बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे | रास्ते में उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति को देखा | वह वृद्ध व्यक्ति कभी जोर-जोर से हंसता, कभी रोता, उसके आंखों से आंसू बह रहे थे | वह पागल सा प्रतीत हो रहा था | बुद्ध उस व्यक्ति के पास पहुंचे,
वह वृद्ध व्यक्ति बुद्धा को देखते ही उनके चरणों में गिर गया और बोला – “आपकी सभी कहीं बातें सत्य हैं मैं ही उन्हें नहीं समझ पाया था | मैं अब तक आपका विरोध ही कर रहा था लेकिन आज मैंने जाना कि आप जो कहते हैं वह बिल्कुल सत्य है |”
बुद्ध ने उस वृद्ध व्यक्ति के आंसू पोंछे अपनी झोली से भोजन निकाल कर दिया | वह वृद्ध व्यक्ति बहुत भूखा था | उसने भोजन लिया और वह उसे खाने लगा | भोजन के हर निवाले के साथ वह कभी रोता कभी हंसता, यह सब कुछ बुद्ध के शिष्य भी देख रहे थे |
बुद्ध के शिष्य ने बुद्ध से पूछा – हे बुद्ध इन महानुभाव को हुआ क्या है क्या इनका मानसिक संतुलन सही है |
बुद्ध मुस्कुराए और बोले – उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई है, जाओ और उनसे ज्ञान प्राप्त करो,
वह शिष्य उस वृद्ध व्यक्ति के पास पहुंचा और बोला – हे महानुभाव मैं आपकी हंसने और रोने का कारण नहीं समझ पा रहा हूं, क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आप ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं | वह व्यक्ति बोला कुछ वर्षों पहले मैं महात्मा बुद्ध से मिला, मैंने उनके उपदेश सुने लेकिन तब मुझे उनके उपदेश बेकार लगते थे | मैं समझता था कि जीवन जीने के लिए उनके उपदेश उपयोगी नहीं है, अतः मैंने बुद्ध की किसी बात को नहीं माना यहां तक कि मैंने लोगों के साथ मिलकर उनके विरुद्ध षड्यंत्र भी रचे | ताकि लोग उनके बहकावे में ना आए, मुझे याद है बुद्ध ने अपने उपदेश में कहा था कि अधिक धन संग्रह करना दुख को बढ़ावा देता है | उन्होंने कहा था कि नशा नहीं करना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए, लेकिन यही तो मैं करता था और इसी में मुझे आनंद आता था | धन का संग्रह करना, अधिक से अधिक मदिरापान करना, झूठ बोलकर व्यापार को बढ़ाना | इसीलिए बुद्ध की बातें मुझे अच्छी नहीं लगती थी |
लेकिन मैं यह भी देखता था कि बुद्ध की बातें मानने वाले लोग बड़े खुश हैं | हालांकि इनके पास कुछ ज्यादा नहीं है | लेकिन वह हमेशा खुश दिखाई देते थे | जिस कारण उन लोगों के प्रति मेरे मन में ईर्ष्या भी उत्पन्न हुई | इसी कारण मैं रो रहा हूं कि यह बातें मुझे पहले समझ क्यों नहीं आई, आज मेरे पास समय नहीं है, मैं वृद्ध हो गया हूं, तो तब यह बातें मेरी समझ में आई है | मैं हंस इसीलिए रहा हूं कि यही गलती सभी लोग कर रहे हैं और उन्हें भी नहीं पता कि वह गलती किए जा रहे हैं और वह भी मेरी तरह अपने अंतिम समय में इस बात को समझेंगे और पछताएंगे कि शायद वह पहले ही इन बातों को समझ जाते |
