बुद्ध का एक शिष्य बहुत ही तेज बुद्धि का था | अपनी प्रेमिका द्वारा धोखा दिया जाने के कारण उसका मन संसार से उठ गया था | और अब वह ज्ञान के रास्ते पर आगे बढ़ रहा था उसका एक ही लक्ष्य था बुद्धत्व की प्राप्ति | एक दिन बुध अपने शिष्य के साथ एक नगर जा रहे थे रास्ते में बुध को प्यास लगी |
बुद्ध एक पेड़ के नीचे रुक गए और शिष्य से कहा – मेरे लिए जल का प्रबंध करो |
शिष्य बुध के लिए जल का प्रबंध करने के लिए चला गया | बहुत देर होने पर जब शिष्य नहीं आया | तब उसे खोजते हुए वहां से आगे बढ़े | रास्ते में एक जगह बुध ने देखा कि उनका शिष्य एक युवती के साथ कुछ बात कर रहा है |
युवती शिष्य से कह रही थी – मैंने जबसे तुम्हें देखा है मैं तुम्हारे प्रेम में पड़ गई हूं हर जगह तुम ही तुम नजर आते हो | तुम यूं अपना जीवन क्यों बर्बाद कर रहे हो जवान हो सुंदर हो | चलो हम मिलकर एक घर बसाए | उस बुद्ध के साथ अभी तुम दर-दर भिक्षा मांगते हो | जब तुम मेरे साथ आ जाओगे तो हमारे पास एक बड़ा घर होगा नौकर चाकर होंगे | मेरे जैसी सुंदर पत्नी तुम्हारे पास होगी | हमारे बच्चे होंगे | हमारा संसार खुशियों से भरा होगा | तुम क्यों इतना दुख उठाए घूमते हो |
शिष्य चुप रहा और उसने उस युवती से कुछ नहीं कहा उसने अपना जल का पात्र लिया और वह बुद्ध की ओर चल दिया | उसने पीछे मुड़कर देखा तो बुद्ध खड़े थे | बुद्ध ने शिष्य से जल पात्र लिया और पानी पिया | पानी पीकर वह अपने शिष्य को लेकर वहां से चले गए | युवती वहीं खड़ी रह गई | बुद्ध ने इस बारे में शिष्य से कुछ नहीं कहा |
धीरे धीरे उस शिष्य का मन बेचैन होने लगा | उसकी बुद्धि काम करने लगी और उसे समझ आने लगा कि वह अपना जीवन यहां बर्बाद कर रहा है | उसे तो उस युवती के साथ घर बसा लेना चाहिए | उसके पिता के पास अच्छी खासी संपत्ति है | उसके जीवन में कभी कोई दुख नहीं होगा | यहां तो हर पल हर समय मेहनत ही करनी पड़ती है | यह भी कोई जीवन है | जीवन एक बार मिलता है उसका भरपूर उपयोग कर लेना चाहिए |
अब शिष्य का मन बुद्ध की शिक्षाओं में साधना में नहीं लग रहा था | बुद्ध अपने शिष्य की मनोदशा से भलीभांति परिचित थे | फिर भी बुद्ध ने अपने शिष्य से कुछ नहीं कहा | क्योंकि वह चाहते थे कि उसमें खुद से समझ उत्पन्न हो जिससे उसका बौद्ध विकसित हो | धीरे-धीरे उस शिष्य ने साधना करना ही छोड़ दिया | ना ही वह भिक्षा मांगने जाता | अकेले में बस बैठा रहता और उस युवती के ख्यालों में खोया रहता |
बुद्ध समझ गए थे कि उनका शिष्य रास्ते से भटक रहा है और दुविधा में पड़ गया है | जो व्यक्ति एक बार असमंजस में दुविधा में पड़ जाता है | फिर वह किस और जाए, तब वह कहीं नहीं जाता | और वही खड़े-खड़े सोचता रह जाता है | ऐसा व्यक्ति कभी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता |
तब बुद्ध ने अपने शिष्य से कहा – अपने बौद्ध को संभाल, अपनी स्मृति को संभाल, अपने विवेक को जगा | जो मन राग और द्वेष से भरा है | वह कभी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं करता | भटका हुआ मन कहीं का नहीं रहता | वह कभी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकेगा | अपने मन को स्थिर करो |
