एक राजा के मन में एक सवाल आया कि जब ईश्वर सब कुछ अच्छा और बहुत अच्छा बना सकता था | तो उसने दुनिया में इतना दुख दर्द क्यों बना दिए | क्या दुनिया में होने वाले सभी बुरे कामों में ईश्वर को मजा आता है | क्योंकि जो कुछ भी हो सकता है, सब उसके नियंत्रण में है | वह चाहे तो दुनिया को बिल्कुल अच्छा बना सकता था | कोई बुराई ना हो, कोई दुख ना हो, कोई दर्द ना हो | फिर ईश्वर ऐसा करता क्यों नहीं है |
राजा ने दरबार में सभी को अपने सवाल से अवगत कराया और कहा – जो कोई भी मेरे सवाल का सही और सटीक जवाब देगा, उसे मै, जो वह चाहेगा, वह दूंगा |
यह सुनकर उस राज्यसभा के कुछ विद्वान लोग खड़े हुए और कहा – इसके जवाब के लिए कोई बड़ी दुविधा नहीं है इसका जवाब तो हम भी दे सकते हैं |
ईश्वर ने जो सृष्टि बनाई है | अच्छी ही बनाई है | सुख से भरी हुई ही बनाई है | पर हमारे मन के कारण इसमें दुख उत्पन्न होता है | इसमें दोष ईश्वर का नहीं है | हमारे मन का है | वही हमें भटका देता है |
राजा ने कहा – पर क्या आप हमें यह बताएंगे कि हमारा मन सही रहे, वह कभी ना भटके, वह हमेशा सत्य की ओर चले, ऐसे मन का निर्माण, ईश्वर कर भी तो सकता है | फिर उसने हमारे पास ऐसा मन क्यों छोड़ा जो दुखों को खींच लेता है | हमें दुख बना देता है |
राजसभा के दूसरे विद्वान ने कहा – महाराज जैसे ईश्वर होता है वैसे ही शैतान भी होता है | ईश्वर की बनाई कृति यानी हम मनुष्यों में, उस शैतान ने मन का बीज डाल दिया | इसलिए मन हमेशा शैतान की ओर भागता है | इसमें दोष उस शैतान का है |
राजा ने कहा – क्या शैतान ईश्वर से ज्यादा ताकतवर है |
विद्वान ने कहा – नहीं इस सृष्टि में सबसे शक्तिशाली ईश्वर ही है |
राजा ने कहा – तो फिर ईश्वर शैतान को खत्म कर, अपनी बनाई कृति यानी हमारा दोष, क्यों नहीं मिटा देता |
और अगर वह ऐसा करने में वह सक्षम नहीं है | तो इसका मतलब शैतान ज्यादा ताकतवर है | ज्यादा शक्तिशाली है | तो क्या हमें शैतान की शरण में नहीं हो जाना चाहिए |
राजा की बात सुनकर सभी शांत हो गए | किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई राजा की बात का उत्तर दे सके | इसके बाद राजा ने घोषणा की जो कोई भी अपने उत्तर से मुझे संतुष्ट कर देगा | उसकी हर इच्छा पूरी की जाएगी, हमेशा जब तक वह रहेगा |
इसके बाद राजा के पास दूर दूर से देश-विदेश से विद्वान आने लगे सबने अपने-अपने उत्तर रखें पर कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर पाया |
बहुत दिन गुजर गए आखिरकार राजा ने मान लिया कि इस दुनिया में कोई नहीं है जो उनके प्रश्न का का जवाब दे सके |
इसी पर चर्चा करने के लिए एक दिन राजसभा बुलाई गई |
राजा ने कहा – हमने एक से एक विद्वानों से चर्चा की पर कोई भी हमारे सवाल का ठीक जवाब नहीं दे पाया | सब कही सुनी बातें ही दोहरा रहे हैं | क्या हम मान ले कि अब इसका जवाब हमें अपने जीवन में कभी नहीं मिलेगा |
तभी राजा का रसोईया राज दरबार में उपस्थित हुआ और उसने कहा – महाराज आपके लिए एक ऐसी सब्जी मैंने बनाई है जिसे खाने के बाद आपके सारे उत्तर मिल जाएंगे | ऐसा स्वाद आज तक किसी ने भी नहीं लिया है |
राजा ने कहा – तुम्हारी बातों से लगता है | सब्जी बहुत ही स्वादिष्ट होगी | हमारे सामने इसे जल्दी पेश किया जाए |
रसोइए ने कहा – महाराज सब्जी तो यहां नहीं आ सकती | आपको सब्जी तक जाना पड़ेगा | नहीं तो सब्जी का स्वाद खराब हो जाएगा |
राजा ने कहा – अच्छा अगर ऐसा है तो हम तुम्हारे साथ चलते हैं |
राजा के साथ सभी राजदरबारी भी साथ चले | रसोईया राजा को एक लौकी के पौधे के पास ले गया उस पौधे पर एक लौकी लगी थी |
