होगा | how to control mind

 एक गुरु का एक शिष्य अपने मन की वजह से बहुत परेशान था | उसका मन उसके नियंत्रण में नहीं था | वह मन को काबू करना चाहता था | लेकिन  नहीं कर पाता था |  तब एक दिन परेशान होकर वह अपने गुरु के पास आया  

और उसमें गुरु से कहा –  गुरुदेव आपने यह तो बता दिया था कि मन धोखा देता है | मन को काबू करना है | लेकिन कैसे करना है, यह नहीं बताया |  मेरा मन मेरे नियंत्रण में नहीं  है | मैं इसे कैसे काबू  करूं |

गुरु ने कहा – क्या हुआ है | मन कहां भाग रहा है |

शिष्य ने कहा –  गुरुदेव आपसे कुछ छुपा नहीं है | उस दूसरे गांव में एक लड़की रहती है | मैं जब उससे भिक्षा मांगने जाता हूं | तो वह बड़े प्रेम से मुझे भिक्षा देती है | मेरे हाथ और मुख से आशीर्वाद तो निकलता है | पर मन के अंदर एक भूचाल सा चलता रहता है | मेरी आंखें नियंत्रण में नहीं रहती | वह उसमें कुछ देखना चाहती है | और मुझे ऐसा लगने लगता है | जैसे मैं कोई हवस का पुजारी हूं | मैं जानता हूं कि एक सन्यासी के लिए यह उचित नहीं है |

 गुरु ने हंसते हुए कहा – अच्छा तो, तेरा मन उसमें क्या देखने के लिए करता है | क्या देखना चाहता है |

 शिष्य ने कहा –  गुरुदेव कहते, अच्छा नहीं लगता | आप जानते हैं कि मन क्या चाहता है |

गुरु ने कहा – अच्छा ठीक है | तो फिर तुम एक काम करो | अपने मन को नियंत्रण में करो मन पर काबू रखो |

 शिष्य ने कहा – पर कैसे गुरुदेव | जो मन कहता है वह मत करो | बस इतना ही तो करना है |

  शिष्य गुरु की बात मानकर चला गया |  और एक दिन वह फिर से गुरु के पास  आया |

 गुरु ने शिष्य को देखा और कहा – अरे शिष्य  यह तुम्हारे गाल लाल कैसे हो गए | कहीं से थप्पड़ खा कर आए हो क्या |

 शिष्य ने कहा –  मन को बहुत नियंत्रण में किया काबू किया | पर आज उस लड़की के सामने मुख से कुछ निकल गया और उसने मेरे गाल लाल कर दिए | 

 गुरु ने हंसते हुए कहा – अरे तुम मेरी इज्जत डुबाओगे |  गांव वाले भगा देंगे यहां से |

 शिष्य ने कहा –  तो मैंने पहले ही आपसे कहा था | मुझे बता दे कि मैं अपना मन कैसे काबू करूं |  मन पर काबू होता, तो यह सब नहीं होता | आप कुछ बताते ही नहीं है |

गुरु ने कहा – पहले मन को काबू करो, फिर तुम मन को काबू कर सकोगे |

 शिष्य ने अपना सर खुजाया और कहा – पर यही तो मैं पूछ रहा हूं कि मन को काबू कैसे करें |

 गुरु ने कहा –  अरे यह भी मैं बताऊंगा तो तुम क्या करोगे | चलो मेरे साथ |

गुरु शिष्य को एक जंगली घोड़े के पास ले गए  और कहा –  इस घोड़े का नाम मन है |  पहले तो  तुम इसे काबू  करो और अगर तुमने इसे काबू कर लिया तो तुम अपने मन को भी काबू कर पाओगे | क्योंकि इस  घोड़े  में और तुम्हारे मन में कोई ज्यादा अंतर नहीं है | 

 शिष्य ने गुरु की तरफ देखा और कहा –  ऐसे तो मैं अभी काबू कर लेता हूं |

 वह घोड़े के पीछे की तरफ गया | और उसकी पूंछ  को सहलाने लगा |  तभी घोड़े ने पीछे की दो लात  उसकी छाती पर मार दी | और शिष्य नीचे गिर गया |

 गुरु ने शिष्य को उठाया और कहा –  मन के पीछे ही खड़े रहोगे तो यही होगा | सामने आओ तभी तो कुछ कर सकोगे |

गुरु शिष्य को आश्रम ले आए और उसकी  मरहम पट्टी की | अगले दिन तक शिष्य स्वस्थ हो गया था | 

