एक व्यक्ति अपने पिता की मृत्यु से बहुत दुखी था | लेकिन वह अपने पिता की मृत्यु से इतना चिंतित नहीं था, जितना कि यह सोचकर था की मृत्यु के पश्चात उसके पिता का क्या होगा | क्योंकि उसके पिता ने अपने जीवन में कोई अच्छे काम नहीं किए थे | उन्होंने दूसरों को सताया था, लूटा था, ना कोई दान किया, ना किसी की मदद की | यहां तक कि कई लोगों की हत्या भी कर दी थी | इतना सब कुछ बुरा करने के बाद कुछ अच्छा मिलने की उम्मीद नहीं थी | उस पुत्र को लगता था कि उसके पिता अवश्य ही नर्क की आग में जलेंगे | लेकिन वह कोई ऐसा उपाय कर देना चाहता था, कि दूसरे लोक में उसके पिता को वही सब सुख मिले जो एक अच्छे इंसान को मिलते हैं |
इसके लिए उसने बड़े-बड़े ज्ञानियों से सलाह ली, और उसने वैसे ही किया जैसा कि ज्ञानियों ने उसे बताया | उसने यज्ञ किया, हवन किए, अपने पिता के नाम से दान दिए | उनके नाम से उन लोगों को सहायता दी जिनका उसके पिता ने सब कुछ लूट लिया था | जब वह ज्ञानियों द्वारा बताए गए सारे कर्म कर चुका,
तब उसने उन ज्ञानियों से पूछा – मुझे यह कैसे पता चलेगा कि मेरे पिता अब सुख से हैं |
ज्ञानियों ने कहा – शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हारे सपने में तुम्हें दर्शन देंगे और खुद बताएंगे कि वह कितने मजे में है |
कुछ दिन बाद उस व्यक्ति को अपने पिता का सपना आया | उसने देखा कि उसके पिता रो रहे हैं, चिल्ला रहे हैं | अपने किए गए कर्मों के लिए पछता रहे हैं और अपने पुत्र से कह रहे हैं | मैंने जो किया मैं भुगत रहा हूं, तुम ऐसा मत करना | उसने देखा कि उसके पिता नर्क की आग में जल रहे हैं, ना उन्हें कोई देखने वाला है और ना ही कोई सुनने वाला |
ऐसा सपना देख कर वह चौक गया और वह भागकर ज्ञानियों के पास गया | उसने अपने सपने के बारे में उन ज्ञानियों को बताया | ज्ञानियों ने कहा अवश्य ही तुम्हारे द्वारा कि गए विधियों में कोई कमी रह गई है | तुमने पूरे मन से प्रार्थनाएं नहीं की इसीलिए ऐसा हुआ है | तुम्हें दोबारा से इन सभी विधियों को दोहराना होगा, फिर से सारे काम करने होंगे |
व्यक्ति ने कहा – लेकिन मैंने तो सारे काम सारी विधियां पूरे मन से ही की थी | मैंने बिल्कुल वैसा ही किया जैसा आपने कहा , कोई कसर मैंने अपनी तरफ से नहीं छोड़ी |
ज्ञानियों ने कहा – अगर तुम हमसे बहस करोगे तो तुम्हारे पिता को और अधिक कष्ट होगा |
वह व्यक्ति और अधिक निराश हो गया | वह वापस अपने घर की ओर जा रहा था और सोच रहा था कि ऐसे किस व्यक्ति से मिले, जो उसे सही समाधान दे सके, ताकि उसके पिता को उनके द्वारा किए गए कर्मों की सजा भुगतनी ना पड़े | रास्ते में उसकी नजर तथागत बुद्ध पर पड़ी | बुद्ध अपने भिक्षुओं के साथ भिक्षाटन के लिए नगर में आए हुए थे |
उस व्यक्ति ने अपने मन में सोचा – सुना है बुद्ध ने सत्य को प्राप्त कर लिया है | अतः उन्हें सारे सत्य पता होंगे | उन्हें यह भी पता होगा की मृत्यु पश्चात वह अपने पिता की मदद कैसे करें |
यह सब सोचकर वह बुद्ध के समीप गया और हाथ जोड़कर बुध से कहा – हे बुद्ध ! सुना है कि आपने परम सत्य पा लिया है | आप सब जानते हैं, मुझे आपसे एक सहायता चाहिए |
बुद्ध मुस्कुराए और बुद्ध ने कहा – हां अवश्य, कहो क्या सहायता चाहिए |
व्यक्ति ने कहा – मेरे पिता एक बुरे व्यक्ति थे | उन्होंने बहुत बुरे काम किए | उन्होंने हत्याएं भी की, लोगों को सताया | उनके कर्म अच्छे नहीं थे | एक माह पूर्व वह मृत्यु को प्राप्त हो गए | वह मेरे सपने में आते हैं और मैं देखता हूं कि वह नर्क में जल रहे हैं | मैंने कई ज्ञानियों से सलाह ली और जैसा उन्होंने कहा वैसे-वैसे विधियों और नीतियों को पूरा किया | मैंने उनके नाम से उन सभी लोगों की मदद की, जो उनके द्वारा सताए गए थे | ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और वह, वही सुख भोग सके जो एक अच्छा व्यक्ति भोगता है | लेकिन अभी भी वह मेरे सपनों में आते हैं और रोते चिल्लाते हैं और कहते हैं कि मुझे इस नर्क की आग से निकाल लो |