रसोइए ने कहा – महाराज यही है सब्जी, खा लीजिए |
यह सुनते ही राजा को क्रोध आ गया और उसने कहा- क्या तुम हमारे साथ मजाक कर रहे हो, यह सब्जी है | लेकिन तुम्हें इसे बनाया नहीं है | क्या हम इस कच्चे लौकी को खाएंगे |
रसोइए ने कहा – महाराज क्षमा कीजिए मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है | पर आप भी तो ऐसा ही कह रहे हैं कि ईश्वर ने सृष्टि बिना दुख के क्यों नहीं बनाई |
राजा ने कहा – अपनी बात स्पष्ट करो
रसोइए ने कहा – यह लौकी की बेल एक बीज से निकली है | अगर बीज को दुख नहीं होगा | वह अपना सीना नहीं चीरेगा | तो यह लौकी की बेल भी नहीं निकलेगी | और इस पर यह लौकी नहीं आएगी और आप इस लोकी कौ नहीं खा पाएंगे | और अगर यह बेल आपको लौकी ना तोड़ने दे, तो आप इस लौकी की सब्जी बनाकर कैसे खाएंगे | लौकी तोड़ने पर बेल को तो दर्द होगा ही, दुख भी होगा |
राजा ने कहा – तुम कहना क्या चाहते हो, यह अभी भी स्पष्ट नहीं हुआ है |
रसोइए ने कहा – मैं आपको अपनी बात स्पष्ट कर लूंगा पर इसके लिए आपको दरबार में ही जाना होगा | मैं वही इस लौकी की सब्जी बनाकर आपके लिए लेकर आता हूं |
राजा ने कहा – ठीक है जैसा तुम कहते हो | हम दरबार में जा रहे हैं | जल्दी ही इस लौकी की सब्जी बनाकर लेकर आओ |
राजा अपने दरबारियों के साथ दरबार में बैठ गया | कुछ देर बाद एक बर्तन में ढक कर रसोईया सब्जी को लेकर आया |
रसोइए ने कहा – महाराज इससे पहले कि आप यह सब्जी खाए मुझे आपसे अभयदान चाहिए | मेरी बात पूरी सुने बिना मुझे मृत्युदंड नहीं मिलना चाहिए |
राज ने कहा – डरो नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा | तुम्हें अपनी पूरी बात कहने का मौका मिलेगा |
रसोइए ने वह सब्जी राजा के सामने रख दी |
राजा ने सब्जी को देखा तो चौंक गया और कहा – यह क्या मजाक कर रहे हो | क्या तुम हमारी हंसी उड़ाना चाहते हो | इसमें तो कच्ची लौकी ही रखी है | तुमने इसे काटा और पकाया नहीं है |
रसोइए ने कहा – महाराज इस लौकी को बेल से तोड़कर पहले ही मैंने उस बेल को और उस लौकी को दुख और दर्द दिया है | अब इस लौकी को काट कर इसे दर्द देना क्या उचित है | उसके बाद इसे तेल में तला जाएगा फिर इसमें भयानक-भयानक मसाले डाले जाएंगे | जो इस लोकी के दर्द को बढ़ा देंगे | और महाराज तब जाकर आपको इसमें स्वाद आएगा | और आप कहेंगे – वाह क्या सब्जी बनाई है |
राजा ने कहा – तुमने अभी भी अपनी बात स्पष्ट नहीं की है | अपनी पूरी बात स्पष्ट करो | तुम कहना क्या चाहते हो |
रसोइए ने कहा – महाराज अगर सृष्टि का रचयिता सबको सुख ही दे | तो सभी बीज बीज ही रह जाएंगे | वह अपना बलिदान क्यों देंगे | किसी पेड़ को बनने के लिए, किसी पौधे को उगने के लिए, किसी फल को आने के लिए | क्योंकि बीजों का भी तो अपना सुख है | वह नष्ट होते हैं | अपना बलिदान देते हैं | तब जाकर सृष्टि आगे बढ़ती है |
महाराज सृष्टि के निर्माण में तीन चीजों का योगदान है | पहला विनाश है | दूसरा रचना है | तीसरा पालन करना है | इसके बाद फिर से विनाश है | और यह चक्र चलता रहता है | इसी से सृष्टि आगे बढ़ती है |
बीज के विनाश से पौधे का जन्म होता है | पौधा अपनी पूरी उम्र तक रचना धारण करता है | और उसका पालन करता हुआ वह बड़ा होता है | फल देता है | और फिर वह विनाश को प्राप्त होता है |
पूरी सृष्टि तीन हिस्सों में बटी है | और इनका एक दूसरे के बिना कोई अस्तित्व नहीं है | जैसे दिन और रात, और उनके मध्य संध्या का समय |
जैसे स्त्री और पुरुष और उनके बीच में अर्धनारीश्वर यानी किन्नर |
जैसे सुख और दुख और उनके बीच में मोक्ष न सुख और दुख |
