जिंदगी भर चिंता में मारोगे, तो जियोगे कब

किसी ने पूछा है की हम अपनी बेहोशी कैसे दूर करें | जागृत कैसे रहे | एक स्थान पर बैठकर जबरदस्ती आंखें बंद करके मुझे खुद को नहीं जानना | मुझे आत्मज्ञानी नहीं होना बस होश में जीना है | वर्तमान में जीना है |

 इस दुनिया में तीन तरह के लोग हैं | एक जो सन्यासी हो गए है | जिन्होंने संसार त्याग दिया है | दूसरे जो संसारी हैं |  जिन्हें सन्यास से कोई मतलब नहीं है | इन दोनों के मध्य एक व्यक्ति और खड़ा होता है | यह कुछ ही लोग होते हैं |  जो ना तो संसारी हो पाते हैं, क्योंकि इन्हें लगता है संसार में कुछ गड़बड़ है | वह इन्हें  साफ-साफ तो नजर नहीं आता पर इन्हें एहसास होता है | और ना ही यह सन्यासी होते हैं | क्योंकि सन्यासी जीवन इनकी समझ से परे है |  एक और  जहां एक सन्यासी के जीवन में बहुत चुनौतियां होती हैं | उसका एक ही लक्ष्य होता है | वह  खासतौर से उस लक्ष्य की ओर बढ़ता है | वही एक संसारी के जीवन में अनगिनत चुनौतियां होती हैं | ज्यादातर चुनौतियां बेवजह की ही होती है | जिनके लिए हम लड़ने मरने को तैयार हो जाते  है | संसार के भोग विलास में लिप्त यह लोग आंख पर पट्टी बांधकर जीते है |

 पर वह तीसरा व्यक्ति  जो ना संसारी है और ना ही सन्यासी है |  उसका जीवन  इन दोनों से भी जटिल हो जाता है |  क्योंकि वह संसार को छोड़ नहीं पाता |  उसकी  जिम्मेदारियां बहुत है और वह सन्यासी जीवन को पकड़ नहीं पाता | क्योंकि संसार का त्याग आसान नहीं है | फिर भी वह कोशिश में लगा रहता है, कि वह कुछ जान ले, कुछ समझ ले, यही इस  संसार में रहते हुए जागृत रहे | लेकिन क्या इस व्यक्ति के लिए जागृत होना आसान है | 

तथागत गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए बहुत सख्त नियम बनाए थे |  क्योंकि वह जानते थे कि संसारअपनी ओर खींचता है | जो भी संसार की ओर खींचा, वह एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करता है | जो स्वार्थ और लालच पर टिकी है | धन का लालच, प्रेम का लालच, अधिकारों का लालच, मान सम्मान का लालच, और इन सबसे बड़ा विपरीत शरीर का लालच, यानी सेक्स का लालच | यह सभी चीजें हमें सपने दिखाती हैं | भविष्य की कल्पना में ले जाती हैं कि ऐसा होगा वैसा होगा | बस यह कर लो तो सारे सपने पूरे होंगे | 

आपने देखा जब आप  रात में सपने देखते हैं | सपने में आप एक पूरी दुनिया, पूरी जिंदगी भी जी जाते हैं | जब तक सपना चल रहा होता है | आप हमेशा बीच में होते हैं यानी संतुष्टि नहीं होती | जैसे ही आपकी आंखें खुलती है और अगर आपको सपना याद है | तो आप हमेशा सोचते हैं कि आगे क्या होना था | 

 इसी प्रकार संसार के जो सपने हैं | वह कभी खत्म नहीं होते | हमेशा बीच में ही रहते हैं | यह कभी पूरे नहीं होने वाले |  पूरे होने का भ्रम अवश्य बना रहता है | इसी को माया भी कहते हैं | और जैसे ही  सोते समय हमारे सपने टूट जाते हैं वैसे ही, हमारी आंखें खुल जाती है | संसार में भी  हमेशा सपने टूटते हैं | क्योंकि यह सपने खुली आंखों से देखे जाते हैं | तो आंखें बंद होने पर सपने टूटते हैं यानी मृत्यु हो जाती है | बंद आंखों के सपने आंखें खोलने पर टूटते हैं | और खुली आंखों से सपने आंखें बंद होने पर टूटते हैं |

