एक युवक अपनी जिंदगी से बहुत परेशान था | वह अपने जीवन में कुछ कर नहीं पा रहा था | वह जो कुछ भी करता सब बिगड़ जाता | तब उसने एक दिन ध्यान के बारे में सुना | उसने सुना कि ध्यान करने से व्यक्ति स्वयं को जान जाता है | उसे चमत्कारी शक्तियां मिलती है और अध्यात्म के क्षेत्र में वह बहुत आगे निकल जाता है | तब उसने सोचा कि मैं व्यर्थ के कार्यों में ही लगा हुआ हूं | मुझे अध्यात्म की ओर जाना चाहिए | मुझे ध्यान करना चाहिए | उसके बाद ही मुझे समाज में सम्मान मिलेगा जगह मिलेगी प्रतिष्ठा मिलेगी |
इसके लिए उसने अपना घर-बार छोड़ दिया | वह गुरु की तलाश में बाहर निकला | बहुत खोजबीन करने के बाद उसे एक गुरु मिले
वह गुरु के पास पहुंचा और उसने गुरु से कहा – गुरुदेव मैं बहुत दूर से आया हूं | मैं समझ गया हूं कि सांसारिक जीवन व्यर्थ है | वहां कुछ नहीं रखा | अब में अध्यात्म की ओर जाना चाहता हूं | अतः मैं ध्यान सीखना चाहता हूं | कृपया कर मुझे ध्यान सिखाइए |
गुरु ने कहा – ठीक है | तुम इस आश्रम में रह सकते हो, ध्यान सीख सकते हो | लेकिन तुम्हें आश्रमों के नियमों का पालन बहुत ध्यान से करना होगा | हर काम को ध्यान से करना होगा | क्या तुम कर सकोगे |
युवक ने कहा – हां मैं कर लूंगा | आप मुझे बताइए कि क्या करना है |
गुरु ने उस युवक को आश्रम के सारे नियम बता दिए और कहा – हर नियम का पालन बड़े ध्यान पूर्वक करना है |
लेकिन उस युवक का मन, कहीं लगता ही नहीं था | उसने आश्रम के किसी भी नियम का पालन नहीं किया | नाम वह सुबह जल्दी उठता, ना ही वह पानी भर कर रखता, ना ही वह भिक्षा मांगने जाते समय भिक्षा मांगता | जब सारे शिष्य भिक्षा मांग कर एक जगह इकट्ठा कर देते | तब सब उस भिक्षा में से थोड़ा थोड़ा भोजन ले लेते | कुछ दिन तो ऐसा ही चलता रहा | लेकिन एक दिन बाकी शिष्यों ने गुरु से उस युवक की शिकायत कर दी |
गुरु ने उस युवक को बुलाया और कहा – अगर तुम नियमों का पालन नहीं करोगे तो तुम्हें आश्रम से निकाल दिया जाएगा |
गुरु की यह बात सुनकर वह युवक अगले दिन से समय पर उठा उसने आश्रम में साफ सफाई की | पानी भर कर रखा, भिक्षा मांगने गया | कुछ दिन वह ठीक से कार्य करता रहा | लेकिन कुछ दिन बाद उसने फिर से वही काम शुरू कर दिए | ना वह समय पर उठता, ना ठीक से सफाई करता, पानी के कई घड़े उसने फोड़ दिए | वह भिक्षा मांगने जाता और कहीं जाकर सो जाता और फिर वापस खाली हाथ आ जाता |
एक दिन भिक्षा मांगते समय उसकी नजर एक सुंदर युवती पर पड़ी, उसे देखकर वह उस पर आसक्त हो गया | उसे लगने लगा कि सन्यासी का जीवन भी कोई जीवन है | जीवन तो वहां है, उस संसार में है | जहां सब सुख भोगे जाते है | मैं यहां व्यर्थ ही अपना जीवन बर्बाद कर रहा हूं | मुझे वापस लौट जाना चाहिए |
यह सोचकर वह गुरु के पास गया और गुरु से कहा – गुरुदेव मैं आपके पास ध्यान सीखने आया था, ताकि मैं अपने आपको जान सकूं पहचान सकूं | लेकिन आपने मुझे अभी तक ध्यान का कुछ भी नहीं बताया | अब यह सन्यासी का जीवन भी मुझे व्यर्थ लग रहा है | मैं अब यहां से जाना चाहता हूं | ध्यान वगैरा करने में कुछ नहीं रखा | हम सब संयासी बन कर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं | मैं अपना जीवन बर्बाद नहीं करना चाहता | अतः मुझे आज्ञा दीजिए |
