किसी ने पूछा है कि जीवन में सुख कब होता है और दुख कब होता है | यह कैसे पता करें | हम अपने दुख को सुख में कैसे बदल सकते हैं |
देखिए एक आम आदमी के जीवन में सुख से क्या मतलब होता है | इच्छाओं की पूर्ति हो जाना | जो हम चाहते हैं बस वैसा हो जाए, तो क्या चाहिए, यही तो सुख है | अगर इसका उल्टा हो यानी हम जो चाहते हैं, हमारी जो इच्छा है, चीजें उसकी उल्टी हो जाए, हमारी इच्छा के विरुद्ध घटना घट जाए, वैसा ना हो जैसा हमने चाहा था तो दुख उत्पन्न होता है | हमारा दुख हमारा सुख हमारी इच्छाओं पर निर्भर करता है और यह इच्छाएं हम पर निर्भर करती हैं | पर हम इन इच्छाओं पर निर्भर हो जाते और यही दुख का कारण है | इन्हीं इच्छाओं के साथ हमारे भीतर एक डर और भय भी उत्पन्न होता है कि अगर ऐसा ना हुआ, यह पुरा ना हुआ, जो सोचा था वैसा नहीं हुआ तो क्या होगा | इच्छा उत्पन्न तो आसानी से हो जाती है, पर पूरी ना हो तो दुख के सागर में डूबा देती है |
श्रावस्ती के एक धनी व्यापारी का 1 पुत्र था जिसका नाम अस्त्रीगंध था | जन्म से ही उसके साथ एक आश्चर्यजनक आदत थी, वह स्त्रियों के निकट नहीं जाता था, क्योंकि उसे स्त्री गंध बर्दाश्त नहीं थी | जन्म के समय उसकी मां ने उसे कपड़े में लपेटकर बड़ी मुश्किल से दूध पिलाया था | वह जहां भी, कोई भी स्त्री देखता उससे बहुत दूर खड़ा हो जाता | इसी कारण उसका नाम उसके माता-पिता ने अस्त्रीगंध रख दिया | बचपन तक तो सब ठीक था लेकिन अब वह जवान हो गया था | उसके माता-पिता उसका विवाह कर देना चाहते थे पर वह विवाह के लिए तैयार नहीं था | लेकिन उसके माता-पिता उस पर बहुत दबाव डाल रहे थे |
तब उसने अपना दिमाग लगाया और एक ऐसी व्यवस्था की कि उसके माता-पिता उसकी शादी कभी ना करवा सके | उसने स्वर्ण मूर्ति कारों को बुलवाया और उनसे स्वर्ण की एक ऐसी लड़की की मूर्ति बनाने को कहा जो इतनी सुंदर हो कि इस धरती पर कहीं ना मिले |
स्वर्ण कारों ने बहुत मेहनत कर एक ऐसी मूर्ति बनाकर तैयार कर दी, वह इतनी सुंदर थी कि कोई भी जीवित स्त्री उसके सामने फीकी पड़ जाती | सुंदर से सुंदर लड़की भी उस मूर्ति के सामने कुछ नहीं थी | वह मूर्ति उसने अपने माता पिता को दी और कहा अगर आपको इस मूर्ति जैसी लड़की कहीं मिल जाए तो मैं उस लड़की से शादी करने के लिए तैयार हूं |
माता-पिता एक और खुश हुए, और दूसरी और थोड़े दुखी भी हुए, क्योंकि उन्होंने भी अपनी जिंदगी में ऐसी लड़की नहीं देखी थी जो उस मूर्ति से सुंदर दिखाई दे |
माता पिता ने पंडितों को बुलवाया उनसे कहा-
आपको यह स्वर्ण मूर्ति अपने साथ ले जानी है और पूरे देश में इसके जैसी लड़की ढूंढनी है | देश से बाहर भी जाना पड़े तो जाना पर हमें इस मूर्ति जैसे ही लड़की चाहिए |
वह पंडित स्वर्ण मूर्ति लेकर उस जैसी लड़की ढूंढने के लिए निकल पड़े पर आसपास कहीं भी ऐसी लड़की नहीं थी, तो उन्हें दूर जाना पड़ा | 3 महीनों के लगातार सफर के बाद वह एक राज्य में पहुंच गए, उस राज्य में एक नगर था जिसका नाम सांगल था |
वह पंडित थक गया था इसलिए वह एक नदी किनारे आराम करने के लिए रुक गया और उसने उस मूर्ति को नदी किनारे पर रख दिया | तभी वहां एक औरत पानी भरने आई और उसने उस मूर्ति को देख कर कहा – अरे इस मूर्ति को देख कर ऐसा लगा जैसे मेरी बेटी ही हो, देखो तो यह क्या है, मैं तो चौंक गई |
