बुद्ध रोज अपने शिष्यों को ध्यान के संबंध में प्रवचन देते थे | एक दिन वह प्रवचन देने के लिए ध्यान सभा में उपस्थित हुए | उनके हाथ में एक सफेद कमल का फूल था | बुद्ध अपने आसन पर विराजे और सभी की तरफ वह कमल का फूल करके, दिखाने लगे | सभी शिष्य यह नहीं समझ पाए कि बुद्ध क्या कहना चाहते हैं | वहां पर बुद्ध के एक शिष्य महाकश्यप भी थे | बुद्ध के द्वारा दिखाए गए कमल के फूल का अर्थ वह समझ गए | बुद्ध ने महाकश्यप को बुलाया और वह कमल का फूल महाकश्यप को दे दिया | उस सभा में बुद्ध मौन ही रहे उन्होंने अपने मुख से 1 शब्द ना बोला | महाकश्यप ने भी बिना कुछ बोले वह फूल स्वीकार कर अपने पास रख लिया |
इसके बाद बुद्ध सभा समाप्त कर वापस चले गए | सभी शिष्य असमंजस में थे, कि बुद्ध ने ऐसा व्यवहार क्यों किया | महा कश्यप को वह फूल क्यों दिया | सभी शिष्य महाकश्यप के पास पहुंचे |
उन्हें महाकश्यप से निवेदन किया – हे महाकश्यप हम आज बुद्ध के व्यवहार को नहीं समझ पाए | वह आज मौन ही रहे | उन्होंने सिर्फ एक कमल का फूल ही दिखाया और आपने उसे स्वीकार किया | इसमें जरूर कोई बात होगी | जिसे हम नहीं समझ पाए | क्या आप हमें वह बात समझा सकते हैं |
महाकश्यप ने कहा – कुछ बातें शब्दों में नहीं कही जा सकती | जब विराट की बात करनी हो, तो शब्द छोटे पड़ जाते हैं | बुद्ध ने आज जीवन का सबसे बड़ा उपदेश दिया | जिस उपदेश को बुद्ध ने शब्दों में नहीं कहा, वह कहा ही नहीं जा सकता, तो मैं तुम्हें कैसे समझाऊं कि बुद्ध ने क्या कहा | इसे तो तुम अपनी बुद्धि से और अपने ध्यान से ही जान जाओगे | तब तुम्हें पूछने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि बुद्ध ने क्या कहा |
महाकश्यप की बात सुनकर सभी शिष्य वापस लौट गए और वह अपनी ध्यान साधना में संगलन हो गए | ताकि वह उस बात को जान सकें जो बुद्ध ने कही, लेकिन वह समझ ना सके वहां एक बुद्ध का नया शिष्य भी था | उसे अभी संघ में शामिल हुए कुछ दिन ही हुए थे | उसने यह सब बात जब देखी, तो उससे रहा ना गया वह सीधे बुद्ध के पास पहुंच गया |
और उसने बुद्ध से पूछा- हे बुद्ध आपने महाकश्यप से कुछ नहीं कहा और आपने सभा में कुछ नहीं बोला, फिर भी ना जाने क्यों सभी यह कहते हैं कि आपने महाकश्यप को ज्ञान दिया | लेकिन मैंने देखा कि जब आपने वहां कुछ नहीं बोला, और केवल एक कमल का फूल महाकश्यप को दिया | तो उसमें कैसा ज्ञान | यह तो एक साधारण सी बात है | सभी खोज रहे हैं कि आपने बिना कहे कौन सा ज्ञान महाकश्यप को दिया | और यह एक अजीब बात है, जबकि सभी जानते हैं कि आपने उस दिन कोई उपदेश नहीं दिया |
बुद्ध मुस्कुराए और बोले – तुम अपने ध्यान को सघन करो | जब तुम अपने ध्यान में पूर्ण रुप से उतर जाओगे | तो धीरे-धीरे तुम्हारी समझ बढ़ेगी और तुम यह समझ पाओगे की ऐसी बहुत सी बातें हैं | जिनको शब्दों में नहीं कहा जा सकता है | केवल एहसास की बातें हैं | उनको एहसास किया जा सकता है | अगर उन्हें शब्दों में कहें तो वह पूर्ण रूप से सुनने वाले तक नहीं पहुंचती | और सुनने वाले उसको अपने हिसाब से समझते हैं | जबकि वह बात वैसी नहीं होती | अभी तुम इस बात को नहीं समझ पाओगे | अभी जाओ और अपनी साधना पर ध्यान दो |वह शिष्य वहां से चला गया |
लेकिन कुछ दिन पश्चात वह फिर बुद्ध के पास आया और बुध से बोला – हे बुद्ध आपने कहा था कि ध्यान से समझ बढ़ेगी और मैं उन बातों को भी समझूंगा जो आपने महाकश्यप से कही थी | लेकिन मेरी समझ बिल्कुल ठीक है | मैं एक युवा हूं | मेरी आंखें और कान बिल्कुल ठीक है | मैं पूर्ण रुप से स्वस्थ हूं | मैं जो सुनता हूं, वह समझता हूं, जो मैं देखता हूं वह मैं समझता हूं, अगर आप मुझसे कहेंगे कि दिन है तो मैं अपनी आंखों से देखकर यह समझ सकता हूं कि दिन है | अगर आप मुझसे कहेंगे कि रात है तब भी मैं अपनी आंखों से देख कर समझ सकता हूं कि रात है | फिर मैं आपकी उन बातों को अभी क्यों नहीं समझ सकता जो आपने महाकश्यप से कहीं |