इसी कारण एक सन्यासी कठोर नियमों में बंधता है | वह साधना करता है | ध्यान करता है | वह अपने भीतर के संसार को बाहर निकालता है | क्योंकि कोई संसार बाहर की ओर नहीं है | संसार हमारे भीतर बसता है | और एक बार जब वह संसार से खाली हो जाता है | तब भी वह साधना और ध्यान जारी रखता है | क्योंकि  संसार खींचता है |  जागृति और समझ ही इससे बचा सकती है | 

एक बार तथागत गौतम बुद्ध का एक शिष्य एक युवती के प्रेम में पड़ गया | उसे चारों और वह युवती ही दिखाई देती | बुद्ध अपने शिष्य के बारे में जानते थे |  लेकिन बुद्ध चाहते थे, कि वह खुद से खुद की समझ से इस संसार के लालच से बाहर आ सके | पर धीरे-धीरे वह शिष्य बेकार हो तो चला गया | उसे ना भूख लगती, ना वह ठीक से सोता,  ना ही ध्यान और साधना में उसका मन लगता | वह आलसी हो गया था |  वह किसी भी बहाने से बस उस युवती से मिलने निकल जाया करता | जब बुद्ध ने देखा कि उनका शिष्य खुद की समझ से संभल नहीं रहा है |

 तब बुद्ध ने उस शिष्य से कहा – कितनी बार गलती करोगे, हर बार एक ही गलती दोहराना उचित नहीं है |  हर बार गिरे हो इस गड्ढे में, तुम हर बार गिरे हो,  हर बार  पछताए हो,  फिर भी उसी गड्ढे में गिरने की तैयारी कर रहे हो | समझ जाओ जाग जाओ |

पर उस शिष्य को संसार ने पकड़ लिया था | एक रात में वह विहार छोड़ कर चला गया | उससे उस युवती के साथ विवाह रचा लिया | कुछ वर्षों बाद वह शिष्य चोरी करते हुए पकड़ा गया | राजा ने उसे मृत्युदंड दिया | जब शिष्य  को सिपाही पकड़ कर ले जा रहे थे | तब वहां से तथागत गौतम बुद्ध गुजरे | बुध को देखते ही उसे याद आया कि वह बुध का शिष्य था | उसकी रहा और उसकी खोज तो कुछ और थी | और वह किस मार्ग पर भटक कर आ गया है |  वह क्या हो गया है |  एक चोर  बन गया है |

 बुद्ध ने अपने शिष्य को पहचाना और उसके पास आकर कहा – समय अभी भी नहीं निकला |हर बार पछताए हो,  पछताते ही रहे हो,  कितनी बार पछताओगे | अपनी स्मृति को प्रगाढ़ कर, ध्यान कर जो ध्यान तूने अर्जित किया था, उसे ध्यान कर, अब जब सब से छूटने वाला है, तो किसका इंतजार कर रहा है | स्मृति को जागृत कर देख तू कौन है |

 बुद्ध की बात उस शिष्य की समझ में आ गई उसकी समझ का एक दायरा खुल गया | उसने अपने ध्यान को याद किया और वह तुरंत ही ध्यान में उतर गया |  उसका रूप परिवर्तित हुआ | जो चोर दिखता था | अब तेजस्वी सन्यासी दिखाई दे रहा था | राजा को जब यह बात पता चली तब राजा ने खुद उस चोर को देखा और कहा – यह चोर नहीं हो सकता |

 राजा ने उस शिष्य से पूछा – क्या वाकई तुमने चोरी की थी | अगर तुम कह दोगे कि तुमने नहीं की तो हम तुम्हें छोड़ देंगे |

