वर्तमान की चिता पर भूतकाल जिंदा है

बुद्ध कहते हैं की वर्तमान में जियो, ना भूतकाल में और ना ही भविष्य काल में रहो | केवल वर्तमान में जियो, जो है जैसा है, वैसा केवल वर्तमान में ही दिखाई दे सकता है | अगर हम भूतकाल में उलझे रहेंगे, तो वर्तमान की चीजें साफ नजर नहीं आएंगी और अगर भविष्य में खोए रहेंगे तो वर्तमान में क्या हो रहा है इसे हम भलीभांति नहीं समझ सकेंगे |

 

लेकिन वर्तमान क्या है | अगर कोई आपसे पूछे कि वर्तमान में क्या चल रहा है, तो आप उसे बता सकते हैं कि वर्तमान में क्या राजनीतिक स्थिति है, क्या आर्थिक स्थिति है, आप किस स्थिति में है, आप क्या कर रहे हैं, आप की क्या प्लानिंग है, वर्तमान में क्या सस्ता है और क्या महंगा है, कहां क्या घटना घटी है, वह घटना अच्छी है या बुरी, यह सब कुछ वर्तमान में ही तो चल रहा है |

आपकी जिंदगी में जो कुछ भी हो रहा है क्या यह वर्तमान है, क्या यही आपका वर्तमान है, क्या बुद्ध इसी वर्तमान की बात करते हैं | वास्तव में आपकी लाइफ में जो कुछ भी चल रहा है, वह वर्तमान नहीं है और ना ही बुद्ध इस वर्तमान की बात करते हैं | वह बात करते हैं उस वर्तमान की जिसका एक क्षण बहुत ही छोटा हैn | तब तक आप उसे देखने की कोशिश करते हैं, वह निकल जाता है, और भूतकाल  हो जाता है, इस वर्तमान की क्षण को पकड़ पाना इतना आसान नहीं है जितना कि आप के वर्तमान के क्षण को पकड़ना | 

 

आपका वर्तमान 1  वर्ष से 1 महीने से 1 दिन से या 1 घंटे से शुरू हो सकता है और उसे आप आसानी से देख सकते हैं | आप देख सकते हैं कि आज आप एक अच्छी कंपनी में काम कर रहे हैं, यह आपका वर्तमान है, अभी आप अपने घर में बैठे हैं और एक मूवी देख रहे हैं | यह आपका वर्तमान है | आपका बेटा बेटी आपके पिता आपकी माता आपकी पत्नी या आपका कोई भी रिश्तेदार आपके पास आकर बैठता है और वह आपसे किसी मुद्दे पर बात करता है, यह आपका वर्तमान है | आप कह सकते हैं कि मैं वर्तमान में अपने  इस रिश्तेदार के साथ बातें कर रहा  हूं |

 

लेकिन बुद्ध इनमें से किसी भी वर्तमान की बात नहीं कर रहे है | वह जिस वर्तमान की बात कर रहे हैं, वह हम सभी की जिंदगी में आता है और निकल जाता है | यह प्रतिपल प्रतिक्षण होता रहता है, लेकिन उस पर हमारा ध्यान नहीं होता क्योंकि हम जागृत नहीं है | हमें आदत नहीं है, चीजों को एक दूसरे नजरिए से देखने की हम हमेशा उसी नजरिए से चीजों को देखते हैं, जैसे कि हम पहले से देखते आ रहे हैं |

जब कोई छोटा बच्चा आपके पास आता है और वह अपने छोटे हाथों से आपके हाथ को पकड़ता है, तब उसका आपका हाथ पकड़ना आपका वर्तमान हो सकता है | लेकिन बुध का वर्तमान कहता है कि जब वह आपके हाथ को पकड़ रहा है तब उसका जो  स्पर्श है उसके स्पर्श में उस बच्चे का अस्तित्व छुपा है और वह वर्तमान का एक ऐसा क्षण है, जिसमें आप केवल उस बच्चे के साथ हो उसके स्पर्श के साथ हो उसके स्पर्श से होने वाली अनुभूति के साथ हो | 

 

आप अपने पिता या माता के साथ बैठे हैं और वह अपनी बात बता रहे हैं | आप उनकी बात सुन रहे हैं, यह आपका वर्तमान है कि आप उन्हें सुन रहे हैं | लेकिन क्या आप उन्हें वाकई में सुन रहे हैं | क्योंकि अगर आप ध्यान से देखेंगे तो उन्हें सुनते समय आप कभी उनकी बातों के साथ भूतकाल में चले जाएंगे कभी भविष्य काल में चले जाएंगे और वर्तमान में भी आएंगे, जब  वह आपसे कह रहे हैं,  लेकिन आप उस वर्तमान काल में नहीं आ पाएंगे, जिसमें आपके पिता या माता आपके साथ हैं | 