राजा ने कहा – बहुत गहरी बात बोल रहे हो, लगता है, तुम्हें बड़ा ज्ञान है | यह बताओ यह मनुष्य बुरे कर्म क्यों करता है | क्या उससे यह ईश्वर कराता है या कोई शैतान कराता है |
रसोइए ने कहा – सृष्टि के रचयिता ने कभी किसी को नहीं कहा कि वह बुरे कर्म करें | बल्कि उसने हमें एक बुद्धि दी है | जो हमें बताती है कि क्या सही है और क्या गलत है | सृष्टि में मौजूद तीन चीज में से हम किसी एक चीज को चुनाव कर सकते हैं | चुनने की आजादी हमें दी गई है | पर गलती करने पर अपनी गलती को मानना हमारी आदत नहीं है | इसलिए हमने शैतान का निर्माण किया है | ताकि हम, सब कुछ, उस पर थोप सके और इसी कारण शैतान ताकतवर है |
जिस दिन हम अपनी गलतियों को मानना शुरू कर देंगे | शैतान कमजोर हो जाएगा हम ही शैतान है |
राजा ने कहा – तो क्या ईश्वर हमारे सुख और दुख के लिए उत्तरदाई नहीं है | अपनी बात को सही तरह से स्पष्ट करो
रसोइए ने कहा – महाराज ईश्वर केवल निर्माण करता है | विनाश करता है | पालन करता है | उसकी सृष्टि से आप क्या उठाते हैं यह आपका ही निर्णय है | इसमें वह कुछ नहीं करता |
राजा ने कहा – हम तुम्हारी बात से सहमत नहीं है | इसे साबित करो
रसोइए ने कहा – आज मैं आपके लिए इस लौकी की सब्जी बनाकर लाना चाहता हूं | उसके बाद ही मैं अपनी बात स्पष्ट कर सकूंगा |
राजा ने इजाजत दे दी | और रसोईया लौकी की सब्जी बनाकर दरबार में ले आया | राजा ने उस सब्जी को खाया और रसोइए पर चिल्लाया |
यह क्या सब्जी बनाई है | लौकी को उबालकर ही ले आया है | इसमें ना मसाले है, ना नमक है, ना मिर्ची है | क्या इस तरह का खाना खाएंगे हम |
रसोइए ने कहा – महाराज आपको यह सब्जी पसंद नहीं है | यह आपका निर्णय है | इसमें ईश्वर कुछ नहीं कर रहा | जबकि यह बात सत्य है कि यही सब्जी आपकी सेहत के लिए उचित है | मसालों के साथ जिस सब्जी का निर्माण किया जाएगा | वह आपकी सेहत के लिए सही नहीं है | अब आप निर्णय ले सकते हैं कि आपको कौन सी सब्जी खानी है | इसमें ईश्वर कुछ नहीं कर रहा | वह बस इतना ही करता है की आपको एक लौकी दे सकता है | ऐसी चीजें दे सकता है | जिससे आप तेल और मसाले निकाल सके | फिर आप उसके साथ क्या करते हैं | यह आपका निर्णय है |
राजा ने कहा – बहुत खूब तुमने बहुत अच्छी तरह से समझा दिया कि अपने अच्छे बुरे के लिए हम ही जिम्मेदार हैं | हमारे कर्म ही हमें वापस लौट कर मिलते हैं | कर्म करते समय या कर्म के बारे में सोच के समय, हमें यह पता होता है, कि यह अच्छा है या बुरा | जितना प्रभाव बुरा कर्म करने का पड़ता है | इससे ज्यादा बुरा कर्म सोचने का पड़ता है | फिर हमारे साथ दुर्घटनाएं हो जाती है | दुख उत्पन्न हो जाता है और हम रोते है, कि हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है | जबकि इसके लिए जिम्मेदार भी हम ही होते हैं |
इस सृष्टि में अच्छी और बुरी दोनों ही चीज है | हमारे लिए क्या अच्छा है, और क्या बुरा है इसका निर्णय हम ही लेते हैं | तुमने हमें बहुत सही तरीके से समझाया | अब जो तुम्हें चाहिए वह मांग लो |
रसोइए ने कहा – महाराज मुझे तो केवल आपकी सेहत चाहिए | आपकी सेहत के अनुरूप भोजन बनाने की अनुमति दें | क्योंकि जो भोजन आप अभी तक अपने स्वाद अनुसार खा रहे हैं | वह आपकी सेहत के लिए सही नहीं है |
राजा बहुत खुश हुआ और उसने रसोइयों को बहुत सारा इनाम दिया और उससे पूछा – तुम्हें जो बताया यह ज्ञान तुम्हें कहां से मिला |
रसोइए ने कहा – सब यही बिखरा पड़ा है | अपनी दुविधा में फंसे रहने के कारण बस हम देखते नहीं है | सारे उत्तर यही है | उत्तर ही उत्तर है | सवाल तो हम ही खड़े करते है | क्योंकि अपने आप को देखना, हम भूल गए हैं |
आपका बहूत धन्यवाद गुरुजी!🙏🙏🙏