मुझे याद है कि बुद्ध ने कहा था – जैसे हमारे विचार होते हैं वैसे ही हम बन जाते हैं |
शिष्य ने कहा -आपने जो ज्ञान प्राप्त किया, क्या आप उसे हमारे साथ साझा करेंगे, जिससे कि हम सभी का ज्ञान वृद्धि हो और हम भी जीवन की गहराइयों को समझ सके |वह वृद्ध व्यक्ति बोला आप तो महात्मा बुद्ध के शिष्य हैं | बुद्ध के समान जीवन की गहराइयों को किसी ने नहीं समझा |आपको जो ज्ञान बुद्ध दे सकते हैं, मैं नहीं दे सकता लेकिन फिर भी जो मैंने समझा है, मैं आपको अवश्य बताऊंगा |
जीवन के अंतिम पड़ाव पर आकर मैंने यह जाना, जितने भी मनुष्य है, एक प्रतिस्पर्धा में शामिल हैं, वह दौड़ रहे हैं एक दूसरे से आगे निकलने के लिए और यह दौड़ बचपन से ही शुरू हो जाती है | जब मैं छोटा था तब मैं अपने मित्रों से आगे रहना चाहता था | मैं चाहता था कि मेरे पास उनसे ज्यादा खिलौने हो उनसे अच्छे कपड़े हो | मेरी मां बहुत अधिक सख्त थी, तब मन में ख्याल आ जाता था कि वह मर जाए, तो मुझे स्वतंत्रता मिले | लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो मैं सोचने लगा कि मैं जल्दी से बड़ा हो जाऊं, तो सभी बड़े लोगों की तरह मैं भी स्वतंत्र हो पाऊंगा और अपनी मर्जी से सभी खिलौने और मिठाइयां ले पाऊंगा और इसी तरह धीरे-धीरे बचपन गुजर गया युवा हुआ तो सभी खिलौने और मिठाइयां व्यर्थ लगने लगी |
लेकिन दौड़ अभी भी जारी थी | अब मैं अपने मित्रों से ज्यादा धन कमाना चाहता था ताकि मैं अच्छे कपड़े पहन सकूं अच्छा घर बना सकूं और मैं उन्हें दिखा सकूं कि मैं उनसे अधिक सम्मानित व्यक्ति हूं | इसके लिए मैंने षड्यंत्र रचे, झूठ बोला, धोखा भी दिया, लेकिन यह सब करते समय मुझे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि मैं कुछ गलत कर रहा हूं | कुछ समय पश्चात मेरे माता-पिता ने मेरा विवाह कर दिया | वह जो स्त्री मेरे जीवन में आई थी, वह बहुत ही सुंदर थी | उसकी हर बात मुझे अच्छी लगती थी | वह हमेशा मेरा साथ देती थी, बहुत समय बीत जाने के बाद भी हमारी कोई संतान नहीं हुई, मैं हमेशा चिंतित रहता था कि मेरी कोई संतान नहीं है | तो मेरी बुढ़ापे की लाठी कौन बनेगा |
जब मैं अपने मित्रों के घरों में उनके बच्चों को खेलते देखता तो मुझे उनसे बहुत ईर्ष्या होती और मैं सोचता कि काश मेरे घर में भी कोई बच्चा होता | लेकिन जल्दी वह समय भी आ गया, आखिरकार मेरे घर में एक पुत्र ने जन्म लिया | तब मैं बहुत खुश हुआ | ऐसी खुशी मुझे आज तक नहीं हुई थी | मुझे ऐसा लगा कि सब कुछ जैसे, मुझे मिल गया | अब कुछ नहीं चाहिए लेकिन कुछ समय पश्चात मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरा एक पुत्र और होता तो मेरे दोनों कंधे मजबूत होते | इश्वर ने फिर से मेरी बात सुनी और मैं एक बार फिर एक पुत्र का पिता बना |मैंने अपने पिता के व्यापार को बहुत आगे बढ़ाया |