 शिष्य ने कहा – राजन जान बचाने का लालच भी लालच होता है | मुझे यह लालच नहीं है | मैंने इस संसार में रहकर चोरी की,  यह सत्य है | इस संसार में हर कोई चोर है | हर किसी को चोर बनना ही पड़ता है | कोई धन की चोरी करता है, कोई प्रेम की चोरी करता है, कोई  सम्मान की चोरी करता है,  कोई  विचारों की चोरी करता है | बिना चोरी के इस संसार में कोई काम नहीं | यहां सब लुटेरे हैं | लेकिन जो लूटने को तैयार है वही सन्यासी है |

 राजा उस शिष्य की बात से प्रभावित हो गया और उसने उस शिष्य का अपराध क्षमा कर उसे मुक्त कर दिया |

एक सन्यासी को संसार खींच सकता है | उसे पथभ्रष्ट भी कर सकता है | तो जरा सोचिए, एक ऐसे व्यक्ति को जो जागृत होना चाहता है | लेकिन संसार से छूटना नहीं,  वह  संसार में रहकर ही जागृति चाहता है | तो उसके लिए  उसका मार्ग कितना कठिन होगा |

 लेकिन कोई भी चीज या कोई भी मार्ग तब तक कठिन है | जब तक कि हम उसे कठिन मानते हैं | वास्तव में सारा खेल संकल्प का है | संकल्प शक्ति जहां जागृत हो जाती है | अब जागृत हो जाने से मतलब यह मत लगाना की इसे जागृत करना कोई कठिन काम है | बस संकल्प लेना है और उसे पूरा करना है | इसमें समस्याएं आती हैं | संकल्प टूटने का पूरा पूरा खतरा रहता है और टूट भी जाता है | तो क्या डर, फिर से कोशिश करो | मगर अधूरी कोशिश मत करना, अधूरी कोशिश खुद को धोखा देने जैसा होता है |

 पूछा है कि बिना ध्यान में बैठकर बिना जबरदस्ती आंखें बंद कर मैं कैसे जागृत हो सकता हूं |  वास्तव में  इस संसार में इतना सोच पाना भी कि मुझे जागृत होना है जागृति की ओर पहला कदम बढ़ाने जैसा है | और यह वही सोच सकता है, जिसकी आंखों में कुछ रोशनी आ गई, जो कुछ देख पाने में सक्षम हो |  जो संसार की माया का थोड़ा बहुत ही सही अनुभव कर पा रहा हो |

 पर परंतु  कुछ लोग ध्यान की ओर या जागृति की ओर इसलिए भी खींचते हैं क्योंकि वह इसे संसार का हिस्सा बना लेते है | कि हम ध्यान करेंगे तो हमें कुछ  बड़ा मिलेगा | कुछ खास होगा, कुछ चमत्कार होगा | इस दुनिया में हमारा कुछ नाम होगा और यह भी संसार की एक माया है | आप ध्यान भी करते हैं, जागृत भी होना चाहते  है | जिंदगी भर आप अपने आप को बड़ा ज्ञानी ध्यानी साबित करने में ही लगे रहते हैं | कोई आपको छोटा कह दे तो तुरंत अहंकार को चोट पहुंच जाती है |

 तथागत गौतम बुद्ध के दो तरह के शिष्य थे | पहले उनके भिक्षु जो विहार में रहते थे , संसार से बिल्कुल अलग  अपनी साधना में ही लगे रहते थे | उनके लिए नियम बहुत कठोर थे |  दूसरे  शिष्य जो संसारी थे जिन्हें उपासक कहा जाता था |  इनके लिए नियम अलग थे | यह शादी कर सकते थे | व्यापार कर सकते थे | संसार के सभी काम कर सकते थे | पर इन्हें भी कुछ नियम मानने  होते थे |  जैसे चोरी नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, नशा नहीं करना,  अत्यधिक धन इकट्ठा नहीं करना, लोगों की मदद करना, लालच नहीं करना,  सही दृष्टि उत्पन्न करना,  भिक्षु के पास जाकर ध्यान की शिक्षा लेना | 