वह एक अस्तित्व जिससे आप का निर्माण हुआ है जिसका आप अंश हो और जो अभी आपके साथ हैं और जब वह बोलते हैं तो उनके हर शब्द के साथ उनकी आवाज आपके कानों में पड़ती है | वह आप तक पहुंचती है लेकिन आप उनकी आवाज पर नहीं जाते बल्कि उनके शब्दों पर जाते हैं | आप उनके चेहरे तक नहीं जाते बल्कि उनकी चेहरे के पीछे क्या चल रहा है उस तक पहुंचते हैं, आप उस क्षण  तक नहीं पहुंच पाते जिस क्षण में आप आपके पिता या माता के साथ बैठे हैं, उनका अस्तित्व आपके साथ है | 

और उस वर्तमान  के क्षण में आप ना तो भूतकाल में होते हैं ना ही भविष्य काल की चिंताओं में होते हैं आप केवल वर्तमान के एक छोटे क्षण में होते हैं और वह क्षण कुछ ऐसा होता है जिसमें आपको यह भी सोचने का समय नहीं होता कि आप वर्तमान में है | आप केवल उस क्षण को जीते हैं अनुभव करते हैं, एक ऐसा अनुभव जो आपने आज से पहले कभी नहीं किया | वह क्षण आपको किसी के साथ जोड़ देता है | वह क्षण, होता तो छोटा है मगर उसमें समय हीनता होती है | आप वहां समय की गणना नहीं करते, कर भी नहीं सकते |

 

बुद्ध कहते हैं अपनी सांसो पर ध्यान दो, लेकिन हम कितना अपनी सांसो पर ध्यान देते हैं | आपने जब से जन्म लिया और अभी तक आपने कितनी बार अपनी सांसो को देखा है | हो सकता है कि आपने कई बार देखा भी हो कि आप सांस ले रहे हैं, लेकिन आपने ने कितना समझा है |  बुद्ध क्यों कहते हैं कि सांसो पर ध्यान दो सांसो में ऐसा क्या है | 

हमारे प्राण और हमारा शरीर और हम इन्हीं सांसो से जुड़े हैं | जब तक आपकी सांसे चलती है, आपके विचार भी चलते हैं, जैसे ही आपकी सांसे रूकती है, आपके विचार भी रुक जाते हैं | अगर आप 1 मिनट के लिए अपनी सांस रोके तो आप देखेंगे कि आप पूर्ण रूप से विचार हीन होते जा रहे हैं | आप कोशिश भी कर सकते हैं, विचार लाने की,  लेकिन विचार नहीं आएंगे और अगर आएंगे तो वैसे ही आएंगे जैसे आप किसी को जबरदस्ती खींच कर ला रहे हो, लेकिन अगले ही पल जैसे ही आप अपनी सांसो को दोबारा से लेने लगेंगे तुरंत ही वह सारे विचार जिन्हें आप अभी तक खींच कर लाने की कोशिश कर रहे थे, एक साथ आप पर टूट पड़ेंगे और आप पुनः अपनी सांसों के साथ विचारों के समुंदर में बह जाओगे | इसलिए बुद्ध कहते हैं कि अपनी सांसो पर ध्यान दो अगर आपने अपनी सांसो को समझ लिया तो आप उस वर्तमान के क्षण को भी समझ पाओगे जिसकी बात बुद्ध करते हैं |

हमारे  विचार हमारी सांसो से नियंत्रित होते हैं या आप कह सकते हैं कि आपकी सांसे आपके विचारों से नियंत्रित हो रही है | जब आप क्रोध करते हैं, तब आपकी सांसे एक अलग तरह से चलती हैं और जब आप प्रेम करते हैं तो आपकी सांसे एक अलग तरह से चलती है,  जब आप भयभीत हो जाते हैं तब आपकी सांसे एक अलग ही प्रकार से चलती है | आपके हर विचार के अनुसार आपकी सांसे चलती है | 

बुद्ध इन सांसों को साधने की बात कहते हैं, चाहे कैसे भी विचार हो कैसी भी स्थिति हो, आप क्रोधित हो या भयभीत  हो आपकी सांसे एक ही प्रकार से चले, शांत और गहरी सांसे, तब आप न क्रोध कर पाएंगे ना भयभीत हो पाएंगे | आप मध्य में रहेंगे जहां आप के विचारों पर आपका नियंत्रण होगा | आप देख पाएंगे कि किस प्रकार आपके विचार आप को प्रेरित करते हैं कोई कार्य करने के लिए और कैसे आप उन विचारों में बह जाते हैं |

