जीवन के चार सत्य

सिद्धार्थ जीवन से संबंधित सभी प्रश्नों का उत्तर चाहते थे | इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की | उन्होंने हर वह रास्ता अपनाया जिस जिस पर चलकर वह अपने प्रश्नों के उत्तर पा सके | एक दिन ऐसा भी आया जब वह सिद्धार्थ से बुद्ध  बने और तब उन्होंने अपने सभी प्रश्नों का उत्तर पा लिया |

वह मनुष्य के जीवन को भली भांति समझते और जानते थे | सभी मनुष्य जाति भी इन सभी बातों को समझें और जानने के लिए उन्होंने प्रयत्न किए |

महात्मा बुद्ध ने जीवन को समझाने के लिए चार सिद्धांत दिए | जिन्हें चार आर्य सत्यों के रूप में भी जाना जाता है | यह चार आर्य सत्य सामान्य जीवन से जुड़े हैं | प्राचीन काल से वर्तमान तक यह सभी के जीवन को प्रभावित करते हैं | लेकिन हम इन्हें समझ नहीं पाते | मनुष्य जीवन के लिए इन चार आर्य सत्य को जानना और इन्हें समझना बहुत ही आवश्यक है |  महात्मा बुद्ध ने इन  सत्यों को बड़े ही सरल तरीके से समझाया और बताया है | 

 

पहला आर्य सत्य है-

 

संसार में दुख है – जन्म दुखदाई होता है | जब एक बच्चे का जन्म होता है | तब उसकी माता को बच्चे के जन्म के समय असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ती है | वह बच्चा जो गर्भ में होता है | वह अपना एक जीवन त्याग कर एक नए संसार में आगमन कर रहा होता है | यह उस बच्चे की पीड़ा है | कि उसे एक ऐसे संसार में आना पड़ रहा है | जिसे वह जानता और पहचानता नहीं है | और पीछे छूट रहा है, मां की कोख का वह संसार जिसमें वह पूर्ण सुरक्षित था | 

बुढ़ापा दुखदाई होता है | महात्मा बुद्ध कहते हैं, व्यक्ति कितना भी समझदार और ज्ञानी क्यों ना हो | बुढ़ापा एक ऐसी स्थिति है, जहां पर दुख भोगना ही पड़ता है | शरीर जर्जर हो जाता है | याददाश्त कमजोर हो जाती है | जिस का जीवन चल रहा है उसे 1 दिन इस स्तिथि से गुजर ना ही पड़ेगा | 

 

बीमारी दुखदाई होती है | महात्मा बुद्ध कहते हैं कि इस दुनिया में जिसने जन्म लिया है | उसे कभी ना कभी शारीरिक बीमारियों से पीड़ित होना ही पड़ता है | कोई  कम होता है, और कोई ज्यादा | लेकिन शरीर में कोई भी दुख हो कोई भी बीमारी हो, मनुष्य को गहरी पीड़ा से गुजरना पड़ता है | बुढ़ापे में  तो बीमारियां आ ही जाती हैं | 

मृत्यु दुखदाई होती है | 

महात्मा बुद्ध कहते हैं – जिसने जन्म लिया है | उसकी मृत्यु अवश्य होगी और यह मृत्यु का पल बड़ा ही दुखदाई होता है | युवावस्था में मृत्यु का भय कम होता है | बुढ़ापे में मृत्यु का डर सबसे ज्यादा सताता है | यह ऐसे ही है जैसे एक बच्चा अपनी मां की कोख को छोड़कर इस दुनिया में आता है | इस दुनिया में उसका एक नया जीवन  चक्र चलता है | लेकिन मां की गर्भ में जो जीवन उसे मिल रहा था | उस जीवन चक्र की मृत्यु हो जाती है |

 

दूसरा आर्य सत्य है-

 

दुख का कारण है-  महात्मा बुद्ध कहते हैं कि जीवन में जो भी दुख है | उन सभी दुखों के पीछे कुछ कारण होते हैं | वेदना, रोना, चित्त की उदासीनता, निराशा, यह सब दुख देते हैं | लेकिन इसके पीछे कोई ना कोई कारण अवश्य होता है | केवल इसे समझना पड़ता है | इंसान की महत्वकांक्षा, जो वह चाहता है | उसका ना मिलना, दुख का कारण बन जाता है | मृत्यु का दुख केवल इसी के लिए है | क्योंकि मनुष्य मृत्यु को समझता नहीं है | वह उसके लिए नई चीज है और वह उसके लिए तैयार नहीं है | मनुष्य का अपने आप को किसी के साथ बांध लेना भी दुख का कारण होता है | वह व्यक्ति जो  50 चीजों से प्रेम करता है | वह 50 तरह के दुखों में घिरा रहता है | भोग की कामना, दुनिया में रहने की कामना आदि भी अंत में दुःखदायी होती है |

 

तीसरा आर्य सत्य है

 

 दुख का निवारण है-  महात्मा बुद्ध कहते हैं कि जो दुख है उसका निवारण भी अवश्य है | जब हम दुख के कारण को समझ जाते हैं, तो उसका निवारण आसानी से कर सकते हैं | लेकिन किसी भी दुख को समझने की क्षमता हमारे भीतर होनी चाहिए | जब दुख आए तो हमें उसे रुक कर देखना चाहिए | कि वह है तो, किस कारण से है, अगर हम उसका कारण समझ पाते हैं | तो हम उसका निवारण भी समझ सकते हैं | अगर हम किसी से प्रेम करते हैं  और उस प्रेम के कारण हम दुखी हैं | तो अवश्य ही उस प्रेम में कोई लोभ छुपा होगा | हम किसी से कोई कामना करते हैं | और वह पूरी ना हो तो, दुख उत्पन्न होता है |  वास्तविक सुख तब तक नहीं मिल सकता, जब तक कि व्यक्ति कामना से स्वतंत्र न हो जाए अर्थात् वह अपने सभी कार्य कामना रहित होकर करें |

