भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ, जब लोगों को पता चला कि बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ है | वह यह जानना चाहते थे कि बुध को क्या ज्ञान प्राप्त हुआ है| उन्होंने क्या नया जाना |

नया इसलिए क्योंकि दुनिया में पहले से ही ज्ञान का भंडार भरा पड़ा है और जिस ज्ञान को सब जानते हैं उसे अलग बुध ने क्या ज्ञान पाया|

बुध के समीप एक व्यक्ति आया और उसने बुध से कहा- हे बुध- मैं ज्ञानी व्यक्ति हूं, मैंने सभी शास्त्रों का अध्ययन किया है मैंने वेद पुराण पढ़ें मैं गहन चिंतन और मनन में रहता हूं | मैंने सुना है कि आप को ज्ञान की प्राप्ति हुई है, मैं यह जानना चाहता हूं कि आपको क्या प्राप्त हुआ है, वह कौन सा ज्ञान है, जिस से अभी तक हम सब अनभिज्ञ हैं | आपको क्या प्राप्त हुआ |

बुध मुस्कुराए और बोले – मुझे कुछ प्राप्त नहीं हुआ है, बल्कि मेरे पास जो था वह भी मैं खो चुका हूं |

व्यक्ति बोला- आपने क्या खोया |

बुद्ध ने कहा- लालच, लोभ,मोह, माया, ईर्ष्या, क्रोध, कामना, इच्छा, वासना, इन सभी को मैंने खो दिया है |

वह व्यक्ति बोला- तब आपने पाया क्या |

बुद्ध ने कहा- कुछ नहीं |

व्यक्ति बोला- तब लोग यह क्यों कहते हैं कि आप को ज्ञान की प्राप्ति हुई है | क्या आप ने ज्ञान प्राप्त नहीं किया,

बुद्ध मुस्कुराए और बोले- मैंने ज्ञान प्राप्त नहीं किया ज्ञान तो सर्वत्र है | उसे प्राप्त करने की जरूरत नहीं है | मैंने केवल अपना अज्ञान खो दिया है |

अज्ञान खोने पर क्या बचता है |

व्यक्ति बोला- अज्ञान नहीं होगा तब ज्ञान बचता है|

बुध ने कहा- जब ज्ञान और अज्ञान दोनों ही ना बचे तब क्या बचेगा |

वह व्यक्ति बुध की चरणों में गिर गया और बोला- हे बुध इस स्थिति के बारे में तो मैंने कभी विचार ही नहीं किया |

बुध कहते हैं मेरे पास जो कुछ भी था मैंने खो दिया सब खोने के बाद मुझे पता चला कि जिन चीजों से मैं प्रेम कर रहा था, जिन चीजों को मैं पाना चाहता था, वह सत्य ही नहीं थी |

तब वह सत्य क्या था, जिसे बुद्ध ने प्राप्त किया बुध कहते हैं की मैंने सब कुछ खो दिया तब मुझे ज्ञान दिखाई दिया | लेकिन इस के उल्टे हम सब कुछ प्राप्त करना चाहते हैं | बुध खोने की बात करते हैं और हम प्राप्त करने की बात करते हैं |

हम ध्यान करते हैं, ज्ञान प्राप्ति के लिए लेकिन क्या हम अपने आप को अज्ञानी मानने के लिए तैयार हैं, क्योंकि जो ज्ञानी है, उसे ज्ञान प्राप्त करने की क्या आवश्यकता है, क्योंकि वह तो पहले से ही ज्ञानी है |

एक समस्या भी है, हम अपने आप को ज्ञानी मानते हैं और ज्ञान भी प्राप्त करना चाहते हैं | यह कैसे संभव है, ज्ञान तो उसे ही प्राप्त हो सकता है जो अज्ञानी हो |

पहले तो हम यही नहीं समझ पाते कि अज्ञान क्या है और ज्ञान क्या है, ध्यान से देखोगे तो पता चलेगा की जिसे हम ज्ञान समझ रहे हैं, वह अज्ञान ही हैं, हमारा ज्ञान ही अज्ञान है | हमारा ज्ञान हमें सत्यता को देखने से रोक लेता है |

किसी व्यक्ति को प्रताड़ित करने में कोई ज्ञान की बात नहीं, लेकिन दुनिया के प्रत्येक धर्म ग्रंथों में आपको ऐसे ज्ञान के भंडार मिलेंगे जिसमें बताया गया है कि किसी व्यक्ति को कैसे प्रताड़ित करना चाहिए जब हम इस तरह की चीजों को ज्ञान के तौर पर स्वीकार कर लेते हैं तब हम सत्य से बहुत दूर हो जाते हैं |

हमारा ज्ञान कहता है कि हम सांस लेते हैं और जीवित रहते हैं, लेकिन ध्यान से देखेंगे तो पता चलेगा कि हम कभी सांस नहीं लेते सांस श्वेता ही चलती है क्योंकि अगर हम सांस ले सकते और बंद कर सकते तो हम कभी भी सांस को बंद कर सकते थे और कभी भी शुरू कर सकते थे तब कोई मुर्दा ना होता मुर्दा होता तो मुर्दे भी सांस लेते,