हम एक रिकॉर्डर की तरह है हम सब कुछ रिकॉर्ड करते रहते हैं | इसी रिकॉर्ड करने की क्षमता के कारण हम भूतकाल में घूमते रहते हैं | हमें किसी ने कुछ कहा हमें बुरा लगा, हमने वह रिकॉर्ड कर लिया अब हम बार-बार उस समय में घूमते रहेंगे और यह प्लानिंग करते रहेंगे कि कैसे हम अपने अपमान का बदला ले सकते हैं | हो सकता है हम अपने अपमान का बदला ले भी ले, तब भी हम उस रिकॉर्डिंग को मिटाते नहीं है बल्कि हमेशा उसे  रिवाइंड कर के देखते रहते हैं और इसी कारण हम हमेशा भूतकाल में जीते रहते हैं और यह भूतकाल हमें सीधे भविष्य काल की ओर ले जाता है | आज हमारा अपमान किसी ने किया तो भविष्य में हमें उससे कैसे बदला लेना है इसकी प्लानिंग हम करते रहते हैं और इस प्लानिंग में जो चीज बर्बाद होती है, वह है, आपका वर्तमान जिस पर हमारा ध्यान ही नहीं है |

अगर आप किसी बुजुर्ग से पूछेंगे कि उन्होंने बचपन से बुढ़ापे तक का सफर को कितना जिया तब वह आपको बताएंगे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब वह एक बच्चे से बुढ़ापे की तरफ आ गए उनका समय इतनी तेजी से निकला कि वह समझ ही नहीं पाए |और ऐसा इसलिए होता है कि हम कभी उस समय में नहीं होते जिस समय में हम जी रहे होते हैं | हम कुछ समय पहले वाले समय में होते हैं या कुछ समय बाद आने वाले समय में होते हैं | इसलिए वह समय जिसमें हम जी सकते थे, समझ सकते थे, वह निकलता चला जाता है, इसीलिए हम कहते हैं कि समय कैसे निकला हमें पता ही नहीं चला और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमेशा हमारे अंदर भूतकाल जिंदा होता है | 

लेकिन क्या बिना भूतकाल के जीवन जिया जा सकता है | अगर आप विचार करेंगे तो आप यह समझ पाएंगे कि बिना भूतकाल के जीवन नहीं  जिया जा सकता क्योंकि अगर आपको यह ना पता हो कि भूतकाल में आप किस से मिले थे, कौन अच्छा व्यक्ति था, कौन बुरा व्यक्ति था, किसने आपके साथ अच्छा व्यवहार किया और किसने आपके साथ बुरा व्यवहार किया, आप के गुरु कौन थे, उन्होंने आपको क्या ज्ञान दिया, आपने भूतकाल में क्या-क्या किया | बिना इन सब बातों के आप कैसे जीवन को जी सकते हैं | वर्तमान में जीने के लिए भी भूतकाल का होना आवश्यक है | अगर हम वर्तमान के क्षण को भी जान पाएंगे उसमें भी जी पाएंगे तो वह भी भूतकाल की वजह से ही होगा | क्योंकि इसकी जिज्ञासा भूतकाल में ही जागी थी | 

बुद्ध यह नहीं कहते की भूतकाल को छोड़ दो या भविष्य पर ध्यान मत दो, वह कहते हैं की वर्तमान में आप जो भी कर रहे हैं बस उसे संपूर्णता के साथ देख भर लो, अगर आप भूत काल की बातें सोचकर वर्तमान में किसी के बारे में षड्यंत्र रच रहे हैं तो केवल उसे देख ले कि आप वर्तमान में क्या कर रहे हैं, और इसका क्या परिणाम होगा | यह भविष्य में होगा मगर आप इसे अभी इसी क्षण में वर्तमान में संपूर्णता के साथ देखें, भूतकाल में या भविष्य काल में बह ना जाए | याद रखें कि आप जो भी कर रहे हैं, उसे आप देखते अवश्य रहे हैं | जब आप दृष्टा होते हैं यानी आप केवल देखने वाले होते हैं तब आप सही निर्णय ले पाते हैं, तब आप वर्तमान के क्षण पर होते हैं, भले ही उस वर्तमान के क्षण में आप भूत काल भविष्य काल  के बारे में सोच रहे हो लेकिन आपको पता होता है कि आप  वर्तमान में कुछ सोच रहे हैं और आप अभी यहीं हैं, कहीं गए नहीं है |

लेकिन हमारी समस्या यही है कि हम भूतकाल की बातें सोचते सोचते भूतकाल में ही चले जाते हैं और भविष्य की कल्पना करते करते भविष्य में ही खो जाते हैं | वर्तमान तो जैसे गायब ही हो जाता है | और देखने वाला तो सो ही जाता है तो आप जो भी करें जो भी सोचे इस पर दृष्टि बनाए रखें वर्तमान में रहे | 

 

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