पंडितों ने उस महिला से पूछा – बहन क्या तुम्हारी बेटी इस मूर्ति की तरह सुंदर है |
महिला ने कहा – नहीं मेरी बेटी इस मूर्ति से ज्यादा सुंदर है |
यह सुनकर वह सब पंडित खुश हो गए | उन पंडितों ने उस महिला और उसके पति सारी बात बताई | और उनसे अपनी लड़की दिखाने के लिए कहा | पंडित उस महिला के घर पहुंचे महिला ने अपनी पुत्री को बुलाया और उस स्वर्ण मूर्ति के बगल में खड़ा कर दिया | वह स्वर्ण मूर्ति उस लड़की के सामने बिल्कुल साधारण लग रही थी | यह देख पंडित खुश हो गए और वह मूर्ति उन माता-पिता को भेंट कर दी | और वहां के सबसे अच्छे चित्रकारों को बुलवाकर उस लड़की की एक तस्वीर बनवाई और उसे लेकर वह वापस श्रावस्ती लौट आए |
अस्त्रीगंध ने जब यह सुना तो उसे विश्वास नहीं हुआ | लेकिन जब उसने इस लड़की की तस्वीर देखी तो वह विश्वास नहीं कर पाया और तुरंत उसके मन में विवाह के लिए इच्छा उत्पन्न हो गई और उसने हां कर दी |
पंडितों को वापस उस लड़की को लाने के लिए सांगल नगर भेजा गया | बहुत लंबी यात्रा कर पंडित वापस सांगल नगर पहुंचे और उन्होंने उस लड़की के माता-पिता को बताया कि श्रावस्ती के धनी श्रेष्ठ अपने पुत्र का विवाह की पुत्री से करना चाहते हैं, इसके लिए आपको और आपकी लड़की को हमारे साथ चलना होगा |
लड़की और उसके माता-पिता तैयार हो गए और वह रथ पर बैठकर निकल पड़े | उधर उस युवक अस्त्रीगंध की एक छोटी सी इच्छा विवाह, अब बड़ी होती जा रही थी | अब उसने थोड़े-बहुत सपने भी बुन लिए थे | वह उस युवती के सपनों में खोया रहता | उसके आने का बेचैनी से इंतजार कर रहा था | उसने उस लड़की के लिए कपड़े गहने और ना जाने क्या-क्या तैयार करवा लिए थे |
उधर उस लड़की ने आज तक कोई लंबी यात्रा नहीं की थी, वह बहुत नाजुक थी | पहली बार वह रथ से चल रही थी | 3 महीने का रास्ता था | आधे रास्ते में पहुंचकर उसी उसकी हालत खराब हो गई, उसकी तबीयत बिगड़ने लगी | वह बीमार पड़ गई | उसका रास्ते में इलाज कराया गया पर कोई आराम नहीं लगा | धीरे धीरे यात्रा आगे बढ़ती गई | सब को विश्वास था कि एक बार श्रावस्ती पहुंच जाएंगे तो यह लड़की ठीक हो जाएगी, तो वह चलते रहे | और 3 महीने बाद आखिरकार वह श्रावस्ती पहुंचे पर तब तक उस लड़की की भी हालत बहुत खराब हो गई वह बहुत कमजोर हो गई | उसने श्रावस्ती में पहुंचते ही प्राण त्याग दिए |
अस्त्रीगंध को इसकी सूचना दी गई उसने जब उस लड़की के शरीर को देखा तो उसने कहा – ऐसी सुंदर लड़की का साथ मिलना संभव नहीं हो पाया और यह कहकर वह दुख के सागर में डूब गया |
वह अब किसी से बात नहीं करता, कहीं नहीं जाता, मां बाप से भी ठीक से बात नहीं करता | अब माता-पिता को लगने लगा कि इससे तो हमारा पुत्र पहले ही सही था | कम से कम खुश तो था | अब तो हमारी इतनी ही इच्छा है कि यह विवाह करें ना करें बस खुश रहे |
एक दिन अस्त्रीगंध अपने दुख में डूबा कहीं जा रहा था | रास्ते में उसने बुद्ध को देखा उनकी आभा को देख उसे लगा कि यह उसके प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं, तो वह बुद्ध के पास पहुंचा और कहा –
हे बुद्ध मैं इतना दुखी क्यों हूं