 ऐसा इसलिए किया जाता था कि जो उपासक हैं, वह जागृत रह सके | वह संसार में रहकर भी संसार से दूर रह सके | इससे पहले की हम जागृति के मार्ग पर आगे निकले, ध्यान होश या जागृति का मतलब समझ लेना जरूरी है | हमने अपने लिए इन शब्दों के बहुत बड़े मतलब बना रखे है | ध्यान का नाम लेते ही पता नहीं आपको क्या हो जाता है | आपके दिमाग में बहुत सारी चीजें चलने लगती है | कुंडली चक्र वगैरा सब कुछ |

जबकि ध्यान का मतलब उसके शब्द में ही छुपा है | ध्यान मतलब ध्यान | जरूरी नहीं है कि आप आंखें बंद कर, बैठ कर, अपनी सांसो पर ही ध्यान दें | आप खाते हुए अपने खाने पर ध्यान दे सकते हैं | आप किसी पेड़ पर ध्यान दे सकते हैं, जो हवा से हिल रहा हो | आप किसी संगीत पर ध्यान दे सकते हैं |  ध्यान का मतलब सिर्फ इतना ही है कि हम अपने आप को एकत्रित कर सकें |  क्योंकि हम बिखरे हुए रहते हैं | पल पल में, हम कहीं से कहीं पहुंचते हैं |

 किसी एक जगह ठहराव होता ही नहीं  है | तो ध्यान केवल हमें एक ठहराव देता है  कि हम उस पल में जी सके जिस पल में हम जी रहे हैं | जब आप अपने कमरे में होते हैं और ऊपर छत का पंखा चल रहा होता है | वह कुछ आवाज करता है | कितनी बार आपने वह आवाज सुनी है |  पूरी रात में एक बार भी आपका ध्यान उस पंखे या उस पंखे की आवाज पर जाता है | तो जब आप इतने बिखरे हुए हैं | हजारों लाखों हिस्सों में बटे हुए हैं | तब आप हमेशा उस पल को खो देते हैं, जिस पल में आप जी रहे  है |

 और ध्यान देने से ध्यान करने से आप एकत्रित होते हैं | एक होता है, ध्यान की कोशिश करना, एक होता है ध्यान करना और एक होता है ध्यान लग जाना |और यह बारी-बारी से ही होता है | पहले आप कोशिश करेंगे फिर आप ध्यान करेंगे फिरआपका ध्यान लगेगा |  किसी भी एक चीज पर, आप जिस पर भी ध्यान लगाएंगे, उस वस्तु या चीज को महसूस कर पाएंगे, पूरे प्राण से , खुद पर ध्यान लगाएंगे तो खुद को भी महसूस कर सकेंगे |

 जरूरी नहीं है कि आप आंखें बंद कर जबरदस्ती बैठे रहे | पर एक संकल्प होता है, जो आप में शक्ति का संचार करता है | संकल्प विद्रोह छेड़ता है | संसार के खिलाफ |  आपके खिलाफ |  और आप को जागने में मदद करता है | जब आप संकल्प लेते हैं कि मैं 5 मिनट अपनी सांसो पर ध्यान दूंगा |  तब ध्यान के एकत्रित होने के कारण ही  आप  महसूस करते हैं  कि आपके भीतर कितना शोर है | कितनी आवाजे  है और आप कहते हैं,  मेरा ध्यान नहीं लग रहा | मैं भटक जाता हूं |

वास्तव में आप का ध्यान लगने की तैयारी कर रहा है | क्योंकि इतना शोर, इतने विचार, आपके अंदर पहले से ही है |  लेकिन ध्यान ना देने की वजह से आपको दिखाई नहीं देते, सुनाई नहीं देते, लेकिन जैसे ही आप ध्यान लगाते हैं | सब सुनाई और दिखाई देने लगता है | और आप घबराते हैं, कि यह क्या, 