गुरु मुस्कुराए और गुरु ने कहा – ठीक है, तुम जा सकते हो | लेकिन अपने जीवन को ध्यान पूर्वक जीना नहीं तो तुम कभी सफल नहीं हो पाओगे |
वह युवक वहां से चला गया | एक दिन वह गुरु अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे | तब गुरु ने देखा कि सिपाही एक युवक को जंजीरों में बांधकर ले जा रहे थे | गुरु ने ध्यान से देखा तो पता चला कि यह वही युवक था | जो उनका शिष्य था |
युवक ने जैसे ही अपने गुरु को देखा वह जोर से चिल्लाया – गुरुदेव बचा लीजिए | यह मेरे हाथ काट देने वाले हैं |
गुरु युवक के पास आए और कहा – तुमने क्या किया |
युवक ने कहा – गुरुदेव मेरे सारे काम बिगड़ जाते हैं | मैने एक युवती से शादी की , खर्चे बढ़ गए और मैंने काम करना शुरू किया | मेरे सारे काम बर्बाद हो गए | खर्चा पूरा नहीं हो पा रहा था, तो मैंने चोरी की, वह भी नहीं हो पाई और मैं पकड़ा गया | राजा ने मेरे हाथ काट देने का आदेश दिया है | कृपया कुछ कीजिए |
गुरु राजा के पास गए और कहा- राजन यह मेरा शिष्य है | यह अपने रास्ते से भटक गया था | लेकिन यह एक अच्छा युवक है | आप से विनती है कि युवक को एक मौका दीजिए |
राजा ने गुरु का सम्मान रखते हुए उस युवक की सजा माफ कर दी | और आगे से ऐसा न करने की चेतावनी दी |
वह युवक गुरु के पास आया और कहा – गुरुदेव संसारी जीवन व्यर्थ है | यह बात अब मुझे समझ में आ गई है | कृपया मुझे वापस आश्रम में शामिल कर लीजिए | मैं पुनः सन्यासी होकर ध्यान करना चाहता हूं और खुद को जानना चाहता हूं |
गुरु ने कहा – तुम कोई भी जीवन जियो सांसारिक या सन्यासी का, तुम्हें दोनों ही जीवन में दुख भोगने ही होंगे, क्योंकि तुम्हारे जीवन में ध्यान नहीं है |
युवक ने कहा – गुरुदेव मैंने तो अभी ध्यान सीखा ही नहीं है | सांसारिक जीवन में ध्यान का क्या महत्व है |
गुरु ने कहा – ध्यान संसारी का या सन्यासी का नहीं होता | ध्यान ध्यान होता है | इसका उपयोग कोई भी कर सकता है | जैसे चाहे वैसे कर सकता है | सन्यासी खुद को जानने में इसका उपयोग कर सकता है | संसारी धन कमाने में समझ बढ़ाने में, रचनात्मक कार्यों को करने में, या किसी भी मुसीबत से निकल जाने में, इसका उपयोग कर सकता है |
तुमने चोरी ध्यान से नहीं की थी | इसीलिए पकड़े गए | तुमने बाकी काम भी, ध्यान से नहीं किए थे | इसीलिए सब बर्बाद हो गए | इसी प्रकार अगर सन्यासी ध्यान से, अपने आप को ना जानने की कोशिश करें, तो वह कभी भी अपने आप को नहीं जान पाएगा |ध्यान का उपयोग करो, तो तुम कुछ भी कर सकते हो |
युवक ने कहा – गुरुदेव यह ध्यान कहां मिलता है | ध्यान किया है |
गुरु ने कहा – ध्यान तुम्हारे भीतर ही है | यह कहीं बाहर नहीं है | और यह कहीं नहीं मिलता | यह मिला हुआ ही है |
युवक ने कहा – गुरुदेव मेरा ध्यान कहां है | मुझे यह कहां मिलेगा | अपने भीतर मुझे ध्यान नजर नहीं आता |
