ईश्वर की खोज

एक व्यक्ति ईश्वर को खोजता था | 20 वर्षों की गहन खोज के बाद भी, उसे ईश्वर नहीं  मिले | तब किसी  ने उस व्यक्ति को बताया कि तुम बुद्ध की शरण में जाओ | वह अवश्य ही तुम्हें तुम्हारी खोज में सहायता करेंगे | उन्हें परम ज्ञान प्राप्त हुआ है | वह तुम्हारी सहायता कर सकते हैं |

वह व्यक्ति बुद्ध के पास पहुंचा और बुद्ध से बोला – हे बुद्ध मेरी जीवन का एक ही लक्ष्य रहा है कि मैं ईश्वर को खोज लूँ कि वह कैसा है, कहां है, और उनसे ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति करूं | मैंने सुना है कि आपको परम ज्ञान उपलब्ध हुआ है | तो अवश्य ही आपको ईश्वर भी मिले होंगे | क्या आप मेरी ईश्वर की खोज में सहायता कर सकते हैं |

बुद्ध मुस्कुराए और बोले – जिसे तुम खोज रहे हो उसे तुमने कहां-कहां खोजा | 

वह व्यक्ति बोला – हे बुद्ध मैंने सभी तीर्थ सभी मंदिर पूरी दुनिया का भ्रमण किया | मैंने हर वह काम किया जो मुझसे ईश्वर की प्राप्ति के लिए करने के लिए कहा गया | मैंने गायों का दान दिया | ब्राह्मणों को भोज कराया | यज्ञ राय हवन कराएं | कई बड़े-बड़े अनुष्ठान मैंने कराएं | कई कई दिनों तक मैंने अलग-अलग वर्त लिए | और उन्हें पूरा किया | कई बड़े मंदिरों का निर्माण भी कराया | मैं रोज सुबह शाम ईश्वर की आराधना करता हूं | ऐसा एक दिन भी नहीं गया |  जब मैंने ईश्वर की आराधना पूजा ना की हो | फिर भी आज तक मुझे ईश्वर नहीं मिले | तब किसी ने मुझे बताया कि आपको परम ज्ञान उपलब्ध हुआ है | इसका मतलब आप ने ईश्वर को जरूर देखा होगा |

बुद्ध बोले – तुम ईश्वर को ढूंढ रहे हो ना कि खोज रहे हो |

 वह व्यक्ति  बोला – बुद्ध मैं समझा नहीं आप क्या कहना चाहते हैं |

 बुद्ध ने कहा – तुम शाम के समय मेरे पास वापस आना | तब मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर पाऊंगा |

वह व्यक्ति बुद्ध को प्रणाम करके चला गया | शाम हुई और बुद्ध अपनी कुटिया के बाहर कुछ ढूंढने लगे | वह बड़ी गहनता से कुछ ढूंढ रहे थे | जब बुद्ध के शिष्यों ने बुद्ध को कुल ढूंढते हुए देखा,

तो शिष्यों ने बुद्ध से पूछा- हे बुद्ध आप क्या ढूंढ रहे हैं | 

तब बुद्ध ने कहा – मैं एक मोती ढूंढ रहा हूं | जो सफेद रंग का है | बुद्ध के शिष्य भी बुद्ध के साथ वह मोती ढूंढने में संगलन हो गए |

तभी वह व्यक्ति वहां पर आयाऔर उसने देखा कि बुद्ध और उनके शिष्य कुछ ढूंढ रहे हैं | 

वह बुद्ध के पास आया और प्रणाम करके बोला-  हे बुद्ध आपने मुझे शाम को यहां मेरी सहायता के लिए बुलाया था | 

बुद्ध ने कहा – हां मुझे याद है | 

वह व्यक्ति बोला- आप कुछ ढूंढ रहे हैं | 

बुद्ध ने कहा – हां मेरा एक सफेद मोती खो गया है | मैं उसी को ढूंढ रहा हूं | क्या तुम मेरी सहायता कर सकते हो | 

वह व्यक्ति बोला- हां बिल्कुल कर सकता हूं | मैं अभी मोती आपको ढूंढ कर दे देता हूं | वह व्यक्ति उस मोती को ढूंढने में  संगलन हो गया | और बुद्ध भी उसके साथ में मोती ढूंढते रहे |
बुद्ध के शिष्य महाकश्यप यह सब दूर खड़े हुए देख रहे थे | और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे | 

यह देख कर, बुद्ध के एक और शिष्य आनंद ने महाकश्यप से पूछा – महाकश्यप आप बुद्ध की सहायता क्यों नहीं करते | 

महाकश्यप ने कहा- आनंद बुद्ध को किसी की सहायता की जरूरत नहीं है | ऐसा हो ही नहीं सकता कि बुद्ध जैसे परम ध्यानी से जो पूर्ण ध्यान बन चुके हैं | कोई वस्तु खो जाए | यह सब तो वह अवश्य किसी का अज्ञान मिटाने के लिए ही कर रहे हैं | अब समय बीतता जा रहा था | और वह व्यक्ति जो बुद्ध के पास आया था | काफी समय बीतने के बाद भी, जब उसे वह मोती नहीं मिला, और वह जब थक गया,  

तब वह बुद्ध के पास आया और बोला- हे बुद्ध मैंने बहुत ढूंढा | लेकिन वह मोती मुझे नहीं मिला |

 बुद्ध ने कहा – जब तुम वह मोती मुझे ढूंढ कर दे दोगे | तभी मैं तुम्हारी कोई सहायता कर पाऊंगा | क्या तुम्हें अपने सवाल का जवाब नहीं चाहिए |