 

चौथा आर्य सत्य है

 

दुख निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग है- महात्मा बुद्ध ने जीवन को सरल और सुगम बनाने के लिए अष्टांगिक मार्ग दिया | इस मार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों को जीवन में किसी प्रकार का दुख अनुभव नहीं होता | इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें दुख नहीं मिलता | उन्हें दुख मिलता है | लेकिन इस मार्ग पर चलने के कारण वह उसे आसानी से समझ पाते हैं | और उसका निवारण कर पाते हैं | 

 

यह अष्टांग मार्ग है

 

सम्यक दृष्टि- सम्यक दृष्टि का मतलब है | आप की देखने की क्षमता ठीक हो | इसका आशय है कि आप जो भी देखे उसे सही दृष्टि से देखें | उसमें अपने विचारों की मिलावट ना करें | अपने देखने के नजरिया को बड़ा करें | किसी भी चीज का केवल एक छोटा पहलू ही ना देखें | बल्कि उसे समग्र रूप में देखें | उसको पूर्ण रूप में देखने का नजरिया बनाएं |

 

सम्यक संकल्प- सम्यक संकल्प का मतलब होता है | सही संकल्प लेना | ऐसा संकल्प लेना जिससे समाज और मनुष्यता का विकास हो | साथ ही नैतिक और मानसिक विकास भी संभव हो | यह संकल्प देश, काल, पात्र के अनुकूल और कल्याणकारी हो तात्कालिक सुख प्राप्त करने के लिए छलांग लगाने के बजाए, लम्बी अवधि के लिए योजना तैयार करें। और संकल्प करें कि बिना किसी को दुख पहुंचाए, अपनी योजनाओं को पूर्ण करेंगे |

 

 सम्यक  वाक – सम्यक वाक का मतलब है | ऐसी वाणी बोले जिससे सभी प्रसन्न हो | किसी को चोट ना पहुंचे कुछ भी बोलने से पहले, अच्छी तरह सोच विचार कर बोले, सही समय पर सही बात कहें, झूठ ना बोलें |

 

सम्यक कर्म-   सम्यक कर्म का मतलब है | ऐसा कर्म करना जो, समय देश और काल के अनुसार उचित हो | हम अपनी बुद्धि से यह सही निर्णय कर पाए, कि हमारा कर्म कैसा हो हमारे कर्म से किसी की हानि ना हो और देश और समाज की प्रगति हो | 

 

सम्यक जीविका – सम्यक जीविका का अर्थ होता है | ऐसी जीविका जो किसी को धोखा देकर ना कमाई गई हो | जिसमें लालच ना मिला हो | जो इमानदारी से कमाई गई जीविका होती है, वहीं सम्यक जीविका कहलाती है | इस जीविका से मनुष्य के अंदर अनंत ऊर्जा  प्रवाहित होती है | उसके चेहरे पर एक अलग ही तेज उत्पन्न होता है | यह उसके संकल्प का एक हिस्सा है |

 

सम्यक प्रयास-  मनुष्य अपने जीवन में गलतियां करता रहता है | लेकिन उसे अपनी गलतियों से सीखना चाहिए एक ही गलती को बार-बार करना गलत है | जब हम पहली बार कोई गलती करते हैं | तो वह हमें कुछ सिखाती है | हमें अपने आप को सुधारने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए | इसी को महात्मा बुद्ध ने सम्यक प्रयास कहा है |

 

 सम्यक स्मृति- दिमाग कई तरह के लालच और लोगों से भरा रहता है | उसकी स्मृति में कई तरह की गलत बातें आती रहती हैं | बुद्ध कहते हैं कि अपनी स्मृति को सम्यक बनाओ यानी अपनी स्मृति को शुद्ध और साफ बनाओ | अपने विचारों को साफ करो, ताकि तुम्हारी स्मृति भी साफ तैयार हो | उसमें किसी तरह की मेल गंदगी ना हो | जिससे व्यक्ति सभी चीजों को साफ और स्पष्ट देख सकें | उस पर उसके  गलत विचारों का प्रभाव ना पड़े |

 

 सम्यक समाधि – ऊपर के सभी 7 मार्गों पर चलने के बाद आठवां मार्ग सम्यक समाधि का आता है | जो व्यक्ति ऊपर के सभी 7 मार्गों को सही प्रकार से, अपने जीवन में उतार लेता है | तब वह सम्यक समाधि की तरफ बढ़ता है | यह वही स्थिति है, जो किसी ध्यानी को अपने ध्यान के अंत में प्राप्त होती है |

 एक सांसारिक व्यक्ति के लिए भी बुद्धा ने वह रास्ता तैयार किया | जिस पर चलकर वह वही पहुंच सकता है | जहां पर कोई ध्यानी व्यक्ति पहुंचता है | जरूरी नहीं है | कि आप संसार छोड़कर सन्यासी होकर ही सत्य को पा सकें | आप बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग पर चलकर भी ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं और समाधि को प्राप्त हो सकते हैं |

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