बुद्ध के पास एक व्यक्ति आया और बोला – हे बुद्ध मै एक व्यापारी हूं | मुझे मेरे ही मित्र ने बर्बाद कर दिया है | मेरा सारा व्यापार चौपट हो गया है | मैं कर्जदार हो गया हूं | मैं आज उसी मित्र की हत्या करने जा रहा था | रास्ते में आपका आश्रम दिखाई दिया | लोग कहते हैं कि आप सभी की समस्या का समाधान कर देते हैं | क्या आप मेरी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं | क्या आप मुझे कोई मंत्र दे सकते हैं | जिससे मैं अपने मित्र से अधिक धनवान हो जाऊं |
बुद्ध ने कहा – मैं तुम्हें रास्ता दिखा सकता हूं | जिस पर यदि तुम चलोगे तो तुम्हें ऐसा खजाना मिलेगा | जो कभी खत्म नहीं होता | बल्कि खत्म करने पर और बढ़ता जाता है |
व्यापारी बोला – हे बुद्ध जल्दी से मुझे वह मार्ग बता दीजिए |
बुद्ध ने कहा – मार्ग बताने से पहले तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारे मित्र ने तुम्हारे साथ क्या किया | जितनी सच्चाई से तुम अपनी बात मुझसे कहोगे, मेरा मार्ग तुम्हें उतनी ही जल्दी उस खजाने तक पहुंचा देगा |
वह व्यापारी बोला – हे बुध मैं और मेरा मित्र 12 साल पहले इस नगर में एक साथ आए थे | हम बचपन से एक दूसरे को जानते हैं | जब हम इस नगर में आए थे | तब मेरे मित्र के पास ज्यादा धन नहीं था | उसके मुकाबले में मेरे पास बहुत पैसा और धन था |
वह मेरे पास आया और उसने मुझसे कहा – कि उसे व्यापार शुरू करने के लिए कुछ धन की आवश्यकता है | मैंने उसे मित्र होने के नाते व्यापार शुरू करने के लिए धन दिया | उसने उन पैसों से अपना व्यापार शुरु किया धीरे धीरे उसका व्यापार बढ़ता चला गया | कुछ ही सालों में वह मेरे बराबर धनवान हो गया | तब मुझे खुशी हुई कि मेरा मित्र भी मेरे बराबर धनवान हो गया है | और उसका जीवन अच्छा चल रहा है | लेकिन आने वाले कुछ सालों में उसके व्यापार ने और उन्नति की और वह मुझसे भी कहीं अधिक धनवान हो गया | उसने मुझसे कहीं अधिक बड़ा घर बनाया एक बड़ा रथ लिया |
उसकी उन्नति देखकर मुझे जलन होने लगी | मैं नहीं चाहता था कि वह मेरे से ज्यादा धनवान हो | जब तक वह मेरे बराबर धनवान था | तब तक मुझे थोड़ी तसल्ली थी | लेकिन जैसे जैसे वह मुझसे अधिक धनवान होता गया मेरे मन में उसके लिए ईर्ष्या बढ़ती चली गई | जब वह मेरे घर अपने बड़े रथ में आता तो मेरे मन में हजारो सुइया चुभ जाती | जब वह अपने बड़े घर के बारे में बताता | तो मैं सोचता कि एक दिन मैं इससे अधिक बड़ा घर बना कर दिखाऊंगा | और इसके व्यापार से भी अधिक बड़ा व्यापार में खड़ा करूंगा |
इसके लिए मैंने उसके व्यापार को हानि पहुंचाने के लिए तरह-तरह के षड्यंत्र रचे | मैंने उसके व्यापार को नष्ट करने के लिए अपना व्यापार भी दांव पर लगा दिया | उसे थोड़ी क्षति हुई, लेकिन इस कार्य से मुझे बहुत अधिक क्षति हुई | मेरा सारा व्यापार नष्ट हो गया | मैं कर्जदार हो गया मेरी बीवी और बच्चे रास्ते पर आ गए |
बुद्ध ने कहा – क्या तुमने अपने मित्र के साथ सही किया |
व्यक्ति बोला- मैंने अपने मित्र को उसके बुरे समय में धन दिया | ताकि वह अपना व्यापार शुरु करें तो मैंने उसके साथ कहां बुरा किया | जब वह अधिक धनवान हो रहा था | तो वह मेरी मदद कर सकता था | हम दोनों एक साथ अधिक उन्नति कर सकते थे | लेकिन उसने सिर्फ अपने पर ध्यान दिया | उसने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया | वह भूल गया कि वह मेरे ही धन से धनवान हुआ है |
बुद्ध ने कहा- जब तुम्हारा मित्र तुमसे अधिक उन्नति कर रहा था | तब क्या तुमने कोई उन्नति नहीं की |
व्यापारी बोला – बुद्ध, ऐसा नहीं है | मेरे व्यापार में भी उन्नति हुई | लेकिन मेरे मित्र के बराबर नहीं |
बुद्ध ने कहा- तुम्हें किस चीज की कमी थी |
वह व्यक्ति बोला – बुद्ध मुझे किसी भी चीज की कमी नहीं थी | लेकिन मैं अपने मित्र से आगे ही रहना चाहता था | बुद्ध ने कहा – तुम अपने मित्र से ही आगे क्यों रहना चाहते थे | क्या इस नगर में तुम्हारे मित्र से भी अधिक धनवान व्यापारी नहीं है |
व्यक्ति बोला – हां, मेरे मित्र से भी अधिक धनवान व्यापारी यहां पर हैं |
बुद्ध ने कहा- तो फिर तुम अपने मित्र से ही अधिक धनवान क्यों बनना चाहते थे | तुम उन सभी व्यापारियों से अधिक धनवान क्यों नहीं बनना चाहते थे |