बुद्ध मुस्कुराए और शिष्य से बोले – हमारी बुद्धि हमारे बस में नहीं है | हमारी समझ हमारे मन के विचारों से बनी है | एक ही वातावरण में किसी को खुशी महसूस हो सकती है | और किसी को दुख | लेकिन बाहरी वातावरण सदा एक समान बना रहता है | अगर बाहरी वातावरण को समझना हो तो, पहले हमें अपने विचारों को समझना होगा | देखना होगा कि वह कैसे हम पर नियंत्रण करते हैं | और कैसे हम उनके अधीन हो जाते हैं |
वह शिष्य बोला – हे बुद्ध यह बात मैं आपकी समझ गया | इसी तरह अगर आप वह बात भी मुझे बता दे जो आपने महाकश्यप को समझाया, तो मैं वह भी अपनी बुद्धि से समझ लूंगा |
बुद्ध ने कहा – ठीक है | पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो | क्या सभी बातें तुम अपनी बुद्धि से समझ सकते हो | वह शिष्य बोला हां जो आप कहेंगे वह मैं अपनी बुद्धि से समझ पाऊंगा |
बुद्ध ने नीचे से एक पत्ता उठाया और उस शिष्य को पत्ता दिखाते हुए पूछा – तुम मुझे यह बताओ कि इस पत्ते का रंग क्या है |
उस शिष्य ने पत्ता देख कर कहा – बुद्ध यह हरे रंग का पता है |
बुद्ध ने फिर से शिष्य से कहा – ध्यान से देख कर बताओ कि यह कौन सा रंग का है |
वह शिष्य बोला – बुद्ध यह हरा रंग है |
बुद्ध ने कहा – क्या तुम्हें पूरा भरोसा है कि यह हरा रंग ही है |
शिष्य बोला – बुद्ध आप किसी से भी पूछ सकते हैं यह हरा रंग ही है |
बुद्ध ने शिष्य से कहा – तुम्हें यह किसने बताया की पत्ते का रंग हरा होता है |
शिष्य बोला – हे बुद्ध मेरे माता-पिता और मेरी शिक्षकों ने मुझे रंगों के बारे में बताया | जिसके आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि इस पत्ते का रंग हरा है |
बुद्ध ने शिष्य से कहा – अगर तुम्हारे माता-पिता और तुम्हारे शिक्षक तुम्हें यह बता दे की पत्ते का रंग लाल होता है | तब तुम इस पत्ते के रंग को क्या कहते
शिष्य बोला – हे बुद्ध तब तो मैं इस पत्ते को लाल रंग का ही कहता |
बुद्ध ने कहा – अब मुझे यह बताओ इस पत्ते का वास्तविक रंग क्या है | क्या यह हरा है या फिर यह लाल है या फिर यह किसी और रंग का ही है इसका वास्तविक रंग क्या है |
शिष्य ने उस पत्ते को बड़े गौर से देखा और बुद्ध से बोला – हे बुद्ध मैंने आज से पहले कभी पत्ते के रंग को लेकर कोई संदेह नहीं किया | लेकिन आज जब मैं इस पत्ते के रंग को लेकर संदेह कर रहा हूं | तब मुझे एहसास हो रहा है कि वास्तव में इस पत्ते का रंग वैसा नहीं है | जैसा कि आज तक मैं समझता हूं |
बुद्ध ने कहा – तो अब तुम इस पत्ते को किस रंग का कहोगे |
शिष्य बोला – मेरे पास शब्द नहीं है | इस पत्ते के रंग को बताने के लिए, लेकिन यह पता है, इसका अस्तित्व है, लेकिन मैं कह नहीं पा रहा बुद्ध, मैं क्या कहूं यह किस रंग का है | लेकिन मैं समझ पा रहा हूं, कि यह एक पत्ता है और इसका एक रंग भी है | लेकिन मैं इसे कह नहीं सकता एक एहसास है जो मैं बता नहीं सकता |
बुद्ध ने कहा – जन्म से लेकर मृत्यु तक हम समाज में रहते हैं हमारी बुद्धि का विकास हमारे समाज के हिसाब से और पर्यावरण के हिसाब से होता है | हम उतना ही सोच पाते हैं, जितना हमारा समाज हमें सिखाता है | लेकिन जब हम समाज की बातों से और सीखी सिखाई बातों से ऊपर उठकर सोचना शुरु करते हैं | तो हम में समझ पैदा होती है | यह समझ हमें ध्यान की ओर ले जाती है | ध्यान हमें वास्तविकता दिखाता है | और उस वास्तविकता को सामाजिक भाषा में कहने का कोई उपाय नहीं है | अगर हम उसे सामाजिक भाषा में कहें भी, तो भी, सही बात सुनने वाले तक नहीं पहुंचती | महाकश्यप ध्यान के चरम बिंदु पर है इसीलिए वह मेरी कही गई उस बात को समझ गए जिसे और कोई ना समझ सका |
वह शिष्य बुद्ध के चरणों में गिरकर बोला – बुद्ध मुझे क्षमा करें, मैं अभी तक अपने अहंकार में ही चूर था | मुझे लगता था कि जो ज्ञान मैंने प्राप्त किया है | उसके सामने सभी छोटे हैं | ज्ञान का घमंड था | लेकिन अब मैं समझ गया हूं कि मुझसे बड़ा अज्ञानी शायद इस धरती पर कोई नहीं है | बाहर का ज्ञान तो मैंने बहुत बटोरा, लेकिन पहली बार में इस भीतर के ज्ञान का अनुभव कर रहा हूं | मैं आपका बहुत आभारी हूं, बुद्ध | आपने मुझे अज्ञान की खाई में गिरने से बचा लिया |