 वह व्यक्ति बोला- ठीक है, मैं फिर से कोशिश करता हूं | और वह मोती आपको अवश्य ही लाकर दूंगा | वह व्यक्ति फिर से उस  मोती को ढूंढने में व्यस्त हो गया | धीरे-धीरे रात होती चली गई | काफी रात हो जाने के बाद भी जब वह मोती नहीं मिला |

 तब वह बुद्ध के पास आया और बुद्ध से बोला – बुद्ध आप ठीक से याद करके बताएं कि वह मोती कहां खोया था | 

बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा – वह मोती तो मेरी कुटिया में खोया था |

वह व्यक्ति झुंझलाते हुए बोला – आप मुझे मूर्ख बना रहे हैं | मुझे तो ऐसा लगता है कि आप ऐसे ही ज्ञानी होने का ढोंग करते हैं | आपने व्यर्थ ही मेरा इतना समय बर्बाद कर दिया | क्या आपको इतना भी नहीं पता कि जो चीज कुटिया में खोई है | वह बाहर कैसे मिल सकती है | वह कुटिया में ही मिलेगी | आपको भीतर, कुटिया में जाना चाहिए | वह मोती आपको ही मिल जाएगा |

बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले – मैं भी तो तुम्हें यही समझाना चाहता हूं | जो चीज तुम्हारे भीतर खो गई है | वह तुम्हें बाहर कैसे मिलेगी | तुमने 20 वर्षों तक बाहर खोजबीन की है | कभी एक पल के लिए भी अपने अंदर खोजबीन की | तुमने एक ही दिशा में ढूंढा | बाहर की ओर, जहां अज्ञानी और अज्ञान है | वहां वह ज्ञान का मोती था ही नहीं, वह मोती तो तुम्हारे अंदर ही खो गया है | उसे अपने अंदर ही ढूंढो | तब तुम्हें वह ज्ञान मिल जाएगा | जिसकी खोज में तुमने 20 वर्ष लगा दिए हैं |  

वह व्यक्ति बोला – बुद्ध आपकी बातें समझ में तो आती हैं | लेकिन अभी भी मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि मैं  अपने अंदर क्या खोजू ?

बुद्ध ने कहा- तुम ईश्वर को खोजना चाहते हो ना, लेकिन क्या तुमने कभी अपने आप को खोजा ?

 वह व्यक्ति बोला- मुझे अपने आप को खोजने की क्या जरूरत है | मैं अपने आप को संपूर्ण रुप से जानता हूं | मैं अपना नाम जानता हूं | मैं अपने माता-पिता को जानता हूं | मैं अपना घर जानता हूं | जब से मैंने जन्म लिया है, तब से अब तक सभी चीजें तो मैं जानता हूं | मैं कुछ भी भूला नहीं हूं | तो फिर मुझे क्या जानने की जरूरत है ? मैं क्या जानू ?

 बुद्ध ने कहा- यह बताओ कि इस समय  तुम्हारे सबसे नजदीक कौन है ? 

 वह व्यक्ति बोला-  इस समय तो आप ही मेरे सबसे ज्यादा नजदीक है |

 बुद्ध ने कहा – उससे भी ज्यादा नजदीक तुम्हारे कौन है ?

 वह व्यक्ति बोला – आपसे ज्यादा नजदीक हवा है | 

बुद्ध ने कहा – हवा से भी ज्यादा नजदीक तुम्हारे कौन है ?

वह व्यक्ति सोचते हुए बोला – हवा से ज्यादा नजदीक तो मेरे वस्त्र हैं |

 बुद्ध ने कहा- इन वस्त्रों से भी ज्यादा नजदीक तुम्हारे कौन है ?

तब वह व्यक्ति सोच में पड़ गया और बुद्ध से बोला – बुद्ध इनसे ज्यादा नजदीक तो कुछ भी नहीं है | तब तो मैं स्वयं हूं |

 तब बुद्ध ने कहा – अपनी आंखें बंद करो और बिल्कुल शांत होकर ध्यानपूर्वक अपने में खोजो कि तुम्हारे सबसे नजदीक क्या है ? विचारों को हटा दो, सिर्फ इस बात पर ध्यान दो, कि तुम्हारे सबसे ज्यादा नजदीक क्या है ?

 उस व्यक्ति ने अपनी आंखें बंद की और समय बीतता गया | उसने अपनी आंखें खोली | 

और तब बुद्ध ने कहा –अब तुम्हारे सबसे ज्यादा नजदीक क्या है ?

 वह व्यक्ति बोला – हे बुद्ध पहले मुझे ऐसा लगा कि मेरी सांसे मेरी सबसे ज्यादा नजदीक है | उसके बाद वह सांसे मुझसे दूर हो गई और तब मुझे ऐसा लगा, कि मेरी दिल की धड़कन मेरे ज्यादा नजदीक है | लेकिन धीरे से वह भी मेरे से दूर हो गई | और तब मैं खुद से ही दूर हो गया | और एक अलग ही अनुभव मुझे हुआ | कि मैं कहीं नहीं हूं | और फिर भी हूं | मैं इस चीज को अभी समझ नहीं पा रहा हूं |

बुद्ध ने कहा – अब तुम सही खोज कर रहे हो | शीघ्र ही तुम्हें तुम्हारा मोती मिल जाएगा | वह जो चीजें तुम्हें समझ नहीं आ रही है | वह भी धीरे-धीरे समझ आ जाएंगी |

व्यक्ति बुद्ध  के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा और बोला – बुद्ध मैंने आपसे बड़ा ही अभद्र व्यवहार किया | फिर भी आपने मुझे ज्ञान का एक रास्ता दिखाया | जिससे मैं अनजान ही था | आज तक इस रास्ते के बारे में मुझे किसी ने नहीं बताया था |आपकी बड़ी कृपा कि आपने मुझे यह रास्ता दिखाया | 

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