वास्तव में इस दुनिया में हम अपने से नीचे के किसी भी व्यक्ति को अपने से ऊपर नहीं निकलने देना चाहते हैं | जो हमारी दया का पात्र है | हम चाहते हैं कि वह हमेशा हमारी दया का पात्र ही बना रहे | अगर वह हमसे कहीं आगे निकल जाता है | तो भले ही हम अपने चेहरे पर एक मुखोटा लगाकर दर्शाएं कि हमें खुशी है | लेकिन अंदर ही अंदर हमारा मन इस बात से बेचैन हो जाता है | और वह स्वीकार ही नहीं कर पाता कि कल तक जिस पर मैं अपनी दया दिखाता था | आज वह मुझ पर दया दिखाने लायक हो गया है | और उस पर भी जब वह व्यक्ति आपकी दिखाई दया का गुणगान नहीं करता | आपकी मदद नहीं करता | तब आप उसे यह बता देना चाहते हैं, कि उसको जो मिला है | वह आप की दया दृष्टि की वजह से ही मिला है | तब आप तरह-तरह की षड्यंत्र रचते हैं | और चाहते हैं कि वह व्यक्ति वही उसी स्थिति में पहुंच जाए | जहां आप उस पर फिर से दया कर सकें |
इसके लिए आप अपना सभी सुख चैन भी छोड़ देते है | जैसा कि तुमने किया, तुम चाहते तो, अपने मित्र की उन्नति को सहज स्वीकार कर सकते थे | और अपने व्यापार की भी उन्नति कर सकते थे | तुम्हें किसी तरह की कोई कमी नहीं थी | लेकिन तुमने अपने आप को स्वयं बर्बाद किया |
वह व्यापारी बोला- हे बुध, आप मुझे यह ना बताएं कि मैंने क्या गलत किया, क्या सही किया | आप मुझे वह रास्ता बताएं जिससे मैं अपने मित्र से भी अधिक धनवान बन सकता हूं |
बुद्ध ने कहा- क्या तुम सब दांव पर लगाने के लिए तैयार हो | अगर तुम सब दांव पर लगाने के लिए तैयार हो | तो मैं तुम्हें वह रास्ता दिखा सकता हूं |
व्यक्ति बोला- हां, मैं सब कुछ दांव पर लगा सकता हूं |
बुद्ध ने कहा- तो जैसा मैं कहता हूं | वैसा तुम करो | तब तुम 1 वर्ष बाद अपने मित्र से भी अधिक धनवान बन जाओगे | और एक ऐसी संपत्ति के मालिक हो जाओगे जो कभी खत्म नहीं होती |
तुम सबसे पहले अपने मित्र के पास जाओ और उससे अपना व्यापार शुरू करने के लिए धन मांगो |
व्यापारी बोला- बुद्ध, आप यह क्या कह रहे हैं | मैं अपने मित्र से नहीं मांग सकता |
बुद्ध ने मुस्कुरा कर कहा – अगर तुम्हें वह संपत्ति चाहिए तो तुम्हें ऐसा करना होगा | वह व्यापारी तैयार हो गया |
बुद्ध ने कहा – इसके बाद तुम उस धन से व्यापार शुरू करना | 1 वर्ष तक रोज इस आश्रम में आना और भिक्षुओ से ध्यान सीखना | 1 वर्ष तक जो भी व्यापार में कमाओ, उसमें से केवल उतना ही अपने पास रखना | जितने कि तुम्हें आवश्यकता हो | अधिक धन को गरीबों में बांट देना | और लोगों की सहायता के लिए उपयोग करना | नशा मत करना | अपना व्यापार पूरी ईमानदारी से करना | कोई षड्यंत्र ना रचना | किसी की निंदा ना करना | किसी की प्रशंसा भी मत करना | यह सारे काम 1 वर्ष तक नियम से करना | तब तुम्हें वह खजाना अपने आप मिल जाएगा जो कभी खत्म नहीं होगा |
उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया 1 वर्ष पश्चात वह बुद्ध के पास आया और बुद्ध के चरणों में गिर कर बोला – हे बुध आप जिस संपत्ति की बात करते थे | वह मुझे मिल गई है |
बुद्ध ने कहा – क्या तुम्हारा व्यापार तुम्हारे मित्र से अधिक हो गया है |
वह व्यक्ति बोला- नहीं वह मेरा व्यापार तो बहुत छोटा सा है | लेकिन मैं अब उसमें संतुष्ट हूं | मुझे इतना मिल जाता है कि मैं अपनी पत्नी और बच्चों का पालन-पोषण अच्छे से कर पाता हूं | और साथ ही मैं दूसरे व्यक्तियों की मदद भी कर पाता हूं | मुझे अब समझ में आ गया है, कि हम लोग अपना जीवन व्यर्थ में ही गंवा रहे हैं | हम सब व्यर्थ की बातों में ही पड़े रहते हैं | जो संपत्ति हमारे पास है | हम उसको नहीं देखते, हम कंकड़ पत्थर बीनने में ही लगे रहते हैं | जिस बात को मैं पहले नहीं समझ पाता था | अब वह बातें मुझे स्पष्ट समझ में आती है | मैंने अपने मित्र से ईर्ष्या की और वह इसलिए था, कि हम अपने सुख से सुखी नहीं होते अपितु दूसरे के सुख से दुखी हो जाते हैं | ऐसा ही मैंने अपने मित्र के लिए किया था | अब मुझे हंसी आती है कि मैं किन छोटी-छोटी बातों में उलझा हुआ था | अगर आप मेरे जीवन में नहीं होते, बुद्ध, तो मैं यह कभी नहीं समझ पाता |
प्रणाम गुरुदेब।।
Nice story 👍