हे बुद्ध, इतना सब कुछ करने के बाद भी उनके पुण्य क्यों नहीं बढ़ रहे | मैंने तो उन सब लोगों की मदद भी की जिन्हें उन्होंने सताया था और उन्होंने उनके लिए प्रार्थना भी की, फिर भी कुछ नहीं हो रहा |
बुद्ध ने कहा – जो तुम कर रहे हो वह तुम्हारा कर्म है, जिन लोगों की मदद तुमने अपने पिता के नाम से की | उन लोगों के मन में धन्यवाद का भाव तुम्हारे लिए है ना कि तुम्हारे पिता के लिए | जो भी अच्छे कर्म तुम कर रहे हो उसका फल तुम्हें ही मिलेगा तुम्हारे पिता को नहीं |
व्यक्ति ने कहा – हे बुद्ध, मैं एक साधारण व्यक्ति, शायद मेरे हाथों में वह बल नहीं है | लेकिन आप तो तथागत बुद्ध है | अगर आप अपने हाथों से मेरे पिता के लिए कोई विधि कर देंगे, तो अवश्य ही उनके पाप कर्म नष्ट हो जाएंगे |
बुद्ध ने कहा – हमारे कर्म हमारा पीछा नहीं छोड़ते | जब हम जीवित होते है तब हम अपने कर्मों को बदल सकते हैं | उन्हें सुधार सकते हैं | लेकिन मृत्यु पश्चात कुछ नहीं कर सकते |
व्यक्ति ने कहा – हे बुद्ध जो भी हो, मुझे विश्वास है कि अगर आप मेरे पिता के लिए कोई विधि कर देंगे तो अवश्य ही उन्हें लाभ पहुंचेगा |
बुद्ध ने कहा – ठीक है तुम्हें ऐसा लगता है तो यही सही, तुम दो घड़े लेकर आओ एक घड़े को कंकर पत्थर से भर दो और उसका मुंह कपड़े से बांध दो और दूसरे घड़े को घी से भर दो और उसका मुंह भी कपड़े से बांध दो और इन्हें लेकर नदी किनारे पहुंचो मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा |
बुद्ध की यह बात सुनकर वह व्यक्ति बहुत खुश हुआ, उसे लगा कि आज उसके पिता को मुक्ति मिल ही जाएगी | वह भागकर बाजार गया और दो घड़े लेकर एक में कंकड़ पत्थर भर लाया और दूसरे में घी भर लाया | दोनों घड़े लेकर वह नदी किनारे बुद्ध के पास पहुंचा |
बुद्ध ने कहा – इन दोनों घड़े को पानी में डाल दो और एक डंडा लेकर आओ |
उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया और एक डंडा लेकर आया |
बुद्ध ने कहा – अब इस डंडे से इन दोनों घड़े को तोड़ दो | उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया और दोनों घड़े तोड़ दिए |
तब बुद्ध ने कहा – अब प्रार्थना करो की कंकड़ पत्थर ऊपर तैरने लगे और घी नदी में नीचे बैठ जाए |
उस व्यक्ति ने कहा – ऐसे कैसे हो सकता है बुद्ध, पत्थर भारी है, वह नदी में नीचे बैठ ही जाएंगे और घी हल्का है, इसलिए वह पानी पर तैरने लगेगा | मेरी प्रार्थना करने से क्या होगा |
बुद्ध ने कहा – हमारे बुरे कर्म इन कंकड़ पत्थर की तरह ही होते हैं | वह हमें इतना भारी कर देते हैं कि हम डूब जाते हैं | जबकि हमारे अच्छे कार्य घी की तरह होते हैं, वह हमें इतना हल्का कर देते हैं कि हम ऊपर तैरने लगते हैं | कोई भी विधि करो कोई भी प्रार्थना करो जिसने बुरे कर्म किए हैं | वह डूब ही जाएगा जिसने अच्छे कर्म किए हैं उसे कोई डूबा नहीं सकता |
व्यक्ति ने कहा – है बुद्ध, मैं आपकी बात समझ गया हूं | लेकिन मैंने जो अपने पिता के नाम से अच्छे कर्म किए हैं उनका फल भी उन्हें नहीं मिलेगा |
बुद्ध ने एक व्यक्ति को अपने पास बुलाया और उससे पूछा – इनके पिता कैसे थे |
उस व्यक्ति ने जवाब दिया – इनके पिता बहुत बुरे व्यक्ति थे | लेकिन यह बहुत अच्छे हैं, इन्होंने हमारी मदद की जबकि इनके पिता ने मेरे पिता की हत्या की थी |
बुद्ध ने कहा – देखा तुमने तुम्हारे कर्मों के लिए तुम अच्छे हो, लेकिन तुम्हारे पिता भी भी अच्छे नहीं है | इसी कारण हमें अपने जीवन में बुरे कर्मों से बचना चाहिए | बुरे कर्म करने वालों की संगत से बचना चाहिए और हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए और अच्छे कर्म करने वालों की संगत करनी चाहिए |
व्यक्ति ने कहा -आप सही कहते हैं बुद्ध, आपने बहुत आसानी से मुझे कर्मों का सिद्धांत समझा दिया आपका बहुत धन्यवाद |