वह उठा और गुरु से कहा –  गुरुदेव मैं जा रहा हूं | मन को काबू करने |

 गुरु ने कहा –  जरा संभल कर,  मन कोई खेल नहीं है 

 शिष्य उस घोड़े के पास पहुंचा और कहा –  अरे मन  पिछली बार तो धोखे से तूने मुझे गिरा दिया था | पर अब की बार मैं तुझे काबू कर कर ही रहूंगा | शिष्य ने मन के सामने आया | 

और उसकी आंखों में आंखें डाल कर बोला –  चल अब तेरी सवारी करता हूं | 

शिष्य ने इतना बोला ही था की मन को शिष्य का आंखों में आंखें डालना पसंद नहीं आया और उसने हिन हिनाते हुए  अपने आगे की दोनों टांगे उठाए और शिष्य की छाती पर दे मारी |  

शिष्य नीचे गिर गया और करहाते हुए गुरु के पास पहुंचा और कहा –  गुरुदेव मरहम पट्टी कर दो |

 गुरु ने अपने शिष्य की मरहम पट्टी की और कहा – मन के साथ जोर जबरदस्ती करोगे तो वह तुम्हें पटक ही देगा | उससे दोस्ती करो उसे समझो कि उसे क्या चाहिए | वह कब क्या चाहता है | उसे ठीक प्रकार से समझने की कोशिश करो |

 अगले दिन फिर से शिष्य उठा और उसने गुरु से कहा –  गुरुदेव आज तो मैं मन को काबू कर ही लूंगा | आशीर्वाद दें | 

गुरु ने कहा –  रोज मन को ही काबू करेगा, तो भिक्षा कौन मांगेगा |

 शिष्य ने कहा –  आज आप मांग लीजिए | मैं तो मन को काबू करने के बाद ही भिक्षा मांगने जाऊंगा | 

शिष्य आश्रम से मन के पास चला गया | 2 दिन बीत गए ना मन का कुछ पता था | और ना ही शिष्य का,  दोनों कहां गए किसी को कुछ नहीं पता था |

तीसरे दिन गुरु भिक्षा मांगकर वापस आश्रम आ रहे थे | तब रास्ते में गुरु ने देखा की घोड़े पर सवार उसका शिष्य  धड़ाधड़  दौड़ते हुए आ रहा है | 

 गुरु ने चिल्लाकर पूछा –  अरे कहां से आ रहे हो ?

 शिष्य ने कहा –  पता नहीं 

 गुरु ने पूछा –  जा कहां रहे हो ? 

 शिष्य ने कहा –  पता नहीं 

 गुरु ने कहा –  मन को रोको |

 शिष्य ने चिल्लाते हुए कहा –  रास्ते से हट जाइए गुरुदेव मन मेरे काबू में नहीं है | यह रुक नहीं रहा | पता नहीं कहां ले  जा रहा है ? 

 मन  शिष्य को अपने साथ भगा  के ले गया | धीरे-धीरे शिष्य दिखाई देना बंद हो गया | 

 गुरु अपने आश्रम वापस चले आए | रात को शिष्य थका हारा कमजोर सा भूखा प्यासा आश्रम पहुंचा | 

और गुरुदेव को उठाकर कहा –  गुरुदेव  भोजन और पानी चाहिए भूख प्यास लगी है |

गुरु ने  शिष्य को  भोजन और पानी दिया | भोजन और पानी लेकर वह सो गया | 

सुबह उठा गुरु के पास पहुंचा और कहा – गुरुदेव  मैं मन को काबू करने जा रहा हूं | आशीर्वाद दीजिए |

 गुरु ने कहा –  आशीर्वाद बाद में लेना |  पहले यह बताओ |  तुम  मन  को काबू करोगे कैसे | 

 शिष्य ने कहा –  मैं मन के ऊपर बैठूंगा  और उससे कहूंगा कि मुझे इधर ले चल | मुझे उधर ले चल | 

 गुरु ने कहा –  क्या मन तुम्हारी बात समझेगा |

शिष्य ने कहा –  यही तो सारी गड़बड़ है | वह मेरी बात समझता ही नहीं है | मेरी सुनता ही नहीं है |

