मन का मंत्र-जो सोचोगे वही मिलेगा

एक व्यक्ति अपने जीवन से बहुत परेशान था | सारे काम उसके बिगड़ जाते थे |  सफलता उसके हाथ ही नहीं लगती   थी | घर में हमेशा क्लेश बना रहता था | उसे एक मंत्र चाहिए था जिससे उसके घर की सारी परेशानियां खत्म हो जाए  और वह दुखी होना छोड़ दे | उसने कई लोगों से कई ज्ञानियों से कई महान लोगों से एक ऐसे मंत्र की मांग की, जिसको पढ़ने से उसकी सारी सुविधाएं सारे दुख दूर हो जाएं | उन लोगों ने, उन ज्ञानियों ने और उन महान लोगों ने उसे बहुत सारे मंत्र दिए | उसने भी हर मंत्र को आजमाया | हर मंत्र के साथ उसे लगता कि अब तो सब ठीक हो जाएगा पर कुछ ठीक नहीं हो रहा था |

 तब उस व्यक्ति ने एक  गुरु के बारे में सुना, उसने सुना कि वह गुरु सबके दुख हर लेते  है | तो उसने सोचा कि गुरु से मिला जाए और उनसे ही मंत्र लिया जाए ताकि मेरे दुख दूर हो सके | इसलिए वह गुरु को ढूंढता हुआ एक जंगल की ओर गया और जंगल में उसे एक आश्रम दिखाई दिया, वहां वह गुरु से मिला और कहा – 

गुरुदेव बड़ा दुखी हूं मैं,  मेरे दुख हर लो |

गुरु मुस्कुराए और गुरु ने कहा – इस दुनिया में तो सभी एक से बढ़कर एक बड़े दुखी हैं तुम कितने बड़े दुखी हो |

व्यक्ति ने कहा –  मैं सबसे ज्यादा, सबसे बड़ा दुखी हूं |

गुरु ने कहा – मुझसे क्या चाहिए |

व्यक्ति ने कहा – बस एक छोटी सी चीज चाहिए गुरुदेव एक ऐसा मंत्र दे दो जिसे पढ़ते ही मेरे सारे दुख दूर हो जाए | 

गुरु ने कहा –  मंत्र ऐसे ही नहीं मिलते हैं, उसके लिए कुछ करना पड़ता है, अगर मैं तुमसे कुछ करने के लिए कहूं तो क्या तुम करोगे और जैसा मैं कहूंगा बिल्कुल वैसा ही करना होगा |

व्यक्ति ने कहा – हां बिल्कुल जैसा आप कहेंगे मैं बिल्कुल वैसा-वैसा करूंगा जो रीति रिवाज बताएंगे सारे निभाऊंगा सारे यज्ञ हवन पूजा पाठ सब कर डालूंगा कुछ नहीं छोडूंगा |

गुरु ने कहा – यह सब तो बहुत आसान चीजें हैं, मंत्र पाने के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है, करोगे |

व्यक्ति ने धीरे से कहा –  क्या, गुरुदेव दहकते हुए अंगारों पर चलना है |

गुरु ने हंसते हुए कहा –  नहीं-नहीं इतना आसान काम भी नहीं करना है |

यह सुनकर उस व्यक्ति की हालत खराब हो गई वह सोचने  लगा पता नहीं गुरुदेव मुझसे क्या करवाने वाले  है | हर चीज इन्हें आसान लग रही है, तो भारी क्या है ?

व्यक्ति ने कहा –  गुरुदेव आप बता क्यों नहीं देते कि मुझे क्या करना है, मैं सब करूंगा |

गुरु ने कहा – जैसे तुम अपने घर से यहां तक आए हो वैसे ही यहां से अपने घर तक जाना और मन में यह कहते हुए जाना की मैं बहुत सुखी हूं,  मैं बहुत सुखी  हूं,  मैं बहुत  सुखी  हूं |

यह सुनते ही व्यक्ति खुश हो गया और उसने कहा –  बस गुरुदेव इतना सा ही काम है  इसे तो मैं ऐसे ही कर लूंगा |