बुद्ध ने कहा – अस्त्रीगंध कन्या नहीं मिली इसीलिए इतनी दुखी हो |
अस्त्रीगंध ने कहा – हां बुद्ध बड़ी मुश्किल से इतनी सुंदर कन्या मिली थी | वह भी राह में आते-आते मर गई | अब कुछ अच्छा नहीं लगता | वह मुझे शौक-समुंद्र में छोड़कर चली गई |
बुद्ध ने कहा – क्या तुम जानते कि तुम्हें इतना अधिक शौक, दुख क्यों हुआ है |
अस्त्रीगंध ने कहा – नहीं मैं नहीं जानता |
बुद्ध ने कहा – हमारी इच्छाएं हमारे शौक का कारण बनती है | हमारी इच्छाएं कामना को जन्म देती है, कामना वासना को, और वासना डर को जन्म देती है | अंत में हम इसी डर में जीते हैं, भय में जीते हैं, दुख में जीते हैं |
अस्त्रीगंध ने कहा – क्या विवाह की इच्छा करना गलत है |
बुद्ध मुस्कुराए और बुद्ध ने कहा – इच्छा करना गलत नहीं है परंतु इच्छा को पकड़ लेना या इच्छा को ना समझ पाना या इच्छा के बीच अपने स्वार्थ को छिपाकर रोना गलत है |
अस्त्रीगंध ने कहा – बुद्ध मैं कुछ समझा नहीं |
बुद्ध ने कहा – क्या तुम इसलिए दुखी हो कि तुम्हारा विवाह नहीं हुआ |
अस्त्रीगंध ने कहा – हां बुद्ध मैं इसीलिए दुखी हूं |
बुद्ध ने कहा – तो विवाह कर लो तुम्हें किसने रोका है |
अस्त्रीगंध ने कहा – पर उस जैसी सुंदर युवती कहां मिलेगी |
बुद्ध ने कहा – यही तो समझने वाली बात है | तुम्हें लगता है कि तुम उस लड़की की मौत से दुखी हो, पर अंतर में तुम इस बात से दुखी हो कि वह तुम्हें नहीं मिली, वह सुंदर शरीर तुम्हें नहीं मिल पाया | तुम्हारी वासना पूरी नहीं हो सकी |
यह सुनकर वह बुद्ध के चरणों में गिर गया और कहा – बुद्ध सच तो यही है मेरे अंतर से उसकी सुंदरता निकल नहीं रही है | अब मुझे उस जैसी कहां मिलेगी मेरा वास्तविक दुख यही है |
बुद्ध ने कहा – वासना से भरी तुम्हारी यह इच्छा ही तुम्हारे दुख का कारण है की उसके जैसी कहां मिलेगी | तुम्हारा दुख उस लड़की के लिए नहीं है | अपने लिए है कि तुम्हें नहीं मिली, अब उसके जैसी कहां मिलेगी यही इच्छा तुम्हारे दुख का कारण है |
अस्त्रीगंध को बुध की बात समझ आ गई | वह समझ गया कि उसके दुख का कारण उसकी इच्छा है |
लेकिन क्या आप समझे कि आपके दुख का कारण भी आपकी इच्छा ही है | पति पत्नी जब आपस में लड़ते हैं तो अपनी इच्छाओं को बचाने के लिए लड़ते हैं | बाहर की दुनिया में जहां भी आप रहते हैं, जहां भी आप काम करते हैं | सब अपनी इच्छाओं को बचाने में लगे हुए हैं | सबको अपनी इच्छा पूरी करनी है और यहां एक की इच्छा पूरी होने पर वही इच्छा, दूसरों के लिए दुख बन जाती है | एक जीतता है, तो दूसरा हारता ही है | दोनों कैसे जीत सकते हैं | दोनों की इच्छा कैसे पूरी हो सकती | हां लेकिन कोई हार जीत से ऊपर उठकर केवल अपने कर्म को करने पर ध्यान दें, तो वह हारे या जीते, उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता |
इसलिए बुद्ध कहते हैं
त्रिष्णा शोक की जननी है, वही भय को भी जन्म देती है | जो तृष्णा से परे है, उसे शौक नहीं हो सकता, भय होने का प्रश्न ही कहा है |
तो आप अपनी इच्छाओं को जरा गौर से देखिए, क्या उनमें स्वार्थ लालच वासना और कामना या किसी प्रकार के धोखे की मिलावट तो नहीं है, या वह शुद्ध रूप से मात्र इच्छाएं है | जो अपने लिए तो बेहतर है ही, दूसरों के लिए भी कल्याणकारी है |