 गुरु ने कहा – शुरू में तुम्हें मन को लगाम लगानी होगी | वह भागेगा दूसरी तरफ, तुम्हें लेकर, लेकिन तुम्हें उसे  लगाम लगानी होगी | तब वह तुम्हारी इच्छा अनुसार दिशा बदलेगा | और वह उस दिशा में जाएगा जिस दिशा में  तुम उसे ले जाना चाहते हो | और बाद में वह तुम्हारी इच्छा  मात्र से, हल्के से इशारे से भी,  तुम्हारी बात समझेगा | और दिशा बदल लेगा |  वहां जाएगा जहां तुम उसे ले जाना चाहते हो | जब कहोगे चलो, तो चलेगा, जब कहोगे रुको तो रुकेगा |  सब तुम्हारे नियंत्रण में होगा |

 यह सुनकर शिष्य बड़ा खुश हुआ और कहा –  गुरुदेव यह बात आपने पहले क्यों नहीं  बताई | अब तो मैं उसे नियंत्रित कर ही लूंगा | अब तो मन काबू में आ ही जाएगा | मुझे आशीर्वाद दे गुरुदेव |

 गुरु ने कहा –  बहुत आशीर्वाद ले लिया अब कुछ करो भी |

 शिष्य आश्रम से वापस मन के पास चला गया | 2 दिन गुजर गए और शिष्य और मन का कुछ पता नहीं था | 2 दिन बाद शिष्य मन के साथ आश्रम में पहुंचा | वह मन की सवारी कर रहा था |

 वह मन से उतरा और गुरु के पास पहुंचा और  गुरु से कहा –   गुरुदेव मैंने बहुत मेहनत की पहले तो मन लगाम लगाने ही नहीं दे रहा था | तब मैंने बहुत प्रयास कर मन को लगाम लगाई | तब मैंने लगाम के साथ मन की सवारी करने का प्रयास किया | पर तब भी मैं ठीक से सवारी नहीं कर पा रहा था | तब मैंने अभ्यास किया | और अब मन मेरे इशारे को भी समझ लेता है | वह जानता है कि  मैं कब उसे रुकने के लिए कह रहा हूं | कब चलने के लिए और कब दौड़ने के लिए | किस दिशा में जाना है | वह मेरी इच्छा मात्र से समझ लेता है |  मन  मेरे काबू में है गुरुदेव | 

गुरु ने कहा-  बहुत अच्छे ! तुमने बहुत बढ़िया काम किया | 

शिष्य ने कहा –  लेकिन गुरुदेव  मैंने  इस मन को तो काबू कर लिया | लेकिन  मेरे मन को मैं कैसे काबू करूं |

 गुरु ने कहा –  लगता है,  इस घोड़े की सवारी, कोई गधा ही कर रहा था |

 शिष्य ने कहा –  गुरुदेव मैं समझा नहीं |

 गुरु ने कहा –  इसमें समझना क्या है | जैसे तुमने इस मन को काबू किया है | ठीक वैसे ही तुम्हें अपने मन को काबू करना  है | थोड़ा समय लगता है लेकिन हो जाता है | अभ्यास जरूरी है |

गुरु की बात सुन, शिष्य की जैसे अकल ठिकाने आ गई  और उसने कहा-  गुरुदेव  मैं समझ गया | मुझे क्या करना है |  जो मेहनत मैंने इस घोड़े पर की है | वही मेहनत मुझे अपने मन पर करनी है |

 यह कहकर शिष्य मन के साथ आश्रम से चला गया |

 एक माह बाद भी मन का और शिष्य का कुछ पता नहीं था | अचानक एक महा बाद  शिष्य अपने घोड़े मन के साथ  आश्रम वापस आया और गुरु के पास आकर, 

उसने गुरु से कहा – गुरुदेव बहुत शांति है | मन की उथल-पुथल सब रुक गई  है | मेरा मन अब मेरे काबू में है | 

गुरु ने कहा –  बहुत अच्छे  मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी | तुमने यह कर दिखाया | तुमने बहुत मजे ले लिए चलो  अब यह दानपात्र पकड़ो और भिक्षा मांग कर लाओ | 

 शिष्य ने भिक्षा पात्र पकड़ा और मन पर सवार होकर दूसरे गांव की ओर निकल पड़ा | वह सीधा उस लड़की के घर पर पहुंचा जिस ने उसे थप्पड़ मारा था | तब वह लड़की अपनी सहेली के साथ द्वार पर ही खड़ी थी | उसे देखकर दोनों लड़कियां आपस में खुसर पुसर करने लगी |

मगर उस  शिष्य  पर इसका कोई असर नहीं हुआ | चेहरे पर असीम शांति लिए हुए, वह उस लड़की की सहेली के पास पहुंचा | 