गुरु ने कहा – जब मन भटकना बंद कर देता है | तब ही, तुरंत ध्यान उत्पन्न हो जाता है | हमारा मन हमारे नियंत्रण में है, लेकिन हम सोचते हैं कि मन हमें नियंत्रित कर रहा है | इसलिए हम मन के हिसाब से चलते रहते हैं | वास्तव में तो मन को हमारे हिसाब से चलना चाहिए | जब तुम कोई काम करते हो तो केवल उस काम में समर्पित हो जाओ | मन इधर-उधर भागेगा पर तुम अपना पूरा ध्यान उस काम पर ही रखना और तुरंत ही उस काम के लिए तुम्हारा ध्यान उत्पन्न हो जाएगा और एक बार तुमने ध्यान से काम किया, तो काम अवश्य पूरा होगा |
युवक ने कहा – गुरुदेव मैं अभी भी नहीं समझा, ध्यान तो अध्यात्म की ओर ले जाता है | यह सांसारिक जीवन में कैसे काम करता है |
गुरु ने कहा – मेरे साथ चलो तुम्हें कुछ दिखाता हूं |
गुरु उस युवक को एक नदी किनारे ले गए और कहा – अभी इंतजार करो, कुछ समय पश्चात एक बगुला वहां पर आया और नदी के किनारे पर एक पैर उठाकर बड़े ध्यान से खड़ा हो गया |
गुरु ने कहा – देखो उस बुगले को, किस प्रकार एक पैर उठाकर बड़े ध्यान से वह अपने भोजन की तैयारी कर रहा है | बहुत देर तक वह बगुला ऐसे ही खड़ा रहा और अचानक उसने अपनी चोंच पानी में डाली और एक मछली उठाकर उड़ गया |
गुरु ने कहा – यह बगुला कभी अपने मकसद में नाकाम नहीं होता | क्योंकि इसका ध्यान इसके साथ है | यह ध्यान से काम करता है |
युवक ने कहा – गुरुदेव मैं आपकी बात कुछ समझ रहा हूं | क्या आप मुझे एक और उदाहरण दे सकते हैं |
गुरु ने कहा – उस पेड़ पर देखो एक कौवा बैठा है , उस कौवे को पत्थर से मारने का नाटक करो | उस युवक ने कौवे को पत्थर से मारने का नाटक किया | कौवा वहीं बैठा रहा |
गुरु ने कहा – अब उस कौवे को पत्थर से मारो | युवक ने ऐसा ही किया लेकिन पत्थर हाथ से छूटने से पहले ही कौवा वाह से उड़ गया |
गुरु ने कहा – यह ध्यान की ताकत है | जो आपको हर समय हर परिस्थिति में बचा लेती है | अगर ध्यान नहीं होगा तो ना तो वह बगुला मछली पकड़ पाएगा और ना ही यह कौवा अपने आप को पत्थर से बचा पाएगा | सभी जानवर ध्यान लगाते हैं | लेकिन बाहर की ओर, केवल मनुष्य के पास वह ताकत है | जो ध्यान को अपने भीतर लगा सकता है | अपने आप पर लगा सकता है | अगर इसी ध्यान को वह बाहर की ओर लगाए, संसार में लगाए, तो वह कुछ भी पा सकता है | सारे कार्य पूरे कर सकता है |
युवक ने कहा – ध्यान के लिए मुझे क्या करना होगा |
गुरु ने कहा – मन के भटकाव को रोको, यह इतना मुश्किल नहीं है | जितना समझा जाता है | मन ही तुम हो, तुम ही मन हो | तुम इसे जैसे चाहे वैसे, चला सकते हो | लेकिन तुम्हें मजा आता है, मन के साथ बह जाने में, मन के साथ दूर निकल जाने में, ऐसे सपने बुनने में जो सच नहीं होने वाले | लोग कहते हैं उनके काम बिगड़ जाते हैं | और इसका एक ही कारण है | उनका काम में ध्यान नहीं है | जिसका अपने काम में ध्यान है | वह अपने बिगड़े काम भी सुधार सकता है |
युवक ने कहा – गुरुदेव मैं आपकी बात समझ गया हूं | अब मैं अपने ध्यान का इस्तेमाल अपने आपको जानने में करूंगा और इसी ध्यान का इस्तेमाल मैं इस संसार में भी करूंगा |