तब यह हमारा अज्ञान ही है जो कहता है कि हम सांस लेते हैं |

पृथ्वी पर जब से मनुष्य आया है तब से अब तक मनुष्य जीवन एक ही प्रकार से चल रहा है, क्या आपने ध्यान दिया, व्यक्ति गरीब हो या अमीर हो सब में एक से ही भावनाएं हैं, सब क्रोध भी करते हैं, प्रेम भी करते हैं, सब लालची हैं, सब स्वार्थी भी हैं, पूर्व में बड़े-बड़े राजा और सम्राट हुए उन्होंने बहुत कुछ अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए नष्ट किया बर्बाद कर दिया लेकिन आज वह राजा और सम्राट नहीं है, उनकी जगह हम हैं, जो एक सम्राट करता है वही एक गरीब व्यक्ति भी करता है | वहभी अपनी इज्जत बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है | किसी की हत्या कर सकता है | किसी को बर्बाद कर सकता है, आत्महत्या भी कर सकता है और अंत में चाहे सम्राट हो चाहे कोई गरीब व्यक्ति हो एक ही स्थिति में प्राण त्यागते हैं | एक सम्राट हो सकता है कि युद्ध के मैदान में प्राण त्यागे, एक गरीब हो सकता है कि अपने घर के बाहर खुले मैदान में प्राण त्याग दें, प्राण निकालने में पीड़ा एक ही होती है |

हजारों सालों में सब कुछ एक सा ही घट रहा है | उसमें कोई बदलाव नहीं है सिर्फ चेहरे बदल रहे हैं, फिर भी हम इतने ज्ञानी व्यक्ति हैं कि उन सब से हम कुछ नहीं सीखते, हम भी वही गलतियां दोहराते हैं जो पहले हो चुकी है | और उसका परिणाम भी हम जानते हैं, फिर भी वही गलतियां बार-बार करते हैं |

इसीलिए बुध कहते हैं कि हम अज्ञानी हैं जिसे हम अपना ज्ञान समझ रहे हैं वहीं ज्ञान हमें सत्यता से दूर रखता है | बुध जिस सत्य की बात करते हैं | उन्हें जो सत्य मिला या जो सत्य होता है, वह यूनिवर्सल होता है | वह हर समय हर स्थिति में एक सा ही होता है | उसमें कोई बदलाव नहीं होता लेकिन हमारा जो ज्ञान है, हमारे जो सत्य है, वह हर स्थिति में बदल जाता है, समय और स्थान के हिसाब से बदल जाता है, व्यक्तियों के हिसाब से बदल जाता है |

एक सत्य जो भारत में सत्य है, वो किसी दूसरे देश में असत्य हो जाता है |

जैसे प्रेम प्रेम एक यूनिवर्सल सत्य है| यह हर जगह हर स्थिति में एक सा ही होता है | सभी जीवो में यह एक समान प्रकट होता है, इसलिए बुध प्रेम और करुणा की बात करते हैं, लेकिन बुध जिस प्रेम और करुणा की बात करते हैं, हम उसे समझ नहीं पाते, प्रेम तो हम भी करते हैं | लेकिन क्या वास्तव में हम प्रेम करते हैं |

एक पति कहता है कि मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूं, कुछ समय बाद वही पति अपनी पत्नी की हत्या कर देता है | अब यह कैसे संभव है कि जहां प्रेम था, उसकी जगह अब क्रोध ने ले ली, क्योंकि यहां प्रेम था ही नहीं इसीलिए समय के हिसाब से यह बदल गया |

हम प्रेम या कोई भी व्यवहार कहां से सीखते हैं | यह सब हम अपने आसपास के वातावरण से समाज से सीख रहे

हैं | हमारी बुद्धि हमारे विचारों से निर्मित हो रही है, यह विचार बाहर से हमारे मस्तिष्क में डाले जा रहे हैं | जिससे हमारी समझ विकृत होती जा रही है |

प्रेम एक स्वभाविक प्रक्रिया है जो स्वयं प्रकृति की एक देन है | और यह प्रकृति का एक हिस्सा भी है | प्रकृति आप से प्रेम करती है | वह आपका सभी प्रकार से ध्यान रखती है | वह कभी आपसे कोई मांग नहीं करती, जबकि आप ही प्रकृति को नष्ट करने पर लगे हैं, यह वह प्रेम है जो हमारे अंदर भी होता है, लेकिन हम इसे भूल गए हैं, जिस प्रेम को हम जानते हैं, वह बनावटी है | उसे हमने बाहर से सीखा है, बाहर यानी अपने समाज से सीखा है, समाज में जैसा दिखाया जाता है | हम बिल्कुल वैसा ही करना चाहते हैं | हम वैसे ही प्रेम करना चाहते हैं | हम कॉपी करना चाहते

हैं | हम अच्छा दिखना चाहते हैं, लोग हमें देखे और कहे कि देखो कितना प्रेम है इनमें |

वास्तव में जो सत्य है वह बहुत दूर नहीं है, बिल्कुल हमारे पास ही है, वह हमारे अंदर ही है हमने अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है, हम देखना ही नहीं चाहते या कहें हम इतने व्यस्त हैं की हमें यह सोचने का समय ही नहीं है कि हम जो रोज कर रहे हैं उस से हटकर भी कुछ हो सकता है | अपनी सामाजिक बुद्धि को छोड़ दें, जो समाज ने सिखाया है उसे एक बार के लिए भूल जाएं और स्वयं को समझें | आप के सबसे नजदीक आप स्वयं हैं, दूसरे किसी से ज्यादा आप स्वयं को बेहतर जानते हैं | देखें कि आप क्या जानते हैं | अपने बारे में कुछ जानते भी हैं या बस ऐसे ही जिए चले जा रहे हैं |

जन्म लेना और रोते चिल्लाते मर जाना इस जीवन का उद्देश्य नहीं है |

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