गुरु ने कहा – रुको जरा,  पूरी बात तो सुन लो , जब तुम यह बात मन में दोहरा रहे हो, तब तुम्हारे मन में बंदर का ख्याल नहीं आना चाहिए और अगर तुम्हारे मन में बंदर का ख्याल आ गया तो सब बेकार हो जाएगा |

व्यक्ति ने कहा – इस काम को तो मैं  बहुत ही आसानी से कर लूंगा |

वह व्यक्ति यह कहकर वहां से अपने घर की ओर चल दिया | आश्रम से निकलते ही उसने मन में कहना शुरू किया कि मैं बहुत सुखी हूं | पर ऐसा कहते ही उसके मन में बंदर का ख्याल आता | जब भी वह  कहता मैं सुखी हूं तभी गुरु की बंदर वाली बात याद आती और वह और  ताकत लगाकर कहता कि मैं सुखी  हूं  लेकिन बंदर का ख्याल भी और अधिक गहरा जाता | 

ऐसा कहते कहते  वह  रास्ते से जा रहा था कि रास्ते में उसे बंदर दिखने शुरू हो गए | वह  जिधर भी गर्दन घुमाए    बंदर ही बंदर दिखाई दे |  उसने सोचा आते समय तो यह बंदर कहीं नहीं दिखे थे, अब क्यों दिख रहे हैं |  अपने मन में मैं सुखी हूं, सुखी हूं की बात करता करता वह घर पहुंच गया और घर पहुंचकर अपनी पत्नी से कहा – बंदरिया  बहुत भूखा हूं बंदर परोस दो | 

मुंह से बंदर शब्द निकलते ही उसका मुंह खुला का खुला रह गया | उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया | उसने सोचा आज से पहले तो कभी उसके मन में बंदरों का इतना ख्याल नहीं आया था, जितना अब आ रहा है और  हर जगह बंदर ही दिखाई दे रहे हैं |

वह सब छोड़ वापस गुरु के आश्रम की ओर भागा, आश्रम में पहुंचकर गुरु के चरणों में गिर गया और कहा – गुरुदेव यह क्या हो गया कुछ समझ नहीं आ रहा, सब जगह बंदर ही बंदर दिखाई दे रहे हैं | आपने कहा था कि बंदर का ख्याल भी नहीं आना चाहिए मगर मेरी तो जुबान  पर भी बंदर ही बैठ गया है | अब से पहले इतने बंदर कभी नहीं दिखे |  आपने जो मंत्र दिया था वह भी खराब हो गया मुझे मंत्र मिला ही नहीं |

गुरु ने कहा – तुम्हें मंत्र मिल चुका है, बस तुम्हें उसका उपयोग करना सीखना है |

व्यक्ति ने कहा – पर गुरुदेव जैसा आपने कहा था, वैसा मैं पूरा नहीं कर पाया, फिर मंत्र कैसे काम करेगा |

गुरु ने कहा – पहले तुम इस मंत्र को समझ लो अगर तुम ठीक-ठीक समझ गए तो यह मंत्र हमेशा तुम्हारे  लिए  काम करेगा |

व्यक्ति ने कहा – गुरुदेव जल्दी से समझाइए मैं समझने के लिए तैयार हूं |

 गुरु ने कहा –  पर समझने से पहले याद रखना तुम्हारे मन में बंदर का ख्याल नहीं आना चाहिए |

व्यक्ति गुरु के चरणों में गिर गया और उसने कहा – गुरुदेव मुझे तो आपके पीछे भी  बंदर ही दिख रहा है | देखो  उस पेड़ पर केला खा रहा है |