बुद्ध से यह शब्द सुनकर उस शिष्य की बुद्धि को झटका लगा | वह समझ गया कि वह गलती कर रहा है | वह अपने रास्ते से भटक गया है | वह पहले भी इन झंझट में पड़ा और धोखा खाया है | वहां कुछ नहीं है | कोई सुख नहीं है | मेरा लक्ष्य ज्ञान की प्राप्ति है वही मुझे करना है | शिष्य वापस दोबारा अपनी साधना में लग गया | एक दिन शिष्य भिक्षा मांगने के लिए एक गांव की और निकला |
रास्ते में उस युवती ने उस शिष्य का रास्ता रोक लिया और कहा – मैंने इतने दिन तुम्हारा इंतजार किया पर तुम नहीं आए | अब आखरी बार मैं तुमसे पूछती हूं | क्या तुम मुझसे प्रेम नहीं करते | यह अंतिम मौका है सोचने का | जरा सोचो तुम यह क्या कर रहे हो | कैसे बेकार के वस्त्र पहन रखे है और भिक्षा का कटोरा हाथ में ले रखा है | मेरे साथ आओगे तो एक से एक वस्त्र मिलेंगे | जैसे राजा पहनते हैं | और तब तुम भिक्षा नहीं मांगोगे | बल्कि तुम इन सब को जो तुम्हारे गुरु भाई, यहां तक कि बुद्ध को भी भिक्षा दे सकोगे | तुम इन सब से ज्यादा महान और बड़े हो जाओगे | और मेरी तरफ तो देखो मैं तुम्हारे प्रेम में प्यासी बैठी हूं | क्यों तुम्हें मेरी बात समझ नहीं आती | मैं तुम्हारा भला चाहती हूं |
यह अंतिम मौका है | क्योंकि मेरे पिता मेरा विवाह कहीं और कर देंगे | अगर तुम हां कहो, तो मेरे पिता मेरा विवाह तुमसे करने के लिए तैयार है | सोच लो, फिर कभी तुम्हें मेरी जैसी लड़की नहीं मिलेगी | जो तुम से इतना प्रेम करती है |
उस शिष्य का मन फिर से विचलित हो गया | उसे लगा कि जो अब तक हाथ में था | अब निकलने वाला है | जल्दी ही कोई निर्णय ना लिया तो वह उसे खो बैठेगा |
वह बिना भिक्षा मांगे ही विहार वापस आ गया | बुद्ध की नजर अपने शिष्यों के हर कृत्य पर रहती थी | वह अपने उस शिष्य के बारे में भी भलीभांति परिचित थे | वह उसकी मनोदशा जानते थे | वह सीधे-सीधे उसे कुछ नहीं कह रहे थे | क्योंकि वह चाहते थे कि वह शिष्य खुद के ज्ञान से खुद की समझ से अपना रास्ता निर्धारित करें |
शिष्य का मन बहुत विचलित था | उसका दम सूख रहा था | लग रहा था, कि कुछ छूट रहा है | उसकी बुद्धि काम नहीं कर रही थी | मन किसी एक और रुक नहीं रहा था | एक और उसे बुद्ध दिखाई दे रहे थे | दूसरी ओर उसे वह लड़की दिखाई दे रही थी | उसका मन बुद्ध को छोड़ने के लिए बार-बार तैयार हो रहा था |
तब उसने सोचा कि अगर बुद्ध से कहूंगा तो वह जरूर कुछ ना कुछ ऐसा बता देंगे, जिससे मेरा मन फिर से उस लड़की की ओर से हट जाएगा | वह मुझे रोक लेंगे | पर मैं यह नहीं चाहता | इसलिए मुझे चुपचाप निकलना होगा |
तभी बुध अपने शिष्य के पास आए और कहा – मेरे साथ चलो हमें कहीं चलना है |
बुध अपने शिष्य को साथ में लेकर एक मार्ग पर आगे बढ़े गए | बुद्ध के हाथों में एक सोने का पिंजरा था |
रास्ते में वह एक स्थान पर रुके वहां पर कुछ पक्षी जमीन पर दाना चुग रहे थे |