और कहा –  बहन  क्या भिक्षा मिलेगी | 

यह सुनकर वह लड़की भीतर गई और कुछ भिक्षा ले आई |

 तब उसने उस लड़की से कहा जिसने थप्पड़ मारा था –  बहन  क्या भिक्षा मिलेगी | 

वह लड़की भीतर गई और कुछ  भिक्षा लेकर आई और उसके भिक्षा पात्र में डाल  दीया | उस लड़की ने शिष्य की तरफ देखा और उसको दो थप्पड़ लगा दिए |  

और कहा –  मैं तुमसे प्रेम करती हूं | और तुम मुझे बहन कह रहे  हो |

बाहर खड़ा मन  एक घोड़ी को देखकर बिदक गया | 

मन की आवाज सुनकर वह शिष्य मन की तरफ भागा | मन नियंत्रण में नहीं था |  वह उस घोड़ी की तरफ भागने की कोशिश कर रहा था |  शिष्य ने मन की लगाम थामी | लेकिन मन था के काबू में आने के लिए तैयार नहीं था | उसने शिष्य को अपने ऊपर से गिरा दिया | तब शिष्य ने फिर से उसकी लगाम थामी और उसके सामने आ गया |  उसने मन की आंखों को ढक लिया | और उसके माथे पर अपना सर रख दिया और उसको धीरे से सहलाने लगा | शिष्य ने गहरी सांस  ली | धीरे-धीरे मन शांत हो गया | 

 वह शिष्य उस लड़की के पास गया और कहा –  बहन मैं सन्यासी हूं | मेरे लिए यह उचित नहीं है | मेरा रास्ता कुछ और है | पहले मैं कुछ भटक गया था | और अब मैं रास्ते पर हूं |  मैं आपसे क्षमा चाहूंगा |

 यह कहकर वह वापस आश्रम आ गया और गुरु के पास पहुंचा और  गुरु को सारी बात  बताई 

और कहा –  गुरुदेव  मेरा मन मेरे नियंत्रण में था | पर उस लड़की की बात सुनकर कुछ समय के लिए मेरा मन भटक गया था | वह मेरे नियंत्रण में नहीं आ रहा था | ऐसा क्यों हुआ गुरुदेव |

गुरु ने कहा –  मन कुछ नहीं करता | मन केवल वह तुम्हारी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रयास करता है |  तुम्हारी जैसी इच्छा होती है वह वैसे ही पूर्ति के सपने दिखाता है | रास्ते खोलता है | और इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रेरित करता है |

 तुम अच्छी बात सोचोगे तो वह उन अच्छी बातों को पूरा करने के लिए तुम्हें प्रेरित करेगा | तुम्हें सपने दिखाएगा |  तुमसे वह  काम कराएगा जिसके लिए तुम सोच रहे हो और इच्छाओं की पूर्ति करेगा | और अगर तुम वही बुरी बातें सोच रहे हो तो इन बातों के लिए भी वह वैसा ही करेगा | उनकी पूर्ति के लिए पूर्ण प्रयास करेगा | जब तक कि वह पूरी ना हो जाए | वह तुम्हें प्रेरित करता रहेगा | 

सारा दोष हम मन को दे देते  है | पर मन की इसमें कोई गलती नहीं है |  वह केवल तुम्हारी इच्छाओं की पूर्ति का प्रयास करता है | वह अंधा है | वह तुम्हारी आंखों से देखता है | वह तुम्हारे कानों से सुनता है | वह तुम्हारे जव्हा से स्वाद लेता है |  वह तुम्हारे पैरों से चलता है | और वह तुम्हारे हाथों से छूता है |

 बाहर से सभी चीजें तुम ही उसमें डालते हो | जो तुम डालते हो वैसा ही परिणाम वह तुम्हें देता है |  फिर तुम परेशान होते कि मन तुम्हारे नियंत्रण में नहीं काबू में नहीं |

बन खाली घड़े जैसा है | स्वच्छ पानी डालोगे | तो स्वच्छ पानी ही मिलेगा | मैला पानी डालोगे तो मैला पानी ही मिलेगा |

 शिष्य ने कहा –  गुरुदेव आपका बहुत धन्यवाद  मैं समझ गया हूं |  कि मन को काबू ही नहीं करना है | बल्कि अपने आप को भी काबू में रखना है | मन को वासना का चारा मिले तो वह बहक सकता है | इसलिए हमेशा ध्यान करके  ध्यान रखना है | जागृत रहना  है | 

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