गुरु जोर से हंसे और कहा – हमारा मन ही हमारा मंत्र है | हमारे साथ वही होगा जो हमारे मन के भीतर गहराई में चल रहा होगा | जैसे जब तुम पहली बार इस आश्रम की ओर आए थे | तब तुम्हें बंदर नहीं दिखे थे और अगर कुछ बंदर दिख भी गया होगा तो तुमने इस पर ध्यान नहीं दिया,  क्योंकि तुम्हारे मन की गहराई में बंदर नहीं थे |  पर जब तुम यहां से वापस गए तब जो तुम्हारे मन की गहराई में होना चाहिए था, वह तुम्हारी जबान पर था, यानी मैं सुखी हूं  लेकिन यह मन की गहराई में नहीं था | तुम जिस चीज से बचना चाहते हो वही मन की गहराई में पहुंच जाती है |  तुम बंदर से बचना चाहते थे तो तुम्हारे मन की गहराई में बंदर ही बैठ गए |  इसलिए तुम्हें हर वह बंदर दिखा जो रास्ते पर था और वहां भी दिखा जहां कोई बंदर नहीं था, जैसे तुम्हारी पत्नी में  तुम्हारे भोजन में और हो सकता है तुम्हें मुझ में बंदर दिख जाए |

 मन की गहराई में अगर यह मंत्र है  कि मैं दुखी हूं,  मेरे पास कम है, तो तुम्हारे पास चाहे जितना आ जाए कितना भी सुख आ जाए, तुम  उससे  भी दुख ही निर्मित कर लोगे और हमेशा कहोगे कि मैं दुखी हूं, मेरे पास कम है |इसके उल्टे अगर किसी के मन की गहराई में यह बात हो कि मेरे पास बहुत है और मैं सुखी हूं |  तो चाहे उसके पास  चीजें भले ही कम क्यों ना हो,  दुख ही क्यों ना आया हो,  वह उनसे भी सुख निर्मित कर लेगा | तुमने देखा 36 प्रकार का भोजन होने पर भी कोई दुखी हो सकता है और किसी को केवल दो सुखी रोटी मिल जाए  तो वह उसमें भी सुख ढूंढ़ लेता है |जिस प्रकार तुमने बंदर ढूंढ लिए |क्या अब तुम समझे  कि इस मंत्र को तुम कैसे सिद्ध करोगे |

व्यक्ति ने कहा – गुरुदेव मैं समझ गया हूं | हमारी लगातार चलने वाली सोच हमारे मन के भीतर बैठ जाती है | मैं लगातार शब्दों का उच्चारण मुख से जरूर कर रहा था पर मेरी सोच बंदरों पर ही चल रही थी, तो वही मुझे मिले |इसी तरह मैं सुख चाहता हूं पर मेरी सोच में दुख ही तैरता रहता है | संपत्ति कम ही लगती रहती है | हमेशा उल्टा ही सोचता रहता हूं | इसीलिए यह मंत्र मेरे लिए उल्टा ही काम करता है | मन का मंत्र काम करता है, मैं यह जान गया हूं | इसे उल्टा या सीधा करना हमारे हाथ में ही है |

गुरु ने कहा – वास्तव में हमारे अंतर में हमारे मन में जो भी चलता है, वह एक साधना की तरह होता है | इस प्रकार कोई भी  साधना  करने से उसका फल अवश्य मिलता है | उसी प्रकार अगर मन में गलत विचार गलत सोच चल रही होगी तो उसका फल अवश्य मिलेगा, ठीक इसी प्रकार अच्छी सोच, अच्छे विचार रखोगे तो इनकी साधना खुद-ब-खुद मन के भीतर चलती रहेगी और वही तुम्हें मिलेगा |वह व्यक्ति गुरु का धन्यवाद कर वहा से चला गया |

 इसी प्रकार हमारे जीवन में भी हम अपना दुख निर्मित करते हैं |  हम नहीं सोच पाते कि हमारे पास क्या है  हम हमेशा यही सोचते रहते हैं कि हमारे पास क्या नहीं है | जो नहीं है उसके लिए दुख की साधना करते है |  तो वही हमें मिलता है | 

अब सवाल आएगा कि क्या हमें अधिक की कामना नहीं करनी चाहिए | बिल्कुल करनी चाहिए पर वर्तमान में जो आपके पास है उसे अनदेखा करके नहीं , क्योंकि जो अधिक है वह आपको भविष्य में मिल सकता है पर अभी तो नहीं है और जो है वही सुख है |

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