ध्यान का मतलब होता है | विचारों का ना होना और यहां तो विचार ही विचार है | नहीं ऐसा नहीं है, ध्यान का मतलब होता है, देखना जो जैसा है, वैसा ही देखना, विचार है तो विचारों को भी देखना | किसी ने पूछा था  कि मेरे मन में गंदे ख्याल आते हैं,  और गंदे ख्यालों से बचने के लिए मैं ध्यान करता हूं, तो ध्यान में और ज्यादा गंदे विचार आते हैं  मैं क्या करूं |

हमारा मन घर की तरह है | जिस प्रकार हम घर में सामान सजाते हैं,  उसी प्रकार हम मन के अंदर भी विचारों को सजाते हैं |  जब हम बहुत व्यस्त रहते हैं तो घर की सफाई नहीं करते | आते हैं, अपना काम करते हैं, चले जाते हैं | लेकिन एक दिन आप का ध्यान आपके घर की साफ सफाई पर जाता है |  तब आप ध्यान से अपने घर की साफ सफाई करते  है |  तब आपको उस दिन अपने घर में वह गंदगी भी दिखाई दे जाती है | जिसका आपको पता ही नहीं था |

इसी प्रकार जब आप अपने मन की सफाई करने के लिए ध्यान करते हैं | तो जो गंदगी आपने जाने अनजाने में मन में बसा रखी है | वह तो दिखाई देगी ही, दिखाई देगी तभी तो आप उसकी सफाई कर सकेंगे | इन विचारों से भागना नहीं  है | इन्हें देखना है | देखोगे तभी तो विचार  शुन्य हो सकोगे |

 अब यह शुन्य शब्द भी बड़ा कॉन्प्लिकेटेड है |  जहां  शुन्य  कह दो वहां पता नहीं आप क्या-क्या सोच बैठेंगे |  हमारी समस्या की जड़ हमारा सोचना ही है | जब हम निर्विचार हो कर सोचते हैं, तो सत्य पाते हैं | पर जब हम अपने पूर्व विचारों से भरे हुए सोचते हैं, तो विचारों की ऐसी अनंत श्रंखला बनती है कि हम उस में खो जाते हैं |

 इसलिए ज्यादा दिमाग पर जोर ना डालते हुए | ध्यान करो, ध्यान तो करना ही पड़ेगा, ध्यान तो लगाना ही पड़ेगा |  आंखें बंद कर, नहीं कर सकते, तो आंखें खोल कर कर लो | अपने भीतर ध्यान नहीं लगा सकते, तो बाहर ही ध्यान लगा लो |  सांसो पर नहीं लगा सकते,  तो किसी चिड़िया की आवाज पर लगा लो,  किसी संगीत पर लगा लो,  कैसे भी करके अपने आप को एकत्रित करो | जैसे  ही आप एकत्रित होते हैं | वर्तमान में आना नहीं पड़ता | वर्तमान में हो जाते हैं | जिस आनंद की बात बड़े बड़े योगी करते हैं, सन्यासी करते हैं,  वह आनंद  वर्तमान में आने का है |

किसी भी चीज को ज्यादा बढ़ाओ चढ़ाओ मत,  हल्का-फुल्का लो,  आसान समझो, जीवन आसान नहीं है, पर जीवन ही आसान है,  इसे समझ कर देखो |  तुमने कोई जन्म लेने के लिए बहुत मेहनत नहीं की है |  जो जीने के लिए इतनी मेहनत कर रहे हो  और मृत्यु से डर रहे हो |  जीवन एक अवसर है | इसका उपयोग जीने के लिए करो कंफ्यूज होने के लिए नहीं | जिंदगी भर चिंता में मारोगे तो जियोगे कब , अब तो ध्यान भी एक चिंता बन गया है यह कहना  कितना गलत है | 

1 thought on “जिंदगी भर चिंता में मारोगे, तो जियोगे कब”

  1. Pawan kumar Sharma

    Pranam gurudev
    Ye sansar mein rehte hue bhi sansari na hona ye kaise ho sakta hai
    Hum jab yaha hai to khaenge anand dukh sabhi ko jhelenge ,
    Ye thoda samajh nahi aaya hai

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