बुद्ध ने वहां पर सोने का पिंजरा रख कर पक्षियों से कहा – मैं तुम्हारे लिए सोने का पिंजरा लाया हूं | यह सोने का है | सबसे कीमती है | चमकदार है | तुम इसमें रह सकते हो | तुम्हें दाना चुगने या ढूंढने की कोई आवश्यकता भी नहीं होगी | तुम्हें बिना मेहनत किए, दाना पानी इसमें मिलता रहेगा | तुम्हारी सेहत का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा | बस तुम एक बार इस पिंजरे में आ जाओ | फिर तुम्हें वह सुख मिलेंगे जो तुमने कभी नहीं देखे होंगे | तुम यह कैसा जीवन जी रहे हो | कितनी मेहनत करनी पड़ती है | कितना उड़ना पड़ता है | जब जाकर कहीं, तुम अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हो | और यहां बिना कुछ करे ही सब तुम्हारे कदमों में होगा | आओ और इस पिंजरे में कैद हो जाओ | कोई भी पक्षी उस पिंजरे की ओर नहीं बढ़ा |
तब बुद्ध ने शिष्य से कहा – जो अपने लक्ष्य को जानते हैं | वह अपने रास्ते से नहीं भटकते चाहे कितने भी लोभ और लालच मिले | कितने ही सोने के पिंजरे दिखाई दे | वह कभी किसी में कैद नहीं होते | पक्षी खुद से इन पक्षियों के पिंजरे में कैद नहीं होते | उन्हें स्वतंत्रता पसंद है | लेकिन इंसान ही एकमात्र ऐसा प्राणी है | जो जान पूछ कर सोने के पिंजरे में कैद होना चाहता है |
गलती एक बार करने में अच्छी लगती है | लेकिन बार-बार गलती हो तो यह समझ जाना चाहिए | कि हमारी समझ का उदय नहीं हुआ है | हमारा बोध नहीं जागा है |
शिष्य बुद्ध के चरणों में गिर गया और उसने बहुत से क्षमा मांगी और कहा – हे बुद्ध आपने मेरी आंखें खोल दी है | मैं अपने लक्ष्य से भटक रहा था | मैं पहले भी इसी तरह के लालच में पड़कर अपना जीवन बर्बाद कर चुका हूं | अब फिर से वही गलती करने जा रहा था | हम क्यों भटक जाते हैं बुध |
बुद्ध ने कहा – मन में संशय हो, दुविधा हो, लोभ और द्वेष हो, मन राग से भरा हो | तब हमारा मन कभी स्थिर नहीं हो सकता | मगर हम इन चीजों से बच सकते हैं | अपने अंदर विवेक का उदय कर, समझ का विकास कर, मन को स्थिर कर, अपने रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं | अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं |
जिस ने ठाना है, कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर कर ही रहेगा | चाहे जो जटिलताएं आ जाएं | चाहे जो स्थिति परिस्थिति बने | चाहे कितने भी लालच सामने क्यों ना खड़े हो | जिसका मन शांत है | जो क्रोध वश कार्य नहीं करता | वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेता है | और कभी अपने मार्ग से नहीं भटकता |
हमारे जीवन में भी हम कई बार अपने लक्ष्य बनाते हैं | हर बार सोचते हैं कि इन लक्ष्यों को प्राप्त कर कर ही रहेंगे | पर कुछ समय बाद हमें पता चलता है यह लक्ष्य तो बहुत कठिन है | यह तो हमारे बस में ही नहीं है | इसे तो बड़े लोग ही कर सकते हैं | पैसे वाले ही कर सकते हैं | तब हम अपने भीतर कमियां ढूंढने लगते हैं | अपने आप को यह समझाने के लिए कि हम यह कार्य नहीं कर सकते | क्योंकि हमारे पास यह सुविधा नहीं है |
वास्तव में जो लोग यह समझ गए हैं कि लक्ष्य पाने के लिए सुविधाओं की जरूरत नहीं होती | बल्कि कर्म की जरूरत होती है | सुविधाएं खुद ही खिंची चली आती है | अगर सुविधाएं ना भी हो, तो भी, जितने मुश्किल हालात से आप अपने लक्ष्य को खींच कर लाएंगे | आपका बुद्धत्व उतना ही बढ़ेगा | आपकी समझ उतनी ही बढ़ेगी और आप उतने ही ऊंचाइयों तक पहुंचेंगे | आपका लक्ष्य खुद आपकी ओर खिंचा चला आएगा | तब आपके लिए कुछ भी पाना नामुमकिन नहीं होगा | बल्कि किसी भी चीज को मुमकिन करना आपकी आदत बन जाएगी |