एक दिन मेरी पत्नी ने मेरे पास आकर मुझसे कहा – यह सारा व्यापार तो तुम्हारा बनाया हुआ ही तो है तुम्हारे पिता ने तो इसे केवल शुरू किया था | आज जहां तुम हो वह सब तुम्हारी मेहनत है, वैसे भी तुम्हारे माता-पिता की उम्र हो गई है, उन्हें अब तीर्थ पर चले जाना चाहिए |
उसकी बात मुझे सही लगी और मैंने अपने पिता से इस बारे में बात की लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया उसके बाद से उनकी हर बात मुझे गलत लगने लगी | वह मुझे व्यापार में निर्णय लेने की स्वतंत्रता नहीं दे रहे थे | मुझे काम के लिए उनसे पूछना पड़ता था | अब मैं स्वतंत्र होना चाहता था | और एक बार फिर से ईश्वर ने मेरी सुन ली, मेरे पिता बहुत बीमार हो गए और तब मुझे लगा कि वह जल्दी ही प्राण त्याग देंगे इस बात से मुझे दुखी होना चाहिए था, मेरे चेहरे पर दुख के भाव भी थे, लेकिन मैं अंदर से कहीं ना कहीं खुश था कि अब मैं अपने निर्णय पूर्ण रूप से स्वतंत्र होकर ले सकूंगा | उनकी हालत अब ऐसी हो गई थी कि वह बोल भी नहीं सकते थे | वैद्य ने मुझे बताया कि उनके पास अब ज्यादा समय नहीं है, जिस को भी भुलाना है बुला लो ताकि वह सभी मिल सके | मेरे पिता को इस अवस्था में 6 दिन से ज्यादा हो गए |
मैं अपने पिता से मिलने गया तब मेरी पत्नी भी पीछे से आई और मुझसे बोली – सभी लोग तो तुम्हारे पिता से मिलकर चले गए हैं | यह अब किसका इंतजार कर रहे हैं यह मरते क्यों नहीं |
अपनी पत्नी की सभी बातें मुझे अच्छी लगती थी | वह एक अच्छी औरत थी सही बात करती थी, उसकी कोई बात मुझे कभी गलत नहीं लगी, तो मुझे भी लगने लगा कि ऐसी अवस्था में पड़े रहने से अच्छा है की वह मर जाए ताकि उन्हें इस जीवन से मुक्ति मिले |अगले दिन जब मैं उठा और अपने पिता के कमरे में गया, मैंने देखा कि मेरे पिता की मृत्यु हो चुकी है, मेरी मां उनके सिरहाने बैठी रो रही है, मेरी आंखों में भी आंसू आ गए और मैंने निर्णय लिया कि मैं अपने पिता की अंतिम यात्रा को बहुत ही भव्य तरीके से निकाल लूंगा ताकि सब देख सकें कि मैं अपने पिता से कितना प्रेम करता था | मैंने यही किया मैंने अपने पिता की अंतिम यात्रा बहुत ही भव्य तरीके से निकाली, सभी लोग अचंभित थे | आज तक उन्होंने ऐसी भव्य यात्रा नहीं देखी थी और मैं अंदर ही अंदर बड़ा प्रसन्न था, खुशी से झूम रहा था, कि सभी लोग मेरी प्रशंसा कर रहे हैं | लेकिन चेहरे पर दुख के भाव दिखाने पढ़ रहे थे |
इसके बाद पूरे व्यापार पर मेरा एकाधिकार था | मैंने बहुत धन इकट्ठा किया इसके लिए मैंने हर तरकीब लगाई हर वह कार्य किया जो धन कमाने के लिए किया जा सकता था | धन की हवस बढ़ती जा रही थी मैं ज्यादा से ज्यादा धन इकट्ठा कर लेना चाहता था | मैं अपने नगर का सर्वश्रेष्ठ और सबसे धनी व्यापारी बन गया | धीरे-धीरे मेरे दोनों पुत्र युवा हो गए और मैं बुढ़ापे की तरफ बढ़ चला | लेकिन दौड़ अभी भी जारी थी, मैंने अपने दोनों पुत्रों का विवाह बड़े व्यापारियों की पुत्रियों से किया, ताकि मेरे व्यापार को बड़े से बड़ा लाभ हो सके | धीरे धीरे मेरी उम्र बढ़ती चली गई और बुढ़ापा आता चला गया | एक दिन मेरी पत्नी भी मुझे छोड़ कर चली गई, तब पहली बार मुझे किसी के जाने का एहसास हुआ, जीवन में खालीपन सा आ गया, तब मैंने पहली बार बुद्ध के बारे में सुना, और मैं चुपचाप बुद्ध के उपदेश सुनने के लिए के आश्रम में पहुंचा, लेकिन बुद्ध के उपदेश मेरे विचारों के बिल्कुल विपरीत थे, वह मुझे पसंद नहीं आए, वहां ऐसे बहुत से लोग थे जो बुद्ध के विचारों से सहमत नहीं थे, वह सभी लोग मुझे अपने शुभचिंतक लगे | उनके और मेरे विचार एक जैसे थे |
कुछ समय पश्चात मैं बीमार पड़ गया, धीरे धीरे मेरी बीमारी बढ़ती चली गई और मैंने बिस्तर पकड़ लिया | अपने इलाज मैं मैंने बड़े से बड़े वैद्य को लगाया | लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ |
एक दिन मेरा बड़ा पुत्र मेरे पास आया और मुझसे बोला – पिताजी आपसे व्यापार नहीं होगा, आप बहुत बीमार रहने लगे हैं | अब आप आराम करें मैं सारा व्यापार संभाल लूंगा | छोटे भाई की आप चिंता ना करें मैं उसे भी संभाल लूंगा | आप सारा व्यापार मेरे नाम कर दें |
मैंने उससे कहा –बेटा मैं अभी मरने वाला नहीं हूं कुछ दिनों में मैं स्वस्थ हो जाऊंगा |
उसके जाने के बाद मेरा दूसरा छोटा बेटा मेरे पास आया और बोला – पिताजी आपका स्वास्थ्य सही नहीं रहता आप जानते हैं कि बड़े भाई नशा करते हैं वह व्यापार को ठीक से नहीं चला सकते, आप पूरा व्यापार मेरे हाथों में दे दे मैं इसे आपकी तरह ही आगे ले जाऊंगा |
मैंने अपने पुत्र से कहा – पुत्र मैं अभी मरने वाला नहीं हूं केवल मैं बीमार हूं अभी तो मुझे और जीना है | लेकिन इस बार ईश्वर ने मेरी नहीं सुनी और मेरी तबीयत और बिगड़ गई और वैद्य ने मेरे पुत्र से कहा कि मेरे पास समय कम है | सभी रिश्तेदारों को बुला लो ताकि वह इन से मिल सकें | यह सुनकर मेरी बहुएं रोने लगी, मेरे दोनों पुत्र भी अपने सभी रिश्तेदारों को बुलाने के लिए पत्र लिखने लगे | पहली बार मुझे एहसास हुआ अपने पिता की बेबसी का, अभी मैं जीवित था, लेकिन मेरे सामने ही मेरी मृत्यु का खेल चल रहा था | सभी ने मान लिया था कि अब मैं जीवित नहीं रहूंगा | धीरे-धीरे रिश्तेदार आने लगे |
वह सभी मेरे पास आते और रोते, वह कहते – आपके बिना हमारा काम कैसे चलेगा, आपके बिना तो हम बर्बाद हो जाएंगे और मैं सोचता कि अभी तो मैं जीवित हूं | यह मुझे जीवित ही क्यों मार रहे हैं, और जो भी आता है, यही कहता है कि मेरे बिना आपका काम कैसे चलेगा | सभी लोग स्वार्थी हैं, मैं मर जाऊंगा उन्हें इस बात की चिंता नहीं है | उन्हें इस बात की चिंता है कि मेरे बिना उनका कार्य कैसे चलेगा | अब तो मेरे दोनों पुत्र मेरे ही सामने व्यापार के बंटवारे को लेकर लड़ झगड़ रहे थे | उनकी पत्नियां भी उनके साथ ही झगड़े में साथ दे रही थी | तब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि जो धन मैंने पूरी जीवन को बर्बाद करके कमाया वह किसी काम का नहीं है | वह मुझे स्वस्थ तक नहीं कर सकता, मेरा जीवन नहीं बचा सकता | बचपन से लेकर बुढ़ापे तक मैं सिर्फ दौड़ता रहा, धन के पीछे इसके लिए मैंने ना जाने कितने घरों को बर्बाद किया | कितने लोगों की हत्या करवाई कितने लोगों को लूटा | केवल इसलिए कि यह सबकुछ एक दिन यही रह जाएगा | इसका तो एहसास ही नहीं था मुझे | काश यह बात मुझे तब समझ में आती जब मेरे पिता बिस्तर पर थे, तो मैं अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकता था | मेरे जाने के बाद भी लोग मुझे याद रखते मैं ऐसे कार्य कर सकता था | लेकिन अब तो मेरे पास समय नहीं है |
मैंने अपने दोनों पुत्रों को अपने पास बुलाया और उनसे कहा मेरी अंतिम यात्रा कैसे निकालोगे – मेरे बड़े पुत्र ने कहा – पिताजी आप सारा व्यापार मेरे नाम कर दे तो मैं आप की अंतिम यात्रा सबसे अधिक भव्य तरीके से निकालूंगा | ताकि लोग देख सकें कि आप इस नगर की सर्वश्रेष्ठ व्यापारी है,
तब छोटे पुत्र ने कहा – पिताजी आप मुझ पर भरोसा करें मैं आप की अंतिम यात्रा ऐसे निकालूंगा की यह पूरी दुनिया बड़े – बड़े राजा देख कर चौक जाएंगे और आपको सदियों तक याद रखेंगे और यह कहकर दोनों भाई आपस में फिर से लड़ने लगे और मैं चारों तरफ देखता रहा यह सब मैंने बनाया और अब छूटता है | सब कुछ जो मेरा था अब मेरा ना रहा |
कई लोगों को मरते देखा अपने पिता को, अपनी माता को, अपनी पत्नी को, अपने मित्रों को, सब वही शमशान जाते हैं और खत्म हो जाते हैं | सब के साथ गया मैं लेकिन कभी ख्याल ही नहीं आया कि मुझे भी कोई यहां लेकर आएगा | अभी तक लगता था कि मैंने पूरा जीवन बहुत कामयाबी से गुजारा लेकिन अब लगता है कि मैंने तो जीवन की शुरूआत ही नहीं की, पता नहीं किस चीज में मैं उलझ गया | बचपन से उलझा तो बुढ़ापे तक उलझा ही रहा | अब आखरी समय पर कुछ समझ में आया, लेकिन अब समय नहीं |
यह कहकर वह बुजुर्ग चुप हो गया और महात्मा बुद्ध के पास आकर बोला – हे महात्मा बुद्ध मैंने तो अपना पूरा जीवन बर्बाद कर दिया | क्या बचे हुए कुछ क्षणों में मुझे आपसे कुछ मिल सकता है |
बुद्ध ने कहा अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा भले ही तुमने अज्ञानता में गुजार दिया | लेकिन ज्ञान का एक क्षण भी बड़ा होता है | तुम्हारे पास अभी जो भी समय है | वह ज्ञान से पूर्ण है, अब जो भी तुम्हें मिले चाहे सांसे या मृत्यु स्वीकार करो | पूर्ण हो कर देखो, जो जीवन बीत गया उसका दुख ना करो, वर्तमान पर केंद्रित हो जाओ जो तुम्हें मिल रहा है उसे स्वीकार करो, जितना रहस्य जीवन में है, उससे बड़ा रहस्य मृत्यु में है, जो खुशी जीवन दे सकता है, उससे भी बड़ी खुशी मृत्यु दे सकती है | केवल पूर्ण रूप से देखना एक ही क्षण को देखना, दुख मत करना भूतकाल को भूल जाओ, भविष्य की चिंता छोड़ दो, जो है अभी है, इसी समय इस के साथ एकाकार हो जाओ, जो जागृति तुम में आई है यही जागृति यही ज्ञान तुम